अरस्तू का सर्वोत्तम व्यावहारिक राज्य का सिद्धान्त : मिश्रित राज्य


अरस्तू का सर्वोत्तम व्यावहारिक राज्य का सिद्धान्त : मिश्रित राज्य(Theory of Best Practical State: Mixed State)

संविधानों का वर्गीकरण करने के बाद अरस्तू इस बात पर विचार करता है कि कौन-सा संविधान अधिकांश राज्यों के लिए अधिक मान्य हो सकता है और व्यावहारिक द ष्टि से अधिक उपयोगी हो सकता है। अरस्तू की नजर में ऐसा राज्य वही है जिसमें शासन सत्ता सर्वश्रेष्ठ व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित हो। इसलिए वह प्लेटो के आदर्शवाद के विपरीत यथार्थवादी धरातल पर उतर कर विचार करता है कि ऐसा राज्य काफी प्रयत्न से ढूंढा जा सकता है। ऐसा राज्य लोकतन्त्र तथा अल्पतन्त्र की ताओं को त्यागने से ही प्राप्त हो सकता है। इसलिए अरस्तू व्यावहारिक धरातल पर उतरकर समाज के लिए उपयोगी शासन प्रणाली का विकल्प तलाश करते हैं। यह उपयोगी व उत्तम शासन-प्रणाली मध्य मार्ग में ही प्राप्त हो सकती है। अरस्तू का मानना है कि अति के मार्ग की अपेक्षा मध्यमार्ग अधिक उपयोगी हो सकता है। अरस्तू ने मध्यम मार्ग को 'गोल्डन मीन' (Golden Dream) कहा है, जो परस्पर विरोधी तत्त्वों का औसत है। अरस्तू न तो धनी वर्ग के शासन को श्रेष्ठ मानता है और न ही अति निर्धन एवं निर्बुद्धि लोगों के शासन को ही आदर्श मानता है। अरस्तू का विश्वास है कि मध्य वर्ग के लोग विवेकशील; व्यावहारिक, मैत्री भाव वाले तथा स्वातन्त्र्य-प्रिय होते हैं। इन गुणों के आधार पर ही राज्य का स्थायित्व निर्भर करता है। अरस्तू की मूल धारणा यह है कि श्रेष्ठता मध्यमान में पाई जाती है, अतियों में नहीं। अरस्तू के विचारनुसार यह निष्कर्ष निकलता है कि वह राज्य जो मध्यम वर्ग पर आधारित है, अवश्यम्भावी रूप से श्रेश्ठ होगा। अरस्तू का मानना है कि अमीर व्यक्ति अनुशासनहीन,अहंकारी व महत्त्वाकांक्षी होते हैं। दूसरी तरफ गरीब लोग हीनता की भावना से ग्रसित होते हैं। वे अपनीदास मनोव त्ति के कारण विवेक का अनुसरण नहीं करते। निर्धनों में शासन करने की योग्यता नहीं होती। वे घ णा और द्वेष के पुजारी होते हैं। अतः न तो अत्यधिक अमीरों का शासन ही उचित है और न ही अत्यधिक गरीबों का इन दोनों वर्गों में परस्पर स्नेह न होने के कारण उनमें किसी तरह की कल्पना भी नहीं की जा सकती। अरस्तू का विचार है कि इन दोनों वर्गों में एकता पैदा करने के लिए मध्यम वर्ग का विकास करना जरूरी है। मध्यम वर्ग में सदैव मित्रता तथा समानता रहती है। अरस्तू इस मध्यम वर्ग के शासन को 'पॉलिटी' (Polity) का शासन कहता है। यद्यपि उत्कृष्टता की द ष्टि से पॉलिटी ( संवैधानिक सरकार) का स्थान चौथा है फिर भी अरस्तू उसे 'सर्वोत्तम व्यावहारिक राज्य' मानता है। अरस्तू का कहना है कि- "राजनीतिक समाज का सर्वोत्तम रूप वह है जिसमें सत्ता मध्यम वर्ग में निहित हो।" ऐसा राज्य स्थायी, सुखी व सम द्ध राज्य होगा, जहाँ न तो कोई असमानता होगी और न ही कोई अराजकता तथा अशान्ति। इस प्रकार अरस्तू को 'पॉलिटी' के शासन में न तो धनी वर्ग व निर्धन वर्ग आपस में धन की कामना करते हैं और न ही वे एक-दूसरे के विरुद्ध षड्यन्त्र करते हैं। अरस्त स्वयं स्वीकार करता है कि अधिकांश राज्यों में या तो भीड़तन्त्र होता है या कुलीनतन्त्र । संयत प्रजातन्त्र (Polity) तो कम ही राज्यों में पाया जाता है। फिर भी राजनीतिक व मानवीय जगत् की वास्तविकताओं की द ष्टि से 'पालिटी' एक उत्तम व्यावहारिक शासन है।

