अरस्तू के क्रांति सम्बन्धी विचार Theory of Revolution

अरस्तू के क्रांति सम्बन्धी विचार (Theory of Revolution)

 

क्रान्ति का सिद्धान्त (Theory of Revolution)

अरस्तू के समय में ही यूनान में क्रान्तियों द्वारा राजनीतिक सत्ता में परिवर्तन होने लगे थे। इससे यूनान में राजनीतिक अराजकता व अस्थिरता का वातावरण पैदा हो गया था। अरस्तू के लिए राजनीतिक स्थिरता के उपाय व अस्थिरता के कारण खोजना आवश्यक हो गया था। अरस्तू ने इन राजनीतिक परिवर्तनों को क्रान्तिया विद्रोह (Revolution) का नाम दिया है। अरस्तू ने अपनी पुस्तक 'पॉलिटिक्स' (Politics) के पाँचवें भाग में क्रान्ति के कारणों व उन्हें रोकने के साधनों की चर्चा की है। अरस्तू ने 158 देशों के संविधानों का अध्ययन करके क्रान्ति के कारण व उपायों का वर्णन किया है। अतः अरस्तू का क्रान्ति की समस्या का अध्ययन काल्पनिक न होकर व्यावहारिक है। अरस्तू ने अल्पतन्त्रवादियों, प्रजातन्त्रवादियों, कुलीनतन्त्रवादियों, राजतन्त्रों व निरंकुश शासकों को क्रान्ति रोकने के उपदेश दिए हैं। सेबाइन ने लिखा है- “क्रान्तियों से सम्बन्धित 'पॉलिटिक्स' के ये पष्ठ अरस्तू की राजनीतिक अन्तर्द ष्टि तथा यूनानी शासन-प्रणालियों के बारे में उसके अधिकारपूर्ण ज्ञान को प्रकट करते हैं।" इसी प्रकार अरस्तू के अध्ययन की श्रेष्ठता स्वीकार करते हुए गैटेल कहता है- "पॉलिटिक्स राजनीतिक दर्शन का क्रमबद्ध अध्ययन नहीं है, अपितु शासन की कला पर लिखा गया ग्रन्थ है। इसमें अरस्तू ने यूनानी नगर राज्यों में प्रचलित बुराइयों तथा उनकी राजनीतिक प्रणालियों के दोषों का विश्लेषण किया है, और ऐसे व्यावहारिक सुझाव दिए हैं जिनके द्वारा भविष्य में आने वाले भयोत्पादक संकटों से सर्वोत्तम ढंग से बचा जा सकता है।"



अरस्तू के अनुसार क्रान्ति का अर्थ (Aristotle's Meaning of Revolution)

अरस्तू का क्रान्ति से अभिप्राय आधुनिक अर्थ से अलग है। आधुनिक युग में क्रान्ति से तात्पर्य उन सभी सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तनों से है जिनसे समाज की काया पलट जाती है और समाज को विकास की नई दिशा मिलती है। फ्रांसीसी क्रान्ति, रूसी क्रान्ति, चीन की क्रान्ति विश्व प्रसिद्ध क्रान्तियाँ हैं । इन्होंने वहाँ की शासन व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया था।

अरस्तु के अनुसार जनता द्वारा राज्य के किसी भाग या सम्पूर्ण भाग में विद्रोह का नाम क्रान्ति नहीं है। अरस्तू के अनुसार- "क्रान्ति का अर्थ संविधान में छोटा या बड़ा परिवर्तन है।" अरस्तू क्रान्ति का दोहरा अर्थ स्वीकार करता है। अरस्तू सर्वप्रथम छोटे-मोटे हर परिवर्तन को क्रान्ति का नाम देते हैं। जैसे राजतन्त्र से कुलीनतन्त्र, लोकतन्त्र कम लोकतन्त्र, लोकतन्त्र द्वारा अल्पतन्त्र को हटा देना, अल्पतन्त्र द्वारा लोकतन्त्र को हटा देना, ये सभी घटनाएँ चाहे बड़ी हों या छोटी क्रान्ति के अन्तर्गत आती हैं। ये घटनाएँ संविधान के बदलने पर आधारित होती है। किन्तु कई बार शासन बदल गया है, लेकिन संविधान में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसे अरस्तू क्रान्ति के दूसरे अर्थ में प्रयुक्त करता है। अरस्तू कहता है कि यदि संविधान को बदले बिना शासन दूसरे के हाथ में चला जाए तो समझो क्रान्ति हो गई है उदाहरण के लिए एक निरंकुश शासक के स्थान पर दूसरे निरंकुश शासक का आ जाना क्रान्ति है। इस प्रकार अरस्तू हर छोटे बड़े परिवर्तन को क्रान्ति मानते हैं।

