जीन जैक्स रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धांत संबंधी विचार ( Jean-Jacques Rousseau's theory of general will )
इस लेख के बारे में निम्न बिन्दुओं पर लिखा गया है :
- सामान्य इच्छा का अर्थ ( Meaning Of General will )
- सामान्य इच्छा का निर्माण
- सामान्य इच्छा और बहुमत की इच्छा (General Will and Will Of Majority )
- सामान्य इच्छा और सर्वसम्मति से इच्छा (General Will And Will Of All )
- सामान्य इच्छा और लोकमत (General Will and Public Opinion )
- सामान्य इच्छा की विशेषताएँ (Characteristics Of General Will )
- सामान्य इच्छा के निहितार्थ (Implications Of General Will )
- सामान्य इच्छा सिद्धान्त का महत्त्व (Importance Of Theory Of General Will )
- सामान्य इच्छा सिद्धान्त की आलोचनाएँ (Criticisms Of Theory Of General Will )
सामान्य इच्छा का सिद्धान्त (Theory of General Will)
यह सिद्धान्त रूसो के दर्शन का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण, मौलिक, केन्द्रीय एवं रोचक विचार है। यह रूसो के सम्पूर्ण राजनीतक दर्शन की आधारशिला है। इसी धारणा के आधार पर रूसो ने स्वतन्त्रता, अधिकार, कानून, सम्प्रभुता, राज्य की उत्पत्ति, संगठन आदि विषयों पर अपने विचार प्रकट किये हैं। जोन्स के शब्दों में- "सामान्य इच्छा का विचार रूसो के सिद्धान्त का न केवल सबसे अधिक केन्द्रीय विचार है, अपितु यह उसका अधिक मौलिक व रोचक विचार भी है। रूसो का राजनीतिक क्षेत्र में उसकी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण देन है।" इसी प्रकार मैक्सी ने भी कहा है- "सामान्य इच्छा की धारणा सूक्ष्म मनोयोग की पात्र है। वह रूसो के दर्शन का मर्म है और शायद राजनीतिक चिन्तन के प्रति उनका सबसे विशिष्ट योगदान है।" रूसो के राजनीतिक विचारों को समझने के लिए उसकी सामान्य इच्छा की धारणा समझना आवश्यक है। सामान्य इच्छा का सिद्धान्त रूसो की सबसे विवादास्पद धारणा है। जहाँ प्रजातन्त्र के समर्थकों ने रूसो की सामान्य इच्छा का स्वागत किया है, वहीं निरंकुश शासकों ने इसका गलत प्रयोग करके जनता पर अत्याचार किये हैं।
रूसो ने जब एकान्त में रहने वाले व्यक्तियों से अनुशासनपूर्ण संस्था का निर्माण कराना चाहा तो ऐसा करना तार्किक द ष्टि से असम्भव हो गया। रूसो का समझौता किसी चमत्कार का परिणाम लगने लगा। पशुत्व का जीवन जीने वाले रातोंरात नागरिक बन गए। इस विसंगति को दूर करने के लिए रूसो ने सामान्य इच्छा का सिद्धान्त प्रतिपादित किया। रूसो ने इस सिद्धान्त द्वारा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता तथा सामाजिक सत्ता में समन्वय का प्रयास किया है। रूसो के सामान्य इच्छा के सिद्धान्त को समझने के लिए सबसे पहले 'यथार्थ या स्वार्थी' इच्छा तथा वास्तविक या आदर्श इच्छा में भेद करना आवश्यक है। सामान्यतः इन दोनों इच्छाओं का एक ही अर्थ लिया जाता है।
परन्तु रूसो द्वारा इनका प्रयोग विशेष अर्थ में किया गया है।
1. यथार्थ या स्वार्थी इच्छा (Actual Will) यह व्यक्ति की क्षणिक आवेग से उत्पन्न इच्छा है। यह सदैव निम्न व परिवर्तनशील कोटि की होती है। यह प्रत्येक क्षण व्यक्ति का स्वार्थ देखने के लिए उठती है। इससे सारे समाज को स्थायी आनन्द प्राप्त नहीं होता। यह इच्छा स्वार्थ-प्रेरित, संकीर्ण और अस्थिर है। इसे व्यक्तिगत या ऐन्द्रिक इच्छा का नाम भी दिया गया है। इसी इच्छा के कारण व्यक्ति दूसरों से झगड़ता रहता है। आशीर्वादन के अनुसार "यह व्यक्ति की समाज विरोधी इच्छा है। यह क्षणिक एवं तुच्छ इच्छा है। यह संकुचित तथा स्वविरोधी भी है।"
