जॉन स्टुअर्ट मिल जीवन परिचय || John Stuart Mill Biography

जॉन स्टुअर्ट मिल जीवन परिचय  || John Stuart Mill Biography

जॉन स्टुअर्ट मिल (John Stuart Mill)

परिचय (Introduction )

जॉन स्टुअर्ट मिल उपयोगितावादी दर्शन को एक नई दिशा प्रदान करने वाला अन्तिम उपयोगितावादी विचारक था। उसके विचारों में व्यक्तिवाद व उदारवाद का उचित सामंजस्य पाया जाता है। उसका प्रमुख ग्रन्थ 'ऑन लिबर्टी' (On Liberty) ने संसार के सभी लेखकों का ध्यान आकृष्ट किया है। उसकी राष्ट्रवादी भावना ने भी एशिया के देशों पर अमिट छाप छोड़ी है। उसने स्त्री- मताधिकार का समर्थन करके स्वयं को स्त्री जाति का ऋणी बना लिया है। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य तो उपयोगितावाद की काया पलट करना हैं उसने उपयोगितावाद के उन सभी दोषों के निवारण का प्रयास किया है, जो उसके पूर्ववर्ती चिन्तकों के दर्शन में थे। सत्य तो यह है कि राजनीतिक चिन्तन के विकास में उसका अमूल्य एवं महान् योगदान है।

जीवन परिचय (Life Sketch)

उपयोगितावाद के अन्तिम प्रबल समर्थक जॉन स्टुअर्ट मिल का जन्म 20 मई, सन् 1806 ई. को लन्दन में हुआ। वह अपने पिता जेम्स मिल (1773-1836 ) की प्रथम सन्तान था । उसके पिता स्वयं उपयोगितावादी सुधारक होने के नाते उसे उपयोगितावादी शिक्षा देना चाहते थे। जॉन स्टुअर्ट मिल स्वयं भी एक प्रतिभाशाली बालक था। उसने मात्र 3 वर्ष की आयु में ही ग्रीक तथा 8 वर्ष की आयु में लैटिन भाषा सीख ली थी। उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उसके पिता जेम्स मिल ने उसे अपने निर्देशन व अनुशासन में रखा। उसने अपने पिता के मार्ग-दर्शन में ही जेनोफोन, हेरोडोटस, आइसोक्रेटस, प्लेटो, होमर, थ्यूसीडाइटस, अरिस्टोफेन्स, डेमोन्सथेनीज, अरस्तू, एडम स्मिथ, रिकार्डो आदि के ग्रन्थों का गहन एवं तर्कपूर्ण अध्ययन किया। वह एक एकान्तप्रिय एवं अध्ययन प्रेमी विचारक था। वह किसी से मिलना नहीं चाहता था, इसलिए उसे मानसिक तनाव ने घेर लिया। इसलिए उसके पिता ने उसे 1820 में फ्रांस भेज दिया ताकि वह स्वास्थ्य लाभ पा सके। वहाँ उसने बेन्थम के छोटे भाई सैमुअल के पास रहकर प्राकृतिक सौन्दर्य का भरपूर आनन्द उठाया। इससे उसे मानसिक तनावों से मुक्ति मिली और वह वापिस आकर इंगलैण्ड में रहकर अध्ययन में जुट गया।