मध्यवर्गीय शासन के पक्ष में तर्क (Arguments for Middle-Class Rule)

अरस्तू उस शासन-प्रणाली को सर्वोत्तम मानता है जिसमें मध्यम वर्ग की प्रधानता हो अर्थात् एक मिश्रित राज्य हो। अरस्तू अपने मिश्रित राज्य के पक्ष में निम्न तर्क प्रस्तुत करता है :-

1. धनी या निर्धन वर्ग का राज्य दूषित होता है अत्यधिक निर्धन तथा धनी व्यक्तियों की प्रवत्ति धूर्ततापूर्ण कार्यों की ओर होती है। ये दोनों वर्ग आपराधिक प्रव त्ति के होते हैं। इनमें विवेक व ज्ञान का अभाव होता है। अतः जिस राज्य में इनका बाहुल्य होता है वह राज्य दूषित होता है।

2.मिश्रित राज्य स्वतन्त्र होते हैं (Mixed State is an Independent State) धनी वर्ग अनुशासनहीन व अवज्ञाकारी होता है ओर निर्धन वर्ग हीनता की भावना के कारण दास मनोव त्ति से ग्रसित रहते हैं जिसके वे अच्छे शासक नहीं बन सकते। अतः जिस राज्य में केवल इन्हीं दो वर्गों की प्रधानता हो वह राज्य स्वतन्त्र मनुष्यों का राज्य बनने की बजाय केवल दासों और स्वामियों का ही राज्य होता है।

3. मध्यमवर्ग धनी और निर्धन वर्गों का विश्वासपात्र होता है (Middle Class is Trustworthy ) अरस्तू का विचार है। कि धनी और निर्धन दोनों ही वर्ग मध्यम वर्ग पर समान रूप से विश्वास करते हैं, लेकिन वे एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करते। इस प्रकार धनी-निर्धन के झगड़ों से समाज का कभी भी भला नहीं हो सकता। अतः मध्यम वर्ग ही धनी-गरीब के मतभेदों को समाप्त करने में अहम् भूमिका निभा सकता है।

4. मिश्रित राज्य संघर्ष मुक्त, स्थायी और सुरक्षित होते हैं (Mixed State is Free of Conflict; Stable and Safe) : दासों और स्वामियों में विभाजित राज्यों में निर्धनों से सम्पन्न व्यक्तियों के प्रति द्वेष भावना उत्पन्न होती है और धनी लोग गरीबी से घणा करते हैं। ऐसे में राज्य में कलह और संघर्ष की भावना का विकास होता है जिससे उस राज्य की शान्ति और एकता की भावना नष्ट होती है। अतः मध्यम वर्ग वाला राज्य ही अधिक स्थिर व सुरक्षित रहता हैं।

5.मिश्रित राज्य विधिकर राज्य है (Rule of Law) : व्यावहारिक द ष्टि से अरस्तू किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की सम्प्रभुत्ता में विश्वास नहीं रखता तथा विधि की सम्प्रभुता और शासन समझता है। मिश्रित राज्य कानून पर आधारित राज्य होत है जिसे अरस्तू सर्वोत्तम मानता है। 

6.मिश्रित राज्य समानता पर आधारित होता है (Equality) राज्य का मुख्य लक्ष्य समाज में व्याप्त विषमताओं का अन्त करके समानता स्थापित करना है। जिस राज्य में मध्यम वर्ग की प्रधानता रहती है, वहाँ विषमताओं का अन्त करके समानता पर आधारित समाज की स्थापना का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। 6.

