मैकयावली का मानव स्वभाव की अवधारणा (Conception of Human Nature)
मानव स्वभाव की अवधारणा (Conception of Human Nature)
मैकयावली ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ 'दा प्रिन्स' (The Prince) तथा 'डिसकोर्सेज' (Discourses) में मानव-प्रकृति तथा स्वभाव सम्बन्धी विचारों का वर्णन किया है। मैकियावली को आज भी मानव प्रकृति की दुष्टता का प्रवक्ता माना जाता है और उनका तिरस्कार किया जाता है। उनके ग्रन्थ 'दा प्रिंस' (The Prince) में वर्णित घटनाओं की लोगों ने गलत व्याख्याएँ करके उन्हें आलोचना का पात्र बना दिया। इस ग्रन्थ में उन्होंने मानव प्रकृति का जो चित्रण किया है वह मनुष्य को पशुओं के समान लाकर खड़ा कर देता है। जोन्स ने लिखा है- "मैकियावली अपने ग्रन्थ 'डिसकोर्सेज' में यहाँ तक कह देते हैं कि मनुष्य एकदम दुष्ट है और न एकदम अच्छा। इससे उनके मानव स्वभाव के बारे में दिए गए विचारों में पेचीदगी उत्पन्न होती है। मैकियावली मानव को अपनी प्रकृति से ही पापी एवं अनैतिक प्राणी स्वीकार करता है।
वह काल्विन और हॉब्स की तरह 'मानव का स्वभाव बुनियादी तौर पर सच्चा होता है' को स्वीकार नहीं करता। उसका विचार था कि मनुष्य । कमजोरियों, मूर्खता और दुष्टता का एक विचित्र मिश्रण है और उसे धोखे में रखा जाना चाहिए और उस पर शासन किया जाना चाहिए। उसका मानना था कि मनुष्य विवेकहीन होते हैं और आवेगों के वशीभूत होकर कार्य करते हैं। हॉब्स की तरह उसका यह भी मानना था कि मनुष्य स्वभाव से ही दुष्ट और स्वार्थी होता है। स्वार्थ और अहम् मानव व्यवहार की दो प्रेरक शक्तियाँ हैं। मनुष्य कृतघ्न, चंचलव त्ति वाले, धोखेबाज, कायर और लोभी होते हैं। वे तभी अच्छा काम करते हैं। जब उन्हें लाभ होता है। मनुष्यों का अच्छाई की तरफ कोई सामान्य रुझान नहीं होता। उन्हें सुधारने की बजाय भ्रष्ट जल्दी किया जा सकता है। वे बाध्य होकर ही समाज के नियमों का पालन आराम से रहने के लिए ही करते हैं। भय उनके जीवन का प्रमुख तत्त्व है जो प्यार से ज्यादा शक्तिशाली है। उसका मानना है कि प्रजा के मन में राजा का भय होना चाहिए ताकि शासन सुचारू रूप से चलता रहे। वह घ णा या अपमान की भावना जनता में पैदा करने का विरोध करता है। वह कहता है कि भय के कारण शत्रुता बढ़ती है और युद्ध होते हैं। जब मनुष्य स्वार्थी होकर दूसरे की सम्पत्ति छीनने की चेष्टा करते हैं। और दूसरे सम्पत्ति छीने जाने के भय से ग्रस्त रहते हैं तो भय की भावना अधिक बढ़कर संघर्ष को जन्म देती है। धन का लोभ, ईर्ष्या और महत्त्वाकांक्षा मनुष्य के कार्यों की शक्तिशाली प्रेरक शक्तियाँ हैं। मनुष्य की संग्रह-प्रवत्ति उसे दूसरे के नियन्त्रण से मुक्ति पाने के लिए प्रेरित करती है और दूसरों पर अपना वर्चस्व कायम करने के लिए उकसाती है। मनुष्य की महत्त्वकांक्षाएँ कभी पूरी नहीं होतीं। उसमें अपनी वर्तमान स्थिति के प्रति सदैव असंतोष रहता है। इस कारण मनुष्य और समाज के मध्य संघर्ष होता है।
इस प्रकार मैकियावली ने शासन, स्वभाव और राज्य के सन्दर्भ में दो शक्तियों का वर्णन किया है प्रेम और भय मैकियावली का कहना है कि मनुष्य प्रेम के बन्धन को तो तोड़ सकता है लेकिन मानव मन भय की जंजीर को नहीं तोड़ सकता। मैकियावली कहता है कि- "बुद्धिमान राजा को भय का सहारा लेना चाहिए।" मनुष्य स्वभाव से दुष्ट व स्वार्थी होने के कारण विवश होकर ही सद्व्यवहार करते हैं। इस प्रकार वह मानव को पूर्णरूपेण स्वार्थी मानता है। इस द ष्टि से वह हॉब्स के समान है। उसके मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों पर ही नैतिकता, धर्म और राजनीति सम्बन्धी विचार आधारित हैं।