क्रान्ति के प्रकार (Kinds of Revolution)

अरस्तू ने क्रान्ति के निम्नलिखित प्रकार बताए हैं :

1. पूर्ण और आंशिक क्रान्ति (Complete and Partial Revolution) : जब क्रान्ति द्वारा संविधान को सम्पूर्ण रूप में बदल दिया जाए अथवा राज्य के सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं प्रशासनिक ढाँचे में परिवर्तन आ जाए तो ऐसी क्रान्ति पूर्ण क्रान्ति होती है। यदि यह परिवर्तन संविधान के एक भाग हो तो उसे आंशिक क्रान्ति कहा जाता है। अरस्तू ने 'पालिटिक्स' के पाँचवें अध्याय में लिखा है कि- "पूर्ण क्रान्ति वह है जब उससे शासन व्यवस्था में पूर्ण परिवर्तन होता हो, जैसे निरंकुशतन्त्र, जनतन्त्र में बदल जाए। आंशिक क्रान्ति तब होती है, जब शासन के किसी विभाग में उग्र परिवर्तन हो जाए।"

2. व्यक्तिगत और अव्यक्तिगत क्रान्ति (Personal and Impersonal Revolution) अरस्तू के अनुसार जब संविधान में परिवर्तन किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति को पदच्युत करने से होता है तो उसे वैयक्तिक क्रान्ति कहा जाता है। जब संविधान में परिवर्तन का उद्देश्य गैर-व्यक्तिगत होता है तो उसे व्यक्तिगत क्रान्ति की संज्ञा दी जाती है।

3. रक्तपूर्ण और रक्तहीन क्रान्ति (Bloody and Bloodless Revolution) : अरस्तू के अनुसार राज्य में शासन या संविधान में विद्रोह, खून-खराबा या रक्तपात द्वारा परिवर्तन लाया जाए तो उसे रक्तपूर्ण या हिंसक क्रान्ति कहा जाता है। जब संविधान में परिवर्तन संवैधानिक व शान्तिपूर्वक तरीके से किया जाए तो उसे रक्तहीन या अहिंसक क्रान्ति कहा जाता है।

4. जनतन्त्रीय और धनतन्त्रीय क्रान्ति (Democratic and Oligarchic Revolution) : जब राज्य के निर्धन व्यक्ति राजा या धनी व्यक्तियों के विरुद्ध विद्रोह करके राज्य में जनतन्त्र की स्थापना करते हैं तो उसे जनतन्त्रीय क्रान्ति कहा जाता है। जब राज्य के धनी व्यक्ति जनतन्त्रीय या राजतन्त्रीय शासन के विरुद्ध विद्रोह करके अपने शासन की स्थापना करते हैं तो उसे धनतन्त्रीय क्रान्ति कहा जाता है।

5. किसी वर्ग विशेष के विरुद्ध क्रान्ति (Revolution Against a Particular Class) : यदि क्रान्ति का उद्देश्य किसी वर्ग विशेष को सत्ता से हटाकर संवैधानिक परिवर्तन करना है तो ऐसी क्रान्ति वर्ग विशेष के विरुद्ध क्रान्ति कहलाती है। 6. बौद्धिक क्रान्ति (Intellectual Revolution) : जब किसी राज्य में कुछ नेता लोग अपने जोशीले व्याख्यानों व भाषणों से जनता की भावना उभार कर क्रान्ति ला दें तो ऐसी क्रान्ति बौद्धिक क्रान्ति कहलाती है।

क्रान्तियों के उद्देश्य (Aims of Revolution)


अरस्तू के अनुसार कोई भी क्रान्ति निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है :-

1. प्रचलित संविधान के स्थान पर अन्य संविधान की स्थापना; जैसे राजतन्त्र को हटाकर कुलीनतन्त्र की स्थापना करना । 