वापिस लौटकर जॉट स्टुअर्ट मिल ने बेन्थम की पुस्तक 'कानून के सिद्धान्त' का अध्ययन किया। तत्पश्चात् उसने प्रसिद्ध विधि-वेता जॉन ऑस्टिन से कानून की शिक्षा प्राप्त की। वह मात्र 16 वर्ष की आयु में ही एक प्रौढ़ विद्वान् बन चुका था। 1823 में उसे ईस्ट इण्डिया कम्पनी में क्लर्क की नौकरी मिल गई और वह इस पद पर 1858 तक कार्यरत रहा। यहाँ रहकर उसे शासन सम्बन्धी समस्याओं का गहरा अनुभव प्राप्त हुआ। 1826 में उसके जीवन में कठोर बौद्धिक अनुशासन के कारण मानसिक संकट पैदा हो गया। इस दौरान उसने वर्ड्सवर्थ एवं कॉलरिज की कविताएँ पढ़। इससे उसके स्वभाव व चिन्तन में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ। अब उसके अन्दर एक नवीन मानव का जन्म हुआ। इसके बाद 1831 में उसका परिचय श्रीमती हैरियट टेलर नामक सम्भ्रान्त महिला से हुआ । उसकी मित्रता ने उसके मानसिक तनाव को दूर कर दिया। दोनों की प्रगाढ़ मित्रता टेलर के पति की म त्यु के पश्चात् 1851 में परिणय सूत्र में बदल गई। इसके बाद दोनों ने पारस्परिक सहयोग से रचनाएँ लिखीं। मिल ने स्वयं कहा है- "श्रीमती टेलर बुद्धि और प्रतिभा की साकार प्रतिमा थी।" उसने अपने जीवन के शेष वर्ष अपनी पत्नी की मत्यु (1858 ई.) के बाद 'एविग्वान' नामक नगर में अपनी पत्नी की कब्र के पास बिताए। 1865 में वह वेस्टमिंस्टर निर्वाचन क्षेत्र से संसद सदस्य चुना गया। 1866 से 1868 तक भी वह संसद सदस्य रहा। इस दौरान उसने आयरलैण्ड में भूमि सुधार, किसानों की स्थिति, महिला मताधिकार, बौद्धिक कार्यकारियों की स्थिति, श्रमिक वर्ग के हितों आदि के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। लेकिन वह जन नायक नहीं बन सका। ग्लैडस्टन ने कहा है- "राजनीतिज्ञ के रूप में उसके असफल होने का कारण उसके आगे बढ़े हुए विचारों की अपेक्षा उसकी समझ बूझ एवं व्यवहार की कमियाँ थीं।" लेकिन इस कथन में पूर्ण सच्चाई नहीं है। मिल एक असाधारण, श्रेष्ठ एवं संत कोटि का विचारक था। उसमें बौद्धिक प्रतिभा, आन्दोलनकारी क्षमता, संवेदनशील हृदय, स्नेही प्रवत्ति एवं स्वतन्त्रता के प्रति अथाह प्रेम का सुन्दर समन्वय था। स्वयं ग्लैडस्टन ने स्वीकार किया है- "जब जॉन बोलता था तो मुझे यह अनुभूति होती थी कि मैं एक सन्त की वाणी सुन रहा हूँ।" 1873 में उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई और उसे उसकी पत्नी की कब्र में ही दफना दिया गया।

मिल पर प्रभाव (Influence on Mill)

जान स्टुअर्ट मिल को प्रभावित करने वाली दो प्रमुख घटनाएँ हैं : प्रथम उसके पिता का अनुशासन तथा दूसरी उसकी पत्नी टेलर का चरित्र। जॉन स्टुअर्ट का पिता एक कठोर अनुशासन वाला व्यक्ति था। अपने अध्ययन कार्य की अधिकता व कठोर नियमों में बँधा होने के कारण मिल को मानसिक अवसाद का सामना करना पड़ा। उसे बेन्थम का सुखवाद निरर्थक प्रतीत हुआ । उसने कहा है- "मैं उन विचारों व परिवर्तनों को मूर्त रूप देने में लगा रहा, जिन्हें यदि क्रियात्मक रूप दे भी दिया जाए तो मुझे महान् आनन्द और सुख कभी प्राप्त नहीं हो सकता।" उसे अनुभव हुआ कि कोरा ज्ञान मानवीय भावनाओं व अनुभूतियों को सन्तुष्ट नहीं कर सकता। इसलिए उसने बेन्थम के उपयोगितावाद को निरर्थक मान लिया। इससे उसके चिन्तन में महान् क्रान्ति आई। उसने कॉलरिज तथा वर्ड्सवर्थ की कविताओं की मदद से अपने को मानसिक अवसाद के सागर से बाहर निकाला। इससे उसके अन्दर मानव संवेदनाओं को समझने की महान् क्षमता पैदा हुई। उसने बेन्थम के उपयोगितावादी दर्शन में परिवर्तन करने शुरू कर दिए। उसने स्वयं कहा है- "मैं पीटर हूँ जिसने अपना गुरु नकार दिया है। "