2. वास्तविक इच्छा (Real Will) वास्तविक इच्छा निश्चित और स्थिर होती है। इसमें स्वार्थ सार्वजनिक हित के अधीन रहता है। यह शाश्वत, विवेकपूर्ण एवं सामाजिक कल्याण के हित में होती है। इस इच्छा से व्यक्ति अपने हित को सार्वजनिक हित के रूप में देखता है। यह मनुष्य की श्रेष्ठता तथा स्वतन्त्रता की द्योतक है। नागरिक के बौद्धिक चिन्तन का परिणाम एवं वैयक्तिक स्वार्थ से रहित होने के कारण यह व्यक्ति की आदर्श इच्छा भी कही जा सकती है। वास्तविक इच्छा निर्विकार, नित्य और स्थिर है। डॉ. आशीर्वादन के अनुसार "यह जीवन के सभी पहलुओं पर व्यापक रूप में दष्टिपात करती है। यह विवेकपूर्ण इच्छा है। यह व्यक्ति तथा समाज के सामंजस्य में प्रदर्शित होती है। "
वास्तविक इच्छा व स्वार्थी इच्छा के अन्तर को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है यदि एक व्यक्ति रिश्वत लेकर नौकरी देता है तो यह उसकी स्वार्थी या यथार्थ इच्छा है। यदि वह रिश्वत न लेकर नौकरी देता है तो यह उसकी वास्तविक या आदर्श इच्छा है।
सामान्य इच्छा का अर्थ (Meaning of General Will)
सामान्य इच्छा राज्य के सभी नागरिकों की वास्तविक या आदर्श इच्छाओं का योग है। इस इच्छा द्वारा वे अपने व्यक्तिगत हितों की कामना न करके सार्वजनिक कल्याण की कामना करते हैं, यह सभी के कल्याण के लिए सभी की आवाज है। बोसाँके के अनुसार- "सामान्य इच्छा सम्पूर्ण समाज की सामूहिक अथवा सभी व्यक्तियों की ऐसी इच्छाओं का समूह है जिसका लक्ष्य सामान्य हित है।" समाज में व्यक्तिगत हितों का सामाजिक हितों के साथ समन्वय और सामंजस्य ही सामान्य इच्छा है। समझौतावादी विचारक रूसो के अनुसार "नागरिकों की वह इच्छा जिसका उद्देश्य सामान्यहित हो, सामान्य इच्छा कहलाती है। ग्रीन के शब्दों में, “सामान्य हित ही सामान्य चेतना है।” वेपर के अनुसार- "सामान्य इच्छा नागरिकों की वह इच्छा है जिसाक
उद्देश्य ही सबकी भलाई है, व्यक्तिगत स्वार्थ नहीं। यह सबकी भलाई के लिए सबकी आवाज है।" रूसो के अनुसार- "जब बड़ी संख्या में लोग आपस में एकत्रित होकर अपने को ही एक समुदाय का निर्माता मान लेते हैं तो उनसे केवल एक ही इच्छा का निर्माण होता है जिसका सम्बन्ध पारस्परिक संरक्षण और सबके कल्याण से होता है। यही सार्वभौमिक इच्छा है। "
सामान्य इच्छा का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व सामान्य हित पर आधारित अर्थात् आदर्श या वास्तविक इच्छा है। रूसो ने स्वयं कहा है- "मतदाताओं की संख्या से कम तथा उस सार्वजनिक हित की भावना से अधिक इच्छा सामान्य बनती है, जिसके द्वारा वे एकता में बँधते हैं। इससे स्पष्ट है कि सामान्य इच्छा का निर्माण दो तत्त्वों से होता है सामान्य व्यक्तियों की इच्छा तथा सार्वजनिक हित पर आधारित इच्छा। इनमें यथार्थ व वास्तविक इच्छा ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। हम सबकी इच्छा पर चलकर सामान्य इच्छा पर पहुँचते हैं। व्यक्ति अपने व्यक्तिगत द ष्टिकोण के अनुसार विभिन्न समस्याओं पर चिन्तन करता है। यह चिन्तन उनकी व्यक्तिगत या वास्तविक इच्छा जहाँ-जहाँ एक-दूसरे को रद्द कर देती है। अतः उनकी वास्तविक इच्छा उमर कर ऊपर आ जाती है जो सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति है। इस प्रकार सामान्य इच्छा का निर्माण होता है।