2. प्रचलित संविधान में ही शासक वर्ग के व्यक्तियों को बदल देना; जैसे पुराने राजा के स्थान पर नए राजा की नियुक्ति करना।

3. प्रचलित संविधान में गुणात्मक परिवर्तन करना; जैसे लोकतन्त्र को उदारवादी लोकतन्त्र बनाना,

4. प्रचलित संविधान के रहते हुए ही किसी नए पद की स्थापना करना या पुराने पद को समाप्त करना ।

क्रान्ति के कारण (Causes of Revoloution)

अरस्तू ने क्रान्ति के तीन कारण बताए हैं :- 

 (क) सामान्य कारण (General Causes)

(ख) विशिष्ट कारण (Particular Causes)

(ग) विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रान्तियों के विशिष्टीकरण (Causes of Revolution in Differecnt Kinds of State)

(क) सामान्य कारण (General Causes)

1. सामाजिक असमानता : अरस्तू के अनुसार क्रान्ति का मुख्य कारण समानता और न्याय की इच्छा है। जब सामाजिक असमानता पैदा होती है तो साथ में ही क्रान्ति या विद्रोह की ज्वाला भी सुलगने लगती है। अरस्तू के या क्रान्ति का कारण सदैव असमानता में पाया जाता है।” अरस्तू का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के समान बनना अनुसार- "विद्रोह चाहता है। आम व्यक्ति भी विशेष अधिकारी, शक्तियों और अवसरों को प्राप्त करना चाहता है। बहुसंख्यक वर्ग सम्पन्न अल्पसंख्यक वर्ग से घ णा करने लगता है। ऐसे में क्रान्ति का वातावरण अल्पसंख्यक वर्ग से घणा करने लगता है। ऐसे में क्रान्ति का वातावरण तैयार हो जाता है। उस राज्य में क्रान्तियाँ बार-बार होती हैं जिसमें असमानता की मात्रा ज्यादा होती है।

2. अरस्तू के अनुसार लाभ तथा सम्मान के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी क्रान्ति या विद्रोह होता है। कई बार असम्मान या हानि से बचने के लिए भी विद्रोह होता है।

3.कई बार ध ष्टता या भय की भावना भी क्रान्ति को जन्म देती है।

4. राज्य के किसी अंग का असमानुपाती विस्तार भी क्रान्ति को जन्म देता है।

5. कई बार व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता की भावना के कारण भी क्रान्ति या विद्राह करते हैं।

(ख) क्रान्ति के विशिष्टीकरण(Particular Causes)

अरस्तू ने सामान्य कारणों की व्याख्या करने के बाद क्रान्ति के विशेष कारणों का वर्णन किया है। ये कारण निम्नलिखित हो सकते हैं :-

1. शासकों की धष्टता (Insolence on the Part of Authority): जब शासक जनता के हितों की अनदेखी करके संविधान का उल्लंघन करते हैं तो ऐसी स्थिति में राज्य का अस्तित्व व जनता का जीवन दोनों खतरे में पड़ जाते हैं; जिसके परिणामस्वरूप जनता ऐसे धूर्त शासक के विरुद्ध विद्रोह कर बैठती है।

2. लाभ एवं सम्मान की इच्छा (Desire of Gain and Honour) प्रत्येक व्यक्ति लाभ व सम्मान चाहता है। जिस राज्य में अयोग्य व्यक्ति लाभान्वित एवं सम्मानित किए जाते हैं, तो स्वाभाविक है कि लाभ व सम्मान की योग्यता व इच्छा रखने वाला व्यक्ति विद्रोह कर बैठता है।

3.किसी रूप में श्रेष्ठता का अस्तित्व (Feeling of Superiority) : जब कुछ लोग धन या यश के कारण स्वयं को श्रेष्ठ समझने लगते हैं तो वे जनता का विश्वास खो देते हैं और विद्रोह का शिकार होते हैं।

4. भय की भावना (Feeling of Fear) : अरस्तू के अनुसार भय भी क्रान्ति को जन्म देता है। अपराधी व्यक्ति भय के कारण दण्ड से बचने के लिए क्रान्ति करते हैं या ऐसे व्यक्ति जिन्हें अन्याय की आशंका हो वे भी विद्रोह करते हैं। इस तरह अविश्वास से भय और भय से क्रान्ति का जन्म होता है।