7. सामाजिक न्याय पर आधारित होता है (Social Justice) : अरस्तू का मिश्रित राज्य कुलीनतन्त्र व भीड़तन्त्र दोनों के दोषों से मुक्त होता है। इसमें अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं रहता। शासन स्वर्णिम मध्यमार्ग पर टिका होता है। इसलिए सामाजिक अन्याय की गुंजाइश ही नहीं रहती। अतः मध्यमार्ग पर आधारित राज्य सामाजिक न्याय का संस्थापक होता है।

8. मध्यवर्ग का शासन उत्तरदायी शासन होता है। इसमें जनता की भावनाओं का पूरा ख्याल रखा जाता है। इन सब कारणों से अरस्तू मध्यमवर्ग पर आधारित शासन व्यवस्था को श्रेष्ठ मानता है। इसमें दोनों शासन प्रणालियों (भीडतन्त्र व कुलीनतन्त्र) के दोषों से छुटकारा मिल जाता है। इसलिए व्यावहारिक द ष्टि से भी यह अधिक उपयोगी रहती है। अतः ऐसी शासन-व्यवस्था ही सुरक्षा, सुव्यवस्था और स्थिरता की द ष्टि से सबसे अधिक उपयुक्त होती है। शासन प्रणालियों का श्रेष्ठता क्रम

अरस्तू के मतानुसार वही शासन व्यवस्था सबसे अच्छी है जिसमें सम्प्रभुता मध्यम वर्ग में निहित है। अरस्तू ने ऐसी शासन व्यवस्था को शुद्ध जनतन्त्र (Polity) का नाम दिया है। अरस्तू का निष्कर्ष व्यावहारिकता पर आधारित है, सैद्धान्तिकता पर नहीं । सैद्धान्तिक दष्टि से तो अरस्तू राजतन्त्र को ही श्रेष्ठ मानता है। उत्कृष्टता की दष्टि में 'पॉलिटी' का चौथा स्थान है। 

अरस्तू ने उत्कृष्टता के क्रम में सरकारों या शासन प्रणालियों का निम्न वर्गीकरण किया है :-

1. आदर्श राजतन्त्र (Ideal Royalty )

2. विशुद्ध कुलीनतन्त्र (Pure Aristocracy)

3. मिश्रित कुलीनतन्त्र (Mixed Aristocracy)

4. शुद्ध जनतन्त्र (Polity)

5.अधिकतम उदार जनतन्त्र (Most Moderate Democracy)

6. अधिकतम उदार धनिकतन्त्र (Most Moderate Oligarchy)

7. जनतन्त्र और धनिकतन्त्र के बीच दो प्रकार (Two Forms in between Democracy and Oligarchy )

8.अतिवादी जनतन्त्र (Exreme Democracy)

9. अतिवादी धनिकतन्त्र (Extreme Oligarchy)

10. निरंकुशतन्त्र (Tyranny)

इस श्रेष्ठता क्रम से स्पष्ट है कि प्राथमिकता की द ष्टि से शुद्ध जनतन्त्र चौथे स्थान पर है लेकिन व्यावहारिकता के आधार पर यह सबसे अच्छी व्यवस्था है क्योंकि इसमें संख्या और सद्गुण दोनों का अच्छा मिश्रण और सन्तुलन है। यह शासन पद्धति जनतन्त्र के अनुसार नागरिकों की संख्या को तथा कुलीनतन्त्र के अनुसार उनके विभिन्न सद्गुणों को उचित महत्त्व देती है। इसमें उग्र वर्गों का आधिपत्य समाप्त हो जाता है। यह शासन प्रणाली दोनों शासन प्रणालियों के गुणों का समन्वित रूप है। इसमें संघर्ष और क्रान्ति की सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं। यह स्थायी और सर्वोत्तम शासन प्रणाली है।