सामान्य इच्छा का निर्माण
व्यक्ति में दो प्रकार की इच्छाएँ यथार्थ तथा वास्तविक होती हैं। यथार्थ इच्छाएँ भावना प्रधान होती हैं, जबकि वास्तविक इच्छाएँ भावना प्रधान नहीं होतीं। ये वास्तविक अर्थात् आदर्श इच्छाएँ इसलिए कहलाती हैं कि इनमें स्वार्थ की भावना का समावेश नहीं होता। यथार्थ इच्छाएँ हमेश पक्षपातपूर्ण व स्वार्थी होती हैं। वास्तविक इच्छा हमेशा कल्याणकारी होती है। यह किसी की अहित नहीं करती। यदि मनुष्य के स्वभाव में से यथार्थ या स्वार्थी इच्छाओं को निकाल दिया जाए तो वास्तविक इच्छा ही शेष बचेंगी। अतः सामान्य इच्छा व्यक्ति की सभी वास्तविक या आदर्श इच्छाओं का योग है। वास्तविक इच्छाएँ ही निर्णय लेने वाली इच्छाएँ हैं। सामान्य इच्छा के निर्माण को एक उदाहरण देकर समझाया जा सकता है- एक व्यक्ति के पास कक', ख ख, ग ग इच्छाएँ हैं। इनमें क, ख, ग, भावना प्रधान इच्छाएँ है। ये स्वार्थी या व्यक्तिगत हित पर आधारित इच्छाएँ हैं। यदि इनको व्यक्ति की इच्छाओं में से निकाल दिया जाए तो शेष क, ख, ग बचेंगी। ये वास्तविक या आदर्श इच्छाएँ हैं। क + ख' + ग का योग सामान्य इच्छा है। अतः सामान्य इच्छा के निर्णय के निर्णय आदर्श होते हैं और सभी उसका पालन करते हैं। सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए विषयों को सामान्य हित के रूप में देखना चाहिए।
सामान्य इच्छा और बहुमत की इच्छा (General Will and Will of Majority)
रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए मतदाताओं की संख्या नहीं, बल्कि सार्वजनिक का विचार ही प्रधान होता है। रूसो के अनुसार "जो तत्त्व इच्छा को सामान्य बनाता है, वह इसे रखने वाले व्यक्तियों की संख्या नहीं, अपितु वह सार्वजनिक हित है जो उन्हें एकता के सूत्र में बाँधता है।" बहुसंख्यक मतदाता सार्वजनिक हित के बदले सामूहिक स्वार्थ का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं अर्थात् वे सार्वजनिक हित के विपरीत कार्य कर सकते हैं। रूसो के अनुसार- "समाज के समस्त सदस्यों की इच्छाओं का कुल योग सामान्य इच्छा कभी नहीं हो सकता, क्योंकि समस्त सदस्यों की इच्छाओं में सदस्यों के व्यक्तिगत स्वार्थों का मिश्रण होता है, जबकि सामान्य इच्छा का सम्बन्ध केवल सामान्य हितों से होता है।" सर्वसम्मति सामान्य इच्छा की कसौटी नहीं हो सकती। सामान्य इच्छा बहुमत की इच्छा से सर्वथा अलग है। सामान्य इच्छा लोक-कल्याण के उद्देश्य से प्ररित है।
सामान्य इच्छा और सर्वसम्मति से इच्छा (General Will and Will of All)
रूसो ने इन दोनों में भेद किया है। समस्त सदस्यों की इच्छाओं में व्यक्तिगत हितों का समावेश होता है। सामान्य इच्छा का सम्बन्ध सामान्य हितों से ही होता है। रूसो के अनुसार- "सामान्य इच्छा का लक्ष्य सार्वजनिक होता है, जबकि सर्वसम्मति या सभी की इच्छा का लक्ष्य वैयक्तिक हित होता है। यह सभी द्वारा व्यक्त इच्छा भी हो सकती है। सर्वसम्मति व्यक्तियों के हितों से भी सम्बन्धित हो सकती है, पर सामान्य इच्छा अनिवार्यतः सारे समाज के कल्याण से ही सम्बन्धित होती है। "