मैकियावली के मानव स्वभाव पर विचारों से निम्न विशेषताएँ उभर कर आती हैं :-
1. मनुष्य पूर्णतः आत्मकेन्द्रित, लोभी और स्वार्थी है। वह सदैव अपने हित को पूरा करने की ही सोचता है। वह सामाजिक न होकर समाज विरोधी है।
2. मैकियावली के अनुसार मनुष्य आक्रामक है। वह स्वहित साधना की आड़ में किसी प्रकार की भी अति कर सकता है। इसी प्रवत्ति के कारण समाज में सदा संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। मैकियावली के अनुसार- "मानव प्रकृति अत्यन्त आक्रामक एवं धनपिपासु तथा धनलोलुप है। मनुष्य के पास जो कुछ है, उसे वह सुरक्षित रखना चाहता है और अधिक दावे की कोशिश करता हैं मनुष्य की इच्छा की न कोई अधिकार सीमा है और सम्पत्ति में। चूँकि प्राकृतिक वैभव सीमित है और मनुष्य की इच्छा असीमित है इसलिए मनुष्य मनुष्य में संघर्ष अराजकता का मार्ग प्रदर्शित करता है जिसका राज्य की निरंकुश शक्ति ही नियन्त्रण कर सकती है।
3. अधिकांश लोग मूर्ख व मनचले हैं। मनुष्य की भावनाएँ ही उनके हितों को निश्चित करती हैं। जानवरों की तरह मनुष्य भावना द्वारा शासित है, युक्ति द्वारा नहीं।
4. मानव प्रकृति में दो सशक्त अंग होते हैं प्रेम तथा भय उसके अनुसार जिसमें भय उत्पन्न करने की क्षमता है। उसका - प्रभाव दूसरों पर अवश्य पड़ता है। भय प्रेम से बढ़कर है। लोग प्रेम के बन्धन को तोड़ सकते हैं, भय को नहीं। शासन का प्रमुख आधार भय ही होता है।
5. धन के प्रति आकर्षण की भावना संघर्ष पैदा करती है। प्रत्येक व्यक्ति अधिकाधिक सम्पत्ति का अर्जन करना चाहता है। मैकियावली का कहना है कि "व्यक्ति अपने पिता के हत्यारे को माफ कर सकता है, अपनी सम्पत्ति छीनने वाले को नहीं।"
6. नई वस्तुओं की चाह या इच्छा धनवान और दरिद्र दोनों में समान रूप से पाई जाती है।
7. मनुष्य स्वभाव से महत्त्वाकांक्षी होता है। वह सदैव हर वस्तु पर अपना अधिकार पाने की चेष्टा करता है। साधन सीमित होने के कारण उसका यह प्रयास असफल ही रहता है।
8. मनुष्य स्वाधीन रहने की कामना करता है। परन्तु वह अपनी स्वाधीनता कायम रखने के लिए दूसरों की स्वतन्त्रता छीनने का प्रयास करता है।
मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों के निष्कर्ष
मैकियावली द्वारा प्रस्तुत मानव प्रकृति के बारे में अध्ययन के पश्चात् निम्नलिखित बातें उभर कर हमारे सामने आती हैं :-
1. राजनीति और धर्म का पथक्करण (Separation of Politics from Religion): मैकियावली के अनुसार मनुष्य जन्म से ही स्वार्थी और धर्म की अपेक्षा पाप की ओर प्रवत्त है। वह विवश किए जाने पर ही बिना इच्छा के काम करता है। धर्म का सम्बन्ध मानव के व्यावहारिक जीवन से है, राजनीति से नहीं। मैकियावली का मानना है कि नैतिकता तथा परामर्श की भावना मनुष्य को क्रियाशील नहीं बनाती बल्कि भय तथा स्वार्थ की भावना उसे क्रियाशील बनाती है। अतः शासक को सर्वशक्ति सम्पन्न होना चाहिए ताकि प्रजा को सुरक्षा व शान्ति प्रदान कर सके। जनता शक्ति के अस्त्र को ही समझती है। नैतिकता द्वारा अराजकता की स्थिति नहीं मिटाई जा सकती। इसलिए राजनीति में नीति या धर्म का कोई महत्त्व नहीं है। इसलिए मैकियावली ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राजनीति में नैतिकता और धर्म -गठबन्धन अव्यावहारिक और उपहासास्पद है। इसलिए मैकियावली की आधुनिक राजनीतिशास्त्र को सबसे महत्त्वपूर्ण देन राजनीति और धर्म व नैतिकता का पथक्करण है।