5.घृणा  (Contempt) : धनिकतन्त्र में जब धनिक शासक वर्ग अधिकार वंचित गरीब जनता को तिरस्कारपूर्ण ढंग से देखता है तो दरिद्र वर्ग उससे नाराज होकर उसके विरुद्ध विद्रोह कर देता है। जनतन्त्र में भी धनी व्यक्ति राज्य में व्याप्त अव्यवस्था और अराजकता के कारण निर्धन वर्ग से घणा करने लगते हैं तो क्रान्ति का सूत्रपात होता है।

6. राज्य के किसी अंग का असमानुपाती विस्तार (Disproportionate Increase of a Part of the State) : यह विस्तार प्रादेशिक, सामाजिक, आर्थिक या अन्य किसी भी प्रकार का हो सकता है। राज्य का असमानुपाती विस्तार राज्य के लिए उसी प्रकार घातक है, जिस प्रकार शरीर के लिए किसी अंग में अनावश्यक व द्धि।

7. शासक की असावधानी (Wilful Neglect of Rulers) : कई बार शासक अयोग्य व्यक्तियों को उच्च पदों पर नियुक्त कर देता है जो संविधान के प्रति जागरूक नहीं होते। ऐसे व्यक्ति भी अवसर मिलने पर विद्रोह कर देते हैं।

8. विदेशियों का बाहुल्य (Large Inflow of Foreigners) : कई बार जरूरत से ज्यादा विदेशी राज्य में आ जाएं तो वहाँ परस्पर विरोधी संस्कृतियों की टकराहट भी विद्रोह को जन्म देती है। जैसे भारत में पुर्तगालियों व अंग्रेजों के हितों का टकराव भी इसका कारण था।

9. अल्प परिवर्तनों की उपेक्षा (Neglect of Minor Changes) :
शासन में समयानुसार छोटे-मोटे परिवर्तन शासक के लिए अपरिहार्य होते हैं। यदि शासक वर्ग इनकी उपेक्षा करता है तो वह विद्रोह को जन्म दे सकता है। जैसे अम्ब्रेसिया में पहले ऑफिस के लिए निम्नतम योग्यता निर्धारित की गई; किन्तु बाद में इसे हटा दिया या कुछ परिवर्तन किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि अम्ब्रेसिया की जनता ने क्रान्ति कर दी।

10. जातीय विभिन्न (Racial Differences): यदि किसी राज्य में आवश्यकता से अधिक जातियों के लोग रहते हों तो उससे द्वेष, कलह और फूट के कारण राज्य में विद्रोह के आसार हो जाते हैं।

11. भौगोलिक स्थिति (Geographical Situation) : यदि राज्य नदियों, घाटियों और पर्वतों से विभिन्न टुकड़ों में बँटा हो तो उससे जनता का आपसी सम्पर्क टूट जाता है। राज्य का कोई भी हिस्सा किसी समस्या को लेकर क्रान्ति कर सकता है।

12. मध्यमवर्ग की अनुपस्थिति (Absence of Middle Class) अरस्तू ने मध्यम वर्ग को राज्य की सुरक्षा व शान्ति के लिए आवश्यक माना है। जिस राज्य में यह वर्ग नहीं होता वहाँ पर अमीर और गरीब के बीच का अन्तर संघर्ष को जन्म देता है और विद्रोह का आधार बनता है।

 13. राजवंशीय झगड़े (Dynastic Quarrels) : शासकों के आन्तरिक मतभेद और कलह कभी-कभी सारे राज्य को हानि पहुँचाते हैं। अरस्तू ने इसके लिए सिराक्यूज का उदाहरण दिया है।

14. शक्ति का दुरुपयोग (Misuse of Power): जब शासक अत्याचारी होकर जनता व अपने राजनीतिक विरोधियों पर दमनचक्र चलाता है तो उनमें आक्रोश की भावना पैदा होती है। राजशक्ति के प्रति इस आक्रोश से क्रान्ति का बिगुल बज उठता है।