सामान्य इच्छा और लोकमत (General Will and Public Opinion)
रूसो सामान्य इच्छा और लोकमत में अन्तर स्पष्ट करता है। लोकमत का रूप हमेशा समाज की भलाई नहीं है। कभी-कभी लोकमत समाज के हित में नहीं होता। परन्तु सामान्य इच्छा सदैव समाज के स्थायी हित का ही प्रतिनिधि होती है। प्रचार साधनों; जैसे- रेडियो, टी. वी., समाचार-पत्र व पत्रिकाओं आदि द्वारा लोकमत पथभ्रष्ट हो सकता है, परन्तु सामान्य इच्छा कभी भ्रष्ट नहीं होती।
सामान्य इच्छा की विशेषताएँ (Characteristics of General Will)
रूसो द्वारा प्रतिपादित सामान्य इच्छा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं :-
1. सामान्य इच्छा सम्प्रभुतासम्पन्न है (General Will is Sovereign) :
सामान्य इच्छा सर्वोच्च और सम्प्रभु होती है। इस पर किसी प्रकार के देवी और प्राकृतिक नियमों का प्रतिबन्ध नहीं होता। यह कानून का निर्माण करती है, धर्म का निरूपण करती है, एवं नैतिक और सामाजिक जीवन को संचालित करती है। जो सामान्य इच्छा की अवज्ञा करता है, उसे इसका पालन करने के लिए बाध्य किया जा सकता है। यह जनवाणी होती है, इसलिए कोई अवहेलना नहीं कर सकता। सामान्य इच्छा सभी की शक्ति, अधिकार और हितों का योग है। अतएव सामान्य इच्छा सम्प्रभु है। यह कल्याणकारी निर्णय लेती है और निर्णयों को क्रियान्वित करती है। इसमें बाध्यता की शक्ति है। सामान्य इच्छा समुदाय की प्रभुसत्ता की अभिव्यक्ति है जिसे टाला नहीं जा सकता। प्रत्येक व्यक्ति सामान्य इच्छा के आदेशों के पालन के लिए बाध्य है। सामान्य इच्छा व्यक्ति पर दबाव डाल सकती है। अतः सामान्य इच्छा ही सम्प्रभु है।
2.अविभाज्य (Indivisibile)
रूसो का मानना है कि सामान्य इच्छा को सम्प्रभुता से अलग नहीं किया जा सकता। सामान्य इच्छा सम्प्रभु होती है और सम्पूर्ण समाज में निवास करती है। आधुनिक बहुलवादियों की तरह रूसो की सामान्य इच्छा छोटे-छोटे भागों में नहीं बँट सकती। यहाँ रूसो सर्वसत्ताधिकारवादी राज्य का समर्थक है। विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका सम्प्रभु के आदेशों का पालन करती है, लेकिन स्वयं सम्प्रभु नहीं बन सकती। वे सरकार का अंग मात्र है, सम्प्रभु नहीं। अतः सामान्य इच्छा अविभाज्य है।
3. प्रतिनिधियों द्वारा अभिव्यक्ति नहीं (Unrepresentable)
रूसो के अनुसार जनता अपनी सम्प्रभुता को किसी एक व्यक्ति अथवा व्यक्ति समूह के सामने समर्पित नहीं कर सकता। अर्थात् सामान्य इच्छा प्रतिनिधियों द्वारा अभिव्यक्त किये जाने योग्य नहीं है। रूसो ने कहा है- "जब कोई राष्ट्र प्रतिनिधियों को नियुक्त करता है तब स्वतन्त्र नहीं रह जाता, अपना अस्तित्व कायम नहीं रख सकता। संसद के सदस्यों के केवल निर्वाचन के समय ही इंगलैण्ड की जनता स्वतन्त्र होती है। निर्वाचनों के बाद जनता दास और नगण्य बन जाती है। "
4. सामान्य इच्छा एकता स्थापित करती है (Establishes Unity) :
सामान्य इच्छा सदैव युक्तिसंगत होती है। सामान्य इच्छा विभिन्नता में एकता स्थापित करती है, क्योंकि राज्य के व्यक्तिगत स्वार्थ उसमें विलीन हो जाते हैं। लार्ड के अनुसार- "यह राष्ट्रीय चरित्र की एकता को उत्पन्न और स्थिर करती है और उन समान गुणों में प्रकाशित होती है जिनके किसी राज्य के नागरिकों में होने की आशा की जाती है। व्यक्तियों की स्वार्थमयी इच्छाएँ परस्पर एक-दूसरे की इच्छाओं को समाप्त कर देती हैं जिससे सामान्य इच्छा का उदय होता है। सभी व्यक्ति सार्वजनिक हित में ही अपने निजी हितों का दर्शन करते हैं।