उसके चिन्तन को प्रभावित करने वाली दूसरी घटना उसकी श्रीमती टेलर के साथ प्रगाढ़ मित्रता थी। टेलर के पति की म त्यु के बाद उसने उससे विवाह कर लिया। उसके बाद दोनों ने मिलकर रचनाएँ लिखीं। उसने अपनी पत्नी टेलर के साथ मिलकर 'ऑन लिबर्टी' (On Liberty ) नामक ग्रन्थ की रचना की। टेलर के व्यक्तित्व और कुशाग्र बुद्धि से प्रभावित होकर मिल ने 'दि सबजेक्शन ऑफ विमैन ' (The Subjection of Women) नामक पुस्तक लिखी।

इस प्रकार बेन्थम के उपयोगितावाद अपने पिता जेम्स मिल द्वारा उपयोगितावाद के विकास का उस पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। एडम स्मिथ तथा रिकार्डो जैसे अर्थशास्त्रियों ने भी उसके चिन्तन को प्रभावित किया। उसकी पत्नी टेलर तथा कॉलरिज व वर्ड्सवर्थ जैसे कवियों ने भी उसके मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ी।

महत्त्वपूर्ण रचनाएँ ( Important Works)

जॉन स्टुअर्ट मिल एक तर्कशील व बुद्धिमान लेखक था। उसने अपनी प्रतिभा के 'राजनीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, अध्ययनशास्त्र, आचारशास्त्र तथा न्यायशास्त्र आदि विषयों में जौहर दिखाए। उसकी रचनाओं पर उसके पिता जेम्स व बेन्थम का प्रभाव परिलक्षित होता है। 

उसकी रचनाओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है :- 

(i) उसके जीवनकाल की रचनाएँ 

(ii) उसकी मत्यु के बाद की रचनाएँ।

प्रथम कोटि की रचनाओं में निम्नलिखित रचनाएँ शामिल हैं:-

1. सिस्टम ऑफ लॉजिक (System of Logic. 1843) 

2. दि प्रिंसिपल्स ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी (The Principles of Political Economy, 1848)

3. ऑन लिबर्टी (On Liberty, 1859)

4. थॉटस ऑन पार्लियामेण्टरी रिफोर्म (Thoughts on Parliamentary Reform 1859) 

5. कंसीडरेशन ऑफ रिप्रेजेण्टेटिव गवर्नमेंट (Consideration on Representative Government, 1860 )

6. यूटिलिटेरियनिज्म (Utilitarianism, 1863)

7. दि सब्जेक्शन ऑफ विमैन (The Subjection of Women, 1869 )
उसके जीवनकाल में ये रचनाएँ ही लिखी गई। परन्तु उसकी म त्यु के बाद भी उसके शुभचिन्तकों ने उसकी रचनाओं को प्रकाशित करवाया।

उसकी मत्यु के बाद (1873 ई.) की रचनाएँ निम्नलिखित हैं :-

1. आटोबायोग्राफी (Autobiography, 1873)

2.एसेज ऑन रिलीजन (Essays on Religion, 1874)

3. लैटरस (Letters, 1910)

मिल की रचनाएँ उसकी बहुमुखी प्रतिभा को साकार करने वाले प्रतिबिम्ब हैं। उसकी रचनाएँ उसके व्यक्तित्व को प्रकट करने वाली तथा जीवन के सत्य पहलुओं पर प्रकाश डालने वाली जीवन गाथाएँ हैं।

अध्ययन की पद्धति (Method of Study)

जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपनी पुस्तक 'सिस्टम ऑफ लॉजिक' (System of Logic) में समाजशास्त्रों के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक पद्धति' (Scientific Method) के बारे में चर्चा की हैं उसका कहना था कि समाजशास्त्र की पद्धतियों को भी प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों की तरह ही कठोर बनाना चाहिए। उसने अपने अध्ययन में चार तरह की पद्धतियों का वर्णन किया है।  