15. निर्वाचन सम्बन्धी विवाद ( Election Intrigues ) : अरस्तू के अनुसार जब चुनाव प्रक्रिया में धाँधली होती है तो लोकमत का सम्मान नहीं किया जाता तो सत्तारूढ़ पक्ष के खिलाफ जनता व विपक्ष मिलकर विद्रोह कर देते हैं।

16. प्रणय सम्बन्धी झगड़ा (Quarrel Related to Marriage) : अरस्तू के अनुसार प्रणय विवाद भी क्रान्ति का कारण बन सकता है। सिरक्यूज के संविधान में परिवर्तन का मूल कारण यही था ।

(ग) विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रान्ति के विशिष्ट कारण


(I) प्रजातन्त्र में क्रान्ति (Revolution in Democracy)

अरस्तू ने प्रजातन्त्र में क्रान्ति के निम्न कारण बताए हैं :-

1.प्रजातन्त्र में क्रान्ति का मूल आधार जनांदोलन है। जब जनांदोलक व्यक्तिगत रूप से धनिक वर्ग पर अत्याचार करता है। तो संघर्ष की स्थिति पैदा होती है। 

2.जब धनिकों पर ज्यादा करों का भार डाल दिया जाता है तो तब भी क्रान्ति के आसार होते हैं।

3.जब जनांदोलक सेनापति हो, तब भी क्रान्ति का आसार बनता है। एथेन्स व मेगरा की प्रजातन्त्रीय सरकारें इसी प्रकार के आंदोलक के कारण तानाशाही में बदल गई थी।

4. प्रजातन्त्र को अधिक उदारवादी बनाने के लिए भी क्रान्ति की जाती है। यूनान के नगर राज्यों में ऐसी क्रान्तियाँ भी हुई थीं ।

(II) धनिकतन्त्र में क्रान्ति (Revolution in Oligarchy)

धनिकतन्त्र में क्रान्ति के निम्न कारण हो सकते हैं।

1. जब जनता का अधिक शोषण होता है तो लोकनायक द्वारा क्रान्ति कर दी जाती है। यदि क्रान्ति सफल होती है तो जनता का शासन स्थापित हो जाता है।

2. व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा भी क्रान्ति का कारण बनती है। यह स्पर्धा धनी शासक वर्ग में ही पाई जाती है। 

3. जब धनी व्यक्ति फिजूलखर्ची करते हैं तो उससे भी क्रान्ति के आसार बनते हैं।

4. जब धनिकतन्त्र में शासन सत्ता सीमित रहती है तो शासन के अधिकार से वंचित व्यक्ति विद्रोह कर सकते हैं।

(III) कुलीनतन्त्र में क्रान्ति (Revolution in Aristocracy)

कुलीनतन्त्र में क्रान्ति के निम्न कारण होते हैं :

1. जब शासन की बागडोर कुछ व्यक्तियों के हाथ में आ जाए तो क्रान्ति होती है। शासन से वंचित व्यक्ति विद्रोह करते हैं। 

2. जब महान् पुरुषों का अनादर किया जाता है तो क्रान्ति होती है।

3. जब युद्ध के कारण अमीर-गरीब का अन्तर बढ़ जाता है तो क्रान्ति होती है।
4. जब कोई महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति सम्पूर्ण शासन को अपने हाथ में लेना चाहता हो तो क्रान्ति होती है।

5.जब न्याय प्रणाली विकृत होती है तो क्रान्ति होती है।

(IV) राजतन्त्र में क्रान्ति (Revolution in Monarchy)

राजतन्त्र में क्रान्ति के निम्न कारण हो सकते हैं :-

1. जब राजा जनहित में कार्य न करे और जनता पर अन्याय करे तो क्रान्ति होती है।

2.जब साहसी व न्यायी व्यक्ति का अपमान किया जाता है तो क्रान्ति होती है।

3. तिरस्कार की भावना भी क्रान्ति को जन्म देती है।

4.षड्यन्त्र का भय भी क्रान्ति को जन्म देता है।

5. जब राजवंश के सदस्यों में आपसी झगड़ा हो जाए तो क्रान्ति होती है।

6.जब राजा तानाशाह बन जाता है तो क्रान्ति होती है।

(V) निरंकुशतन्त्र में क्रान्ति (Revolution in Tyranny )