5 सामान्य इच्छा अदेय है (General Will is Inalienable):
रूसो की सामान्य इच्छा अदेय है। इसे हस्तांतरित नहीं किया जा सकता। यह समाज का प्राण होती है। शक्ति तो किसी को दी जा सकती है, इच्छा नहीं। सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति सम्पूर्ण समाज ही कर सकता है। सामान्य इच्छा को दूसरे को सौंपने का अर्थ उसे नष्ट करना है। रूसो ने लिखा है- "जिस समय वहाँ कोई स्वामी नहीं होता है, उसी क्षण सम्प्रभु का अस्तित्व नष्ट हो जाता है और राजनीतिक समुदाय नष्ट होता है। "
6. सामान्य इच्छा स्थायी है (General Will is Permanent):
रूसो के अनुसार "सामान्य इच्छा का कभी अन्त नहीं होता, यह कभी भ्रष्ट नहीं होती। यह अपरिवर्तनशील तथा पवित्र होती है।" सार्वजनिक हित का मार्ग एक ही हो सकता है,
इसलिए सामान्य इच्छा स्थिर और निश्चित है। ज्ञान और विवेक पर आधारित होने के कारण यह स्थायी है। यह किसी प्रकार के भावात्मक आवेगों का परिणाम नहीं है अपितु मानव के जन-कल्याण की स्थायी प्रवत्ति और विवेक का परिणाम है। अतः इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
7. सामान्य इच्छा का सम्बन्ध जनहित से होता है (General Will is related to Public Interest):
रूसो की सामान्य इच्छा लोक कल्याण से सम्बन्ध रखती है। सामान्य इच्छा का उद्देश्य समाज के किसी एक अंग का विकास करना न होकर, सम्पूर्ण समाज का कल्याण करना है, रूसो का यह विचार सर्वसत्ताधिकारवादी विचार का पोषक है।
8. सामान्य इच्छा में बाध्यता की शक्ति है (Coersive Force):
रूसो की सामान्य इच्छा सम्प्रभु होने के कारण बाध्यता की शक्ति रखती है। उसका उद्देश्य सभी का कल्याण है, इसलिए कोई उसके विरुद्ध कदम नहीं उठा सकता। उसके पास कानून बनाने तथा दण्ड देने की शक्ति होती है। यदि यह शक्ति न हो तो कोई उसका पालन नहीं करेगा।
9. सामान्य इच्छा और सदैव न्यायशील है (Always Just) :
सामान्य इच्छा सदैव न्यायशील होती है क्योंकि उसका उद्देश्य सदैव सामान्य होता है। रूसो के अनुसार- "सामान्य इच्छा सदैव ही विवेकपूर्ण एवं न्यायसंगत होती है क्योंकि जनता की वाणी वास्तव में देववाणी होती है। यह सभी की सामूहिक सदिच्छा है। इसमें कोई सदस्य अन्यायपूर्ण कार्य नहीं कर सकता।
10. सामान्य इच्छा स्वतन्त्रता और समानता की पोषक है :
रूसो के अनुसार- "सामाजिक संविदा में यह बात निहित है कि जो कोई भी सामान्य इच्छा की अवज्ञा करेगा तो उसे सम्पूर्ण समाज द्वारा ऐसा करने के लिए विवश किया जाएगा।" इसका अर्थ है कि उसे स्वतन्त्र होने के लिए बाध्य किया जाएगा क्योंकि यह वही शर्त है जो कि प्रत्येक व्यक्ति को उसके देश को देकर उसकी समस्त व्यक्तिगत अधीनता को सुरक्षित करती है। सामान्य इच्छा ही सभ्य समाज में स्वतन्त्रता को स्थापित करने का उपाय है। राज्य की अधीनता में सभी को समान अधिकार होते हैं और सभी को समान कानूनों का पालन करना पड़ता है, इसलिए सम्प्रभु समानता का पोषक है।
11. सामान्य इच्छा अचूक होती है (General Will is Infalliable):
रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा कोई गलती नहीं करती। "यह सदैव न्यायोचित होती है और सदैव सार्वजनिक हित के लिए प्रयत्नशील रहती है।" यह सभी व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का योग होने के कारण न्यायसंगत व उचित होती है।
12. सामान्य इच्छा अपने को कानून द्वारा अभिव्यक्त करती है :
रूसो सिर्फ उन्हीं मौलिक कानूनों को कानून मानता है जिनसे संविधान का निर्माण होता है। मौलिक कानूनों की उत्पत्ति सामान्य इच्छा से होती है। सामान्य इच्छा का कार्य कानून बनाना है, उन्हें लागू करना नहीं। कानून का उद्देश्य किसी विशेष व्यक्ति या वर्ग का हित न होकर सार्वजनिक कल्याण होता है। अतः रूसो की इच्छा की अभिव्यक्ति का माध्यम कानून ही है। 13. सामान्य इच्छा का स्वरूप अवैयक्तिक और निस्वार्थ है रूसो के अनुसार सामान्य हित के लिए सामान्य इच्छा का जन्म होता है। अतः वह सामान्य हित के मार्ग से हटकर कार्य नहीं कर सकती। वह सदैव जनकल्याण और जन सेवा की भावना से प्रेरित होती है। अतः यह निस्वार्थ और अवैयक्तिक है।
14. सामान्य इच्छा कार्यपालिका की इच्छा नहीं हो सकती :
सामान्य इच्छा का कार्य केवल कानून बनाना है, उसे लागू करना नहीं। कानून को लागू करना सरकार का काम है। रूसो समुदाय और सरकार में भेद करते हुए कहता है कि कानून को लागू करना सम्प्रभु सत्ताधारी राजनीतिक समुदाय का काम नहीं है, यह तो सरकार का है। जिस समय सामान्य इच्छा सरकार के कार्य अर्थात् कानून को लागू करने का प्रयास करेगी, सामान्य इच्छा कहलाने से वंचित हो जाएगी। अतः सामान्य इच्छा कार्यपालिका की इच्छा नहीं हो सकती।
सामान्य इच्छा के निहितार्थ (Implications of General Will)
रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा के निम्नलिखित निहितार्थ हैं :-
1. सामान्य इच्छा सभी कानूनों का स्रोत है। इसका कार्य कानून बनाना है।
2. सामान्य इच्छा हमेशा जनकल्याण के लिए होती है। प्रत्येक व्यक्ति उसकी आज्ञा का पालन करने के लिए बाध्य होता है।
3. न्याय का निर्धारण सामान्य इच्छा से होता है। सामान्य इच्छा जितनी अधिक सामान्य होती है, उतनी ही न्यायपूर्ण होती है।
4. राज्य में मनुष्यों की सावयविक एकता सामान्य इच्छा का महत्त्वपूर्ण परिणाम है।
5. सामान्य इच्छा का लक्ष्य सदैव सामान्य हित होता है। अतः सामान्य इच्छा सम्पूर्ण समाज के कल्याण के लिए सदैव प्रयत्नशील रहती है।
6. यह सदैव सार्वजनिक हित का पोषण करने वाली होती है।
7. सामान्य इच्छा सदैव न्यायपूर्ण होती है।
सामान्य इच्छा सिद्धान्त का महत्त्व (Importance of Theory of General Will)
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त का महत्त्व निम्न तथ्यों के आधार पर आँका जा सकता है :-
1. आदर्शवादी विचारधारा पर प्रभाव:
रूसो के इस सिद्धान्त ने हीगल, काण्ट और ग्रीन जैसे आदर्शवादियों पर गहरा प्रभाव डाला है। काण्ट ने रूसो की तरह सामान्य इच्छा को कानून का स्रोत माना है। काण्ट की 'शुभ इच्छा', विवेक का आदेश' का सिद्धान्त रूसो से प्रेरित है। हीगल का विश्वात्मा का विचार भी रूसो की सामान्य इच्छा के समान है। ग्रीन भी राज्य का आधार इच्छा को मानता है। अतः रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त के आदर्शवाद को प्रभावित किया।
2. राष्ट्रवाद का प्रेरक :