2.राज्य एक स्वाभाविक संस्था नहीं (State is not a Natural Institution) : मैकियावली के अनुसार राज्य का उद्भव एक आकस्मिक घटना है। सुरक्षा की माँग को पूरा करने के लिए ही इसका प्रादुर्भाव हुआ। मानव एक असामजिक, निर्बल तथा अकुशल प्राणी है। जीवन तथा सम्पत्ति सुरक्षा तथा दूसरों के आक्रमणों से बचने के लिए शासन का उदय हुआ राज्य सत्ता के अभाव में मानव को सुरक्षा सम्भव नहीं है। वह अरस्तू की भाँति राज्य को स्वाभाविक संस्था नहीं मानता है। इसलिए मैकियावली के मानव स्वभाव के अध्ययन से यह बात उभरकर आती है कि राज्य एक आकस्मिक घटना है
3. मानव स्वभाव अपरिवर्तनीय (Unchangeable Human Nature) : मैकियावली के अनुसार व्यक्ति में सद्गुण नाम की कोई वस्तु नहीं है। जिन्हें हम सामाजिक सद्गुण की संज्ञा देते हैं वे केवल स्वार्थ के बदले हुए रूप हैं। मनुष्य को समस्त प्रेरक संज्ञा देते हैं वे केवल स्वार्थ के बदले हुए रूप हैं। मनुष्य की समस्त प्रेरक शक्तियाँ स्वयं अहम्पूर्ण और स्वार्थपूर्ण हैं। अरस्तू, प्लेटो आदि विचारक शिक्षा को मानव-व्यवहार में परिवर्तन करने वाले तत्त्व के रूप में देखते हैं। लेकिन मैकियावली के अनुसार मानव स्वभाव की बुराइयों को शिक्षा के द्वारा नहीं मिटाया जा सकता। उन पर केवल दमन या शक्ति द्वारा ही नियन्त्रण किया जा सकता है।
4. राज्य के उद्देश्य (Aims of the State) : मैकियावली के अनुसार राज्य का लक्ष्य भौतिक सम्पदा है। उसका मानना है- "भौतिक सम्पदा की इच्छा का मुख्यतः प्रत्येक मानवीय क्रिया के पीछे हाथ होता है।" इस प्रकार वह अरस्तू, प्लेटो तथा मध्ययुगीन विचारकों के इन विचारों का खण्डन करता है कि राज्य का उद्देश्य व्यक्ति को सद्गुणी बनाना है।
5 नरेश के गुण (Qualities of Prince) : मैकियावली ने मनुष्य को स्वार्थी, लोभी और कपटी मानते हुए उस पर नियन्त्रण के लिए निरंकुश राजा या शासक की अनिवार्यता को सिद्ध करता है। वह शासक में कठोरता, बर्बरता तथा निर्ममता जैसी विशेषताओं को आवश्यक मानता है। वह अपनी पुस्तक 'दो प्रिंस' (The Prince) में शासक के लिए कुछ आवश्यक नियमों का वर्णन करता है जिनका पालन करके शासक जनता को वश में कर सकता है। वह भय को शासक का अनिवार्य हथियार मानता है। उसका कहना है कि जनता प्रेम की अपेक्षा भय की भाषा जल्दी समझती है। भय प्रेम से अधिक प्रभावशाली व अनुशासन का प्रमुख साधन है। लेकिन यह आवश्यक है कि जनता शासक से भय खाए और घ णा नहीं करे। शासक को जनता की सम्पत्ति की सदैव रक्षा करनी चाहिए। उसे अराजकता की स्थिति को नष्ट करके शान्ति स्थापना का प्रयास सदैव करते रहना चाहिए। उसमें लोमड़ी जैसी चालाकी होनी चाहिए। ऐसा व्यक्ति ही प्रजा पर शासन करने योग्य है।
आलोचनाएँ (Criticism)
मैकियावली के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों की निम्नलिखित आलोचनाएँ की गई हैं :
1. एकपक्षीय विचार (One Sided View) : मैकियावली भी हॉब्स की तरह मनुष्य को स्वार्थी व दुष्ट प्राणी मानता है। वह मनुष्य के सामाजिक होने के विचार का भी खण्डन करता है। सत्य तो यह है कि मनुष्य स्वार्थी होने के साथ-साथ परोपकारी भी होता है। उसमें सहयोग, त्याग, अनुशासन आदि गुण भी पाए जाते हैं। यदि वह इतना पापी और स्वार्थी है तो राज्य की कल्पना का विचार गलत है क्योंकि राज्य तो सहयोगी भावनाओं का परिणाम है। इस प्रकार उसको मानव स्वभाव पर विचार एकपक्षीय है। मनुष्य बुरे व अच्छे दोनों का मेल है। अतः मैकियावली केवल एकपक्षीय विचार का ही प्रतिपादन करके मानव स्वभाव का दोषपूर्ण चित्रण करता है।