1.शासक परिवार के आपसी झगड़े भी क्रान्ति को जन्म देते हैं।

2. घणा और तिरस्कार की भावना भी क्रान्ति को भड़काती है।

3. शासक के व्यक्तिगत स्वार्थ भी क्रान्ति को जन्म देते हैं।

4.योग्य व्यक्ति का अपमान भी क्रान्ति को जन्म देते हैं।

इस प्रकार अरस्तू ने विस्तारपूर्वक क्रान्ति के विभिन्न कारणों पर प्रकाश डाला है। साथ में ही उसने क्रान्ति को रोकने के उपाय भी बताए हैं।

रोकने के उपाय (Remedies)

अरस्तू ने उन सभी कारणों को जानने का प्रयास किया है जो संविधान को नष्ट करते हैं। अरस्तू ने क्रान्तियों को रोकने के लिए जो उपाए बताए हैं, वस्तुतः उनके अतिरिक्त अन्य कोई उपचार नहीं हो सकता। मैक्सी ने लिखा है- "क्रान्तियों के विषैले तत्त्वों को रोकने के लिए आधुनिक राजनीतिक विज्ञान कहीं और विश्वसनीय उपाधारों को नहीं बता सकता।" अरस्तू ने क्रान्तियों को रोकने के उपायों को दो भागों में बाँटा है-

(क) सामान्य उपाय

(ख) विशेष शासन पद्धतियों के लिए उपाय ।

(क) सामान्य उपाय (General Remedies)


अरस्तू ने क्रान्ति को रोकने के सामान्य उपाय निम्न प्रकार से बताये हैं :-

1. संविधान के अनुरूप शिक्षा (Education according to Constitution) : संविधान को स्थायी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों तथा नागरिकों को संविधान के अनुरूप शिक्षा दी जाए अरस्तू का कथन है कि यदि बच्चों को शिक्षण संस्थाओं में ही संविधान का महत्त्व समझा दिया जाए तो वे संविधान की रक्षा तथा सफलता हेतु अपने को उत्सर्ग भी कर सकते हैं। वर्तमान समय में शासन प्रणालियों के अनुरूप ही शिक्षा की व्यवस्था है। उदाहरण के लिए साम्यवादी देशों में साम्यवाद की शिक्षा बच्चों को शिक्षण संस्थाओं में दी जाती है। अतः राज्य में स्थायित्व लाने के लिए बच्चों व नागरिकों को संविधान के अनुरूप शिक्षा देना अति आवश्यक है। 

2.अच्छा शासन (Good Administration) जिस राज्य की शासन व्यवस्था दूषित होती है, वह शीघ्र ही पतन की ओर जाता है। प्रशासक तथा प्रशासनिक पदाधिकारी योग्य, ईमानदार, कर्मठ एवं न्यायी हो। घूसखोरी का नामोनिशान नहीं होना चाहिए। जिस राज्य में अच्छा शासन होता है, वहाँ क्रान्ति की सम्भावना नहीं होती। 

3.शुद्ध आचरण (Good Behaviour): जिस शासन व्यवस्था में शासकों का आचरण छल-कपट रहित होता है, वहाँ क्रान्ति के आसार नहीं होते। अतः शासक वर्ग को जनता को धोखे में नहीं डालना चाहिए। 

4.कानून का पालन (Obedience to Law) सरकार के सभी अंगों के कार्यों व शक्तियों का वर्णन संविधान में होता है। इसमें नागरिकों के अधिकारों व कर्त्तव्यों का भी वर्णन रहता है। प्रत्येक नागरिक व शासक का कर्तव्य है कि वह संविधान के कानून का पालन करे। कानून का पालन न करने से समाज व शासन में अराजकता फैल जाएगी। अतः कानून का पालन करने में ही राज्य व समाज की भलाई है। जहाँ पर कानून का शासन होता है, वहाँ पर सभी सुख व शान्ति से रहते हैं।

5 राज्यभक्त नागरिक (Loyal Citizen) : प्रत्येक राज्य में कुछ देशद्रोही होते हैं। वे संविधान व राज्य के प्रति निष्ठावान नहीं होते। स्थायी शासन प्रणाली के लिए राजभक्त नागरिकों का होना जरूरी है।