रूसो की सामान्य इच्छा में राष्ट्रवाद के प्रेरक तत्त्वों एकता, समता, समर्पण, आत्मीयता तथा सम्मान की भावना आदि का समोवश है। अतः यह राष्ट्रवाद का प्रेरक है।
3. लोकतन्त्रीय व्यवस्था का समर्थक :
रूसो की सामान्य इच्छा बहुमत द्वारा व्यक्त होती है और बहुमत ही लोकतन्त्र का आधार है। रूसो के इस सिद्धान्त ने लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया है। उसने सार्वजनिक हित को प्रधानता देकर लोकतन्त्र का समर्थन किया है।
4. राज्य का आधार जनसमूह की इच्छा है शक्ति नहीं :
रूसो ने स्पष्ट कर दिया है कि राज्य का आधार जनसमूह की इच्छा है, शक्ति नहीं। यह राज्य के आंगिक सिद्धान्त का बोध कराता है। सार्वजनिक हित को व्यक्तिगत हितों से ऊपर रखता है। यह स्वार्थ की जगह परमार्थ की सीख देता है। यह व्यक्ति को पाशविक स्तर से उठाकर नैतिक स्तर पर प्रतिष्ठित करना चाहता है। अतः राज्य की प्रमुख शक्ति जन इच्छा है, बल नहीं।
5. राज्य का उद्देश्य जनकल्याण है :
रूसो के इस सिद्धान्त के अनुसार आधुनिक कल्याणकारी राज्य का जन्म होता है। : इस सिद्धान्त ने राज्य का उद्देश्य जन-कल्याण है। राज्य किसी वर्ग-विशेष का प्रतिनिधि न होकर सार्वजनिक हित के लिए है।
सामान्य इच्छा सिद्धान्त की आलोचनाएँ (Criticisms of Theory of General Will)
अपने महत्त्वपूर्ण योगदान के बावजूद भी रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त की निम्न आलोचनाएँ हुई हैं :-
1. अस्पष्टता :
रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त में अस्पष्टता पाई जाती है। रूसो यह बताने में असमर्थ रहा है कि हम सामान्य इच्छा को कैसे और कहाँ प्राप्त कर सकते हैं। रूसो ने हमें ऐसी स्थिति में छोड़ दिया है, जहाँ हम सामान्य इच्छा के बारे में नहीं जान सकते। वेपर के अनुसार "जन सामान्य इच्छा का पता ही हमें रूसो नहीं दे सकता तो इस सिद्धान्त के प्रतिपादन का क्या लाभ हुआ।" रूसो द्वारा सामान्य इच्छा की व्याख्या सामान्य इच्छा को समझने के लिए अपर्याप्त है। कहीं-कहीं पर रूसो बहुमत की इच्छा को सामान्य मान लेता है। वह स्वयं स्पष्ट करता है कि बहुमत गलती कर सकता है, जबकि सामान्य इच्छा गलती नहीं कर सकती। अतः इस सिद्धान्त में आमकता, कल्पना और अस्पष्टता का दोष विद्यमान है।
2. रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धान्त प्रतिनिधि लोकतन्त्र के लिए अनुपयुक्त है। सामान्य इच्छा की प्रभुसत्ता की व्याख्या करते हुए रूसो ने यह विचार प्रकट किया है कि प्रभुसत्ता का प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता अर्थात् सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शासन में भाग लेते हैं। परन्तु यह आधुनिक राज्यों में सम्भव नहीं है। इसमें केवल जन-प्रतिनिधि ही शासन कार्यों में भाग लेते हैं।
3. रूसो ने यथार्थ इच्छा तथा वास्तविक इच्छा में भेद किया है। यह विभाजन काल्पनिक व कृत्रिम है।
4. रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धान्त सार्वजनिक हित के लिए है। उसका विचार है कि सामान्य इच्छा का लक्ष्य जनकल्याण है। सार्वजनिक हित की परिभाषा देना कठिन काम है। तानाशाह भी अपने कार्यों को उचित सिद्ध करने के लिए सार्वजनिक हित का बहाना बना सकता है।
5.सामान्य इच्छा आधुनिक युग के बड़े राज्यों के लिए अनुपयुक्त है। जनसंख्या की कमी के कारण छोटे राज्यों में सामान्य इच्छा का पता लगाना आसान है, बड़े राज्यों में नहीं।