2. अवैज्ञानिक पद्धति (Unscientific Method): मैकियावली द्वारा दिया गया मानव-स्वभाव सम्बन्धी विश्लेषण अपर्याप्त है क्योंकि वह मनुष्य को केवल बुरा और स्वार्थी बताता है। वह मनुष्य के बुरा होने का कोई कारण बताने में असमर्थ है। अतः उसका विश्लेषण अवैज्ञानिक है।
3.राज्य का आधार शक्ति नहीं इच्छा है (Will not Force is the Basis of State): मैकियावली शासक के लिए शक्ति को एक अनिवार्य गुण मानता है। वास्तव में सच्चाई तो यह है कि निरंकुश शासक को जनता अधिक दिनों तक सहन नहीं कर सकती। वह क्रान्ति द्वारा उसका तख्ता पलट देती है। फ्रांस व ब्रिटेन की क्रान्तियाँ, रूस की क्रान्ति इसका प्रमुख उदाहरण हैं। आधुनिक प्रजातन्त्र के युग में तो जनइच्छा ही शासन का आधार होती है, शक्ति नहीं। अतः यह सिद्धान्त असंगत है।
4. निष्कर्ष केवल स्थानीय परिस्थितियों पर आधारित है (Inferences are Drawn from Local Conditions only ) : मैकियावली के चिन्तन पर अपने युग की अमिट छाप है। उस समय इटली में व्याप्त भ्रष्टाचार उसके लिए प्रमुख उदाहरण था। उसने मानव स्वभाव का चित्रण तत्कालीन इटालियन समाज की राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही किया है। अतः उसका मानव स्वभाव का चित्रण सार्वभौमिक न होकर इटालियन समाज तक ही सीमित है।
5. मानव का सुधार व उत्थान हो सकता है (Man is subject to Reformation and Improvement ) : मैकियावली के अनुसार मानव इतना गिरा हुआ है कि उसका सुधार नहीं किया जा सकता। उसका यह विचार सही नहीं है प्लेटो तथा अरस्तू के अनुसार मनुष्य शिक्षा द्वारा सद्गुणी बन सकता है। यदि व्यक्ति का पूर्ण सुधार सम्भव नहीं है तो भी कुछ न कुछ सुधार अवश्य किया जा सकता है।
6. विरोधाभासी (Contradictory): मैकियावली एक तरफ तो मनुष्य को स्वार्थी ओर लोभी कहता है, दूसरी ओर वह कहता है कि मनुष्य अपने पिता के हत्यारों को माफ कर सकता है, परन्तु पैत के सम्पत्ति के अपहरणकर्ता को नहीं। जब व्यक्ति इतना दुष्ट व स्वार्थी है तो क्षमा जैसा गुण उसमें कहाँ से आ सकता है। दुष्टता और क्षमा परस्पर विरोधी गुण मैकियावली की मानव स्वभाव सम्बन्धी धारणा परस्पर विरोधी विचारों से भरी पड़ी है। हैं। अतः
7. तार्किक दोष: मैकियावली ने तत्कालीन इटालियन समाज के व्यक्तियों के स्वभाव के आधार पर समस्त मनुष्यों के सर्वकालीन स्वभाव का चित्रण किया है। अतः उसके इस सिद्धान्त में तार्किक दोष विद्यमान है।
मैकियावली के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों से यह निष्कर्ष निकलता है कि उनका चिन्तन स्वयंसिद्ध सत्यों, मूल तत्त्वों या परिकल्पना के अभाव से ग्रस्त था। वे प्रणालीबद्ध विचारक नहीं थे। उन्होंने इटली की सामाजिक, राजनीतिक वातावरण से उत्पन्न बुराइयों को अपने विचारों में स्थान देकर अपनी अवधारणा को खड़ा किया था। वह मानव स्वभाव की दुष्ट प्रवत्ति का सामान्यीकरण करने की दिशा में प्रयासरत थे। यदि इनका जन्म अन्य किसी काल में हुआ होता तो उनकी मानव प्रकृति की अवधारणा का स्वरूप भिन्न होता। सत्य तो यह है कि खुले में मैकियावली की जिन नीतियों या विचारों की आलोचना की जाती है, गुप्त रूप से सभी राजनयिक व राजनीतिज्ञ उनका अनुसरण करते हैं, उनके मानव-स्वभाव पर विचार तत्कालीन वातावरण का सम्पूर्ण लेखा-जोखा प्रस्तुत करने में सक्षम है। उनकी 'The Prince' इस बारे उनकी राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण देन है।