अरस्तू का मानना है कि राज्य के विभिन्न कार्यों को करने के लिए शासन व्यवस्था के तीन अंग होने चाहिएं। ये तीन अग - राजनीति का निर्धारण करने वाला अंग विधायी, उसे कार्यान्वित करने वाला अंग कार्यकारी तथा न्याय प्रदान करने वाला अंग न्यायिक होने चाहिए। विधायी कार्यों को सम्पन्नकरने के लिए नागरिकों की एक लोकप्रिय सभा होनी चाहिए। कार्यकारी कार्यों को सम्पन्न करने के लिए प्रशासकों का एक वर्ग होना चाहिए जो विधायिका द्वारा निर्मित कानून के अनुसार शासन संचालन का कार्य करे तथा न्यायिक कार्य करने हेतु एक न्याय व्यवस्था होनी चाहिए। इन अंगों में पदाधिकारियों की नियुक्ति के बारे में अरस्तू का विचार है कि अतिवादी या भ्रष्ट जनतन्त्र के अनुसार सभी को सभी प्रकार के पदों पर नियुक्त किए जाने की प्रथा उचित नहीं है। इससे राज्य की दक्षता, स्थिरता और एकता नष्ट होती है। अतः विभिन्न शासकीय अंगों में नियुक्ति की वही प्रथा अच्छी समझी जाती है जहाँ पर विभिन्न पदों की नियुक्ति हेतु नागरिकों के लिए सम्पत्ति तथा अन्य प्रकार की योग्यताएँ निर्धारित की जाती हैं और उनकी पूर्ति करने वाले नागरिकों को उन पर नियुक्त किया जाता है।

आलोचनात्मक मूल्यांकन (Critical Evaluation )

प्रो. मैक्सी के अनुसार- "अरस्तु के मध्यवर्गीय शासन के सिद्धान्त की सैद्धान्तिक स्तर पर सत्यता विवादास्पद हो सकती है, क्योंकि मध्यवर्गीय शासन सामान्यतः राज्य की नींव के लिए कोई उज्ज्वल आदर्श नहीं है।" इस आलोचना का कोई विशेष आधार नहीं है। इसलिए अरस्तू का मिश्रित राज्य का सिद्धान्त भीड़तन्त्र तथा कुलीनतन्त्र के वर्गगत् दोषों को दूर करने का सर्वोत्तम प्रयास है। यह सन्तुलित और स्थिर शासन व्यवस्था का आधार है। अरस्तू ने तत्कालीन यूनानी राज्यों में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए इसका प्रतिपादन किया था। उस समय धनी वर्ग स्वार्थ सिद्धि में लगा हुआ था । गरीब वर्ग भी शासन में भागीदार बनने पर सत्ता का प्रयोग अमीरों के विरुद्ध करता था। इस प्रकार समाज में संघर्ष की स्थिति थी। अरस्तू ने तत्कालीन यूनानी समाज को वर्ग संघर्ष और अशान्ति से छुटकारा दिलानेके लिए मिश्रित राज्य के सिद्धान्त की योजना प्रस्तुत की थी। यद्यपि यह सिद्धान्त अपनी भी कुछ त्रुटियों का शिकार था लेकिन इसके बावजूद भी इस सिद्धान्त को तत्कालीन यूनान में ही नहीं, बल्कि आधुनिक युग में भी महत्त्व दिया गया है। यह मध्यम वर्ग को जनतन्त्र की रीढ़ बताकर मिश्रित राज्य को सर्वोत्तम व्यावहारिक राज्य का दर्जा देता हैं ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि मध्यवर्ग के लोगों का शासन अधिक स्थायी, टिकाऊ और सुशासित राजनीतिक समाज की स्थापना करने में अग्रणी रहा है। यदि हमें आधुनिक युग में लोकतन्त्र को सुरक्षित बनाना है तो हमें अरस्तू के सर्वोत्तम व्यावहारिक राज्य की नींव मजबूत बनाना होगा और राजनीतिक चिन्तन में अरस्तू के इस में योगदान को महत्त्वपूर्ण रूप से स्वीकारना होगा ।

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