6. रूसो के सामान्य इच्छा की व्याख्या पर भी आलोचकों ने प्रहार किया है। रूसो वास्तविक इच्छाओं के योग को सामान्य इच्छा का नाम देता है। टोजर के अनुसार "यह भी सम्भव है कि व्यक्तिगत इच्छाएँ एक-दूसरे को नष्ट न करें।"
7.रूसो के पास समस्त की इच्छा और सामान्य इच्छा में अन्तर करने का कोई मापदण्ड नहीं है।
8. सामान्य इच्छा की एक आलोचना यह भी है कि "जहाँ तक यह सामान्य होती है, यह इच्छा नहीं होती, जहाँ तक यह इच्छा होती है, यह सामान्य नहीं होती।” इसका अर्थ यह है कि इच्छा व्यक्तिगत ही हो सकती है, सामान्य नहीं। सामान्य इच्छा सामान्य तभी होती है जब व्यक्तियों का मन अलग नहीं हो, परन्तु ऐसा नहीं होता। प्रत्येक व्यक्ति का मन अलग-अलग होता है, जिसमें स्वार्थ और निःस्वार्थ इच्छाएँ पनपती हैं।
9. रूसो के सिद्धान्त में व्यक्ति अपने समस्त अधिकारों तथा शक्तियों को सामान्य इच्छा के सामने समर्पित कर देता है जो कि सर्वोच्च शक्ति के रूप में शासन करती है। बहुमत से सहमत न होने वाले व्यक्ति को बहुमत के सामने झुकने के लिए विवश किया जाता है। रूसो का उद्देश्य व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सुरक्षित करना था परन्तु उसने किसी संरक्षण की व्यवस्था नहीं की।
10. रूसो की धारणा काल्पनिक है। रसेल, ब्राऊन, मुरे आदि विचारकों ने उस पर अधिनायकवाद और सर्वसत्तधिकारवादी होने का आरोप लगाया है। राईट के अनुसार- "रूसो की सामान्य इच्छा एक हवाई उड़ान है। वह एक ऐसी तर्कना है जो तथ्यों की पहुँच से परे तथा परिणामों की चिन्ता से ऊपर शून्य उड़ान भरती है।"
11. यह अव्यावहारिक है। रूसो का मानना है कि सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग लेते हैं। यह स्थिति यूनान के नगर राज्यों पर ही लागू हो सकती है। आधुनिक युग तो अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि प्रजातन्त्र का युग है।
12. रूसो के सामान्य इच्छा सिद्धान्त में तार्किक असंगति है। एक तरफ तो रूसो कहता है कि प्रभुसत्ता का प्रतिनिधित्व नहीं हो सकता और दूसरी ओर वह बहुमत के माध्यम से सामान्य इच्छा के प्रतिनिधित्व की सम्भावना प्रस्तुत करता है।
13. सामान्य इच्छा अनैतिहासिक तथा काल्पनिक है। इतिहास में इस बात का कोई वर्णन नहीं मिलता कि राज्य उत्पत्ति समझौते द्वारा हुई हो।
14. यह सिद्धान्त दलों द्वारा तथा गुटों का विरोध करता है। आधुनिक प्रजातन्त्र के सफल संचालन में राजनीतिक दलों का बहुत महत्त्व है। अतः निष्कर्ष तौर पर कहा जा सकता है कि रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धान्त अनेक त्रुटियों से ग्रस्त होनेके बावजूद भी आधुनिक राजनीतिक विचारकों के लिए अमूल्य सामग्री पेश करता है। उसके इस सिद्धान्त का आदर्शवादियों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। उसने मार्क्स व हीगल जैसे विचारकों को भी प्रभावित किया है। लोकतन्त्रीय व्यवस्था का समर्थक होने के साथ-साथ यह सिद्धान्त फ्रांस में राज्य क्रान्ति का सूत्रधार भी है। रूसो ने स्पष्ट किया है कि नैतिकता, न्याय और सद्गुण के अभाव में लोकतांत्रिक संस्थाएँ महत्त्वहीन हैं। रूसो विश्व क्रान्तियों के प्रेरणा-स्रोत रहे हैं। उसकी राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में यह अमूल्य देन है।