उसकी प्रमुख पद्धतियाँ निम्नलिखित हैं :-

ऐतिहासिक पद्धति (Historical Method) में किसी भी वस्तु अथवा विचार के उद्भव और विकास के इतिहास का अध्ययन किया जाता है। मिल का मानना है कि ऐतिहासिक पद्धति आगमनात्मक होती है। वह मानव व समाज को परिवर्तनशील मानकर उसके परिवर्तनों का इस विधि से अध्ययन करना चाहता है। उसका मानना है कि किसी विशिष्ट समय में सामाजिक परिस्थितियाँ ही समाज का स्वरूप निर्धारित करती है। परन्तु कई बार ऐतिहासिक तथ्य और घटनाएँ कालांतर में सामान्यकृत हो जाते हैं। इससे इस विधि की सत्यता व विश्वसनीयता कम हो जाती है।

प्रयोगात्मक पद्धति (Experimental Method) किसी विशिष्ट अनुभव पर आधारित होती है। इसको रासायनिक पद्धति भी कहा जाता है। इसके अन्तर्गत रसायनशास्त्री की तरह समाजशास्त्र के विद्वान् विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों को मिलाकर सामान्य सिद्धान्त के निर्माण के प्रयास करते हैं। मिल की धारणा है कि सामाजिक परिस्थितियाँ सदैव बदलती रहती हैं। किसी एक घटना को दूसरी घटना से जोड़ना तर्कसंगत नहीं हो सकता। इसलिए यह पद्धति भी राजनीतिशास्त्र के अध्ययन के लिए उपयोगी नहीं हो सकती।

ज्यामितीय विधि (Geometric Method) भी पूर्व कतिपय नियमों पर आधारित होती है। नियमों को परिवर्तनशील समाज में लागू करना कठिन कार्य है। इससे समाज की वास्तविक घटनाओं की व्याख्या करना असम्भव होता है। समाजशास्त्र में पूर्व निर्धारित नियमों के अभाव में इसे लागू नहीं किया जा सकता।

निगमनात्मक पद्धति (Deductive Method) में निगमन तथा आगमन दोनों का सम्मिश्रण होता है। इसे भौतिक पद्धति भी कहा जाता है। इस पद्धति में किसी एक या कुछ मौलिक मान्यताओं से नहीं, अपितु अनेक पूर्वकथित तथ्यों से निगमन की प्रक्रिया शुरू की जाती है। प्रत्येक कार्य को कारण का परिणाम मानकर समाज की घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें तथ्यों का निरीक्षण, परीक्षण व परीक्षण से प्राप्त परिणामों का सामान्यीकरण करके सिद्धान्तों की रचना की जाती है। उन सिद्धान्तों को विशेष परिस्थितियों में दोबारा परीक्षण करके निश्चित रूप प्रदान किया जाता है।

इस प्रकार जॉन स्टुअर्ट मिल ने अध्ययन की चार पद्धतियों पर विस्तत चर्चा करके आगमनात्मक (Inductive) तथा निगमनात्मक (Deductive) का मिश्रित रूप स्वीकार किया है। उसने कहा है कि समाजशास्त्रों में रायायनिक व ज्यामितीय विधियों का प्रयोग नहीं हो सकता। उसने अपने अध्ययन में आगमनात्मक तरीके द्वारा उपलब्ध तथ्यों की निगमनात्मक प्रयोग करके ऐतिहासिक व भौतिक पद्धतियों को मिला दिया है। 

उसकी अध्ययन पद्धति में तीन बातें प्रमुख हैं :-

(i) अनुभव के आधार पर ऐतिहासिक तथ्यों व घटनाओं से सामान्य सिद्धान्त की खोज करना ।

(ii) अनुभव द्वारा उपलब्ध तथ्यों का निगमनात्मक प्रयोग करना ।

(iii) अनुभव के द्वारा तथ्यों की सत्यता को प्रमाणित करना ।


उसके द्वारा आगमनात्मक तथा निगमनात्मक पद्धति को मिलाना विरोधाभास पैदा करता है। इसलिए उसकी अध्ययन पद्धति को आलोचना का भी शिकार होना पड़ा है। लेकिन सेबाइन ने कहा है कि- " सामाजिक विज्ञानों को आगमनात्मक व निगमनात्मक दोनों पद्धतियों की जरूरत है।” इसलिए जॉन स्टुअर्ट मिल की पद्धति को समाजशास्त्री पद्धति भी कहा जा है। यह पद्धति आगमनात्मक व निगमनात्मक दोनों पद्धतियों को सामंजस्यपूर्ण प्रयोग पर आधारित है ।

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