6.आंतरिक फूट नहीं (No Internal Frictions) : राज्य में नागरिकों का शासक वर्ग में आपसी दलबन्दी नहीं होनी चाहिए। राज्य में शान्ति बनाए रखने के लिए आपस में प्रेम एवं सद्भाव का होना आवश्यक है। 

7. सद्भावनापूर्ण सम्बन्ध (Harmonious Relationship) : राज्य में शांति बनाए रखने के लिए शासक व शासितों में आपसी सम्बन्ध मधुर होने चाहिए। योग्य व्यक्तियों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए।

8.शक्तियों का केन्द्रीकरण नहीं (No Concentration of Power) : शक्ति शासक वर्ग को भ्रष्ट करती है। यदि सारी शक्ति एक ही व्यक्ति के हाथ में आ जाए तो वह निरंकुश बन सकता है और अत्याचारी बन सकता है। अतः राज्य में शान्ति बनाए रखने के लिए शक्ति का समान वितरण किया जाए तथा किसी व्यक्ति या वर्ग को शक्तिशाली नहीं होने दिया जाए। 

9. न्याय (Justice) : जिस राज्य में न्याय का अभाव होता है, वहाँ जनता विद्रोह करती है। जन विद्रोह से बचने के लिए न्याय-व्यवस्था मजबूत होनी जरूरी है। न्याय पर आधारित शासन ही स्थायी होता है।

10. समानता (Equality) : समाज में अमीर व गरीब का अन्तर अधिक नहीं होना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में समानता का सिद्धान्त लागू करना चाहिए। विषमता ही क्रान्ति को जन्म देती है। अतः समाज में 'समानता का सिद्धान्त' का पालन करना चाहिए।

11. सरकारी कोष का गबन नहीं (No Misuse of Public Money) :
शासक वर्ग को सरकारी धन का जनता की भलाई के लिए ही प्रयोग करना चाहिए। जिस शासन-व्यवस्था में सरकारी धन का प्रयोग स्वार्थ सिद्धि के लिए किया जाता है, वहाँ अक्सर विद्रोह फैलने का डर रहता है।

12. राजकीय सेवाएँ (Administrative Services) :
प्रशासन को चुस्त-दुरस्त रखने के लिए उच्च अधिकारियों की सेवा अवधि कम होनी चाहिए तथा निम्न अधिकारियों की सेवा अवधि अधिक होनी चाहिए। इससे वे स्वेच्छाचारी बनने का स्वप्न नहीं लेंगे और प्रशासन में स्थायित्व व निष्पक्षता पैदा होगी।

13. सर्वोच्च पदों की योग्यताएँ (Qualifications for Higher Posts) : अरस्तू के अनुसार सर्वोच्च पदों पर नियुक्त होने वाले पदाधिकारियों में संविधान के प्रति भक्ति, प्रशासनिक क्षमता तथा गुणी व न्याय की योग्यता होनी चाहिए। अधिकारियों का चयन पदानुरूप योग्यतानुसार किया जाना चाहिए।

(ख) विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रान्ति रोकने के उपाय

अरस्तू ने क्रान्ति को रोकने के सामान्य उपायों के वर्णन के बाद विशेष शासन प्रणालियों में क्रान्ति रोकने के कुछ उपाय दिए हैं जो निम्नलिखित हैं :-

(I) प्रजातन्त्र (Democracy)

अरस्तू ने प्रजातन्त्र में क्रान्ति रोकने के निम्न उपाए बताए हैं :- 

1. शासन को जनता के स्वतन्त्रता के अधिकार पर किसी प्रकार का आघात नहीं पहुँचना चाहिए।

2.समानता के सिद्धान्त द्वारा सभी नागरिकों को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास करना चाहिए।

3. प्रजातन्त्र में बहुमत-शासन व्यवस्था कायम रखी जाए।

4. धनिकों के प्रति कोई अन्याय नहीं होना चाहिए।

5. सेनाध्यक्ष शासन नहीं होना चाहिए।

6. जनांदोलक का अन्त किया जाए।

7. शासक को शक्ति व धन का पुजारी नहीं होना चाहिए ।

यदि उपर्युक्त उपायों पर विचार किया जाए तो लोकतन्त्र सुरक्षित रह सकता है।

(II) धनिकतन्त्र (Oligarchy)

अरस्तू ने धनिकतन्त्र में क्रान्ति को रोकने के निम्न उपाय बताये हैं :-

1. राज्य में बाह्य या आन्तरिक फूट या विवाद नहीं होना चाहिए।

2. गरीबों के प्रति उदार द ष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

3. शासन को धन कमाने का साधन नहीं समझना चाहिए। 4. सरकारी कोष का सदुपयोग किया जाना चाहिए ।

(III) कुलीनतन्त्र (Aristocracy)


कुलीनतन्त्र में अरस्तू ने क्रान्ति रोकने के निम्न उपाय सुझाए हैं :-

1. शासक के जनता के साथ अच्छे सम्बन्ध होने चाहिए।

2.महान् पुरुषों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए।

(IV) राजतन्त्र (Monarchy)

राजतन्त्र में क्रान्ति रोकने के लिए निम्नलिखित उपाए बताए गए हैं :-

1. राजा को संविधान के प्रति निष्ठावान होना चाहिए।

2. राजा को जनता के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए।

(IV) निरंकुशतन्त्र (Tyranny)


अरस्तू ने निरंकुश तन्त्र की सुरक्षा व स्थायित्व के लिए निम्नलिखित तरीके बताए हैं :-
1. शासक, शासक की तरह ही शासन करे उसे जनहित की भावना का ख्याल रखने का बहाना करना चाहए। उसे एक राजा का स्वाँग रचना चाहिए।

2. उसका आचरण शुद्ध होना चाहिए।
3. उसे देवता का उपासक होना चाहिए

4. उसे अपने जीवन की रक्षा का सदैव ध्यान रखना चाहिए।

5. उसे पक्षपातपूर्ण ढंग से जनता के साथ व्यवहार करना चाहिए

6. उसे सार्वजनिक राजस्व का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

आलोचनाएँ (Criticisms)

अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचारों की कुछ आलोचनाएँ भी हुई हैं :-

1. वह एक तरफ तो निरंकुश तन्त्र को सबसे निकृष्ट शासन-प्रणाली मानता है, लेकिन दूसरी तरफ इसे स्थायित्व प्रदान करने के उपाय बताता है जो अनावश्यक और अवांछनीय प्रतीत होता है।

2. अरस्तू क्रान्ति को एक बुराई की नजर से देखता है, अच्छाई की नजर से नहीं। आलोचकों के मत में क्रान्ति द्वारा सुधार व वांछनीय परिवर्तन लाए जा सकते हैं और किसी भी व्यवस्था को उचित दिशा में स्थायित्व प्रदान किया जा सकता है।

3. अरस्तू ने 'क्रान्ति' शब्द का प्रयोग केवल संविधान और शासन प्रणालियों में परिवर्तन के अर्थ में किया है। आलोचकों का मत है कि 'क्रान्ति' शब्द इतना व्यापक है कि इसका प्रयोग किसी भी क्षेत्र में किया जा सकता है।

4. अरस्तू ने अपने विचारों से निरंकुश शासक के हाथ में कुछ ऐसी खतरनाक क्रूर और अमानुषिक युक्तियाँ दी हैं जिनसे जनता के सारे अधिकार, सारी मान-मर्यादाएँ और सम्पत्ति लूटी जा सकती है।

उपर्युक्त आलोचनाओं के बावजूद भी इन विचारों का अपना विशेष महत्त्व है। अरस्तू ने क्रान्ति के कारणों व उसे रोकने के उपायों की वास्तविक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक व्याख्या कर राजनीतिक दर्शन के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। अरस्तू द्वारा बताए गए क्रान्ति के कारण आधुनिक शासन-प्रणालियों के लिए भी मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। यदि शासकों द्वारा अरस्तू बताए गए उपचारों का पालन किया जाए तो आधुनिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में स्थायित्व का गुण पैदा किया जा सकता है। मैक्सी ने कहा है- "क्रान्ति को रोकने के जिन साधनों का प्रतिपादन अरस्तू ने किया है क्या आधुनिक राजनीतिक-विज्ञान उनसे अधिक उपयोगी व कारगार साधन प्रस्तुत कर सकता है।" अतः यह अरस्तू की महत्त्वपूर्ण देन है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.