मैकियावली का जीवन परिचय

मैकियावली का जीवन परिचय

परिचय (Introduction )

फलोरेन्स निवासी मैकियावली यूरोप में पुनर्जागरण काल के एक विवादास्पद विचारक हैं। मैकियावली के विचारों का जितना प्रयोग हुआ है उतना ही दुष्प्रयोग भी पुनर्जागरण आन्दोलन के कारण यूरोप में चर्च को तानाशाही व सामन्तवादी व्यवस्था के परिणामस्वरूप जोरदार आन्दोलन चल रहे थे तो ऐसे समय में मैकियावली जैसे प्रतिभाशाली विचारक व राजनीतिज्ञ का इटली की राजनीति में प्रवेश, वहाँ की जनता के लिए एक वरदान से कम नहीं था।

 मैकियावली ने "The Prince' और 'Discourses' ग्रन्थों की रचना करके यूरोप की राजनीति (विशेष तौर पर इटली की) को एक नई दिशा दी। मैकियावली ने इटली के विभाजन से उत्पन्न समस्याओं का गहन अवलोकन करके एक संगठित इटली राष्ट्र राज्य का स्वप्न अपने मन में संजोया । उसने व्यावहारिक व यथार्थवादी द ष्टिकोण पर आधारित अपनी विचारधारा से इटली को लाभान्वित किया। मैकियावली मध्ययुग का अन्त करने वाले और आधुनिक युग की शुरुआत करने वाले प्रथम विचारक थे। उसे अपने 'युग का शिशु' की संज्ञा प्रदान की गई और उसे इटली के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला व्यक्ति माना गया। उसके सुप्रसिद्ध ग्रन्थ 'The Prince' में शासन कला के सिद्धान्तों को प्रतिपादित करके इटली की राजनीतिक स्थिरता का प्रथम महत्त्वपूर्ण प्रयास माना गया। उसने इस पुस्तक में राजतन्त्र की तथा 'Discourses' में गणतन्त्रीय व्यवस्था की सराहना की है। वह धर्म को राजनीति से पथक करने वाला प्रथम विचारक माना जाता है। उनका यथार्थवादी द ष्टिकोण व्यावहारिक राजनीति का स्वरूप स्पष्ट करता है। अनेक विवादों के बाद भी मैकियावली एक महत्त्वपूर्ण विचारक है जिसका राजनीतिक दर्शन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है और वह मध्यकाल तथा आधुनिक काल को जोड़ने वाली एक प्रमुख कड़ी है।

जीवन-परिचय

मैकियावली का जन्म 1469 ई. में इटली के फलोरेन्स नगर में हुआ। उसके पिता एक वकील थे जो टस्कन वंश से सम्बन्धित थे। यद्यपि उसको पर्याप्त शिक्षा तो प्राप्त नहीं हो सकी, फिर भी उसे लैटिन भाषा का अच्छा ज्ञान था। उसकी लेखनी में कला और शक्ति दोनों थीं। जीवन की व्यवहारकुशलता और धनार्जन की दौड़ में वह बहुत आगे थे। मैकियावली प्रारम्भ से ही फलोरेन्स की सत्ता में भाग लेना चाहते थे और उनका यह स्वप्न 1494 में 25 वर्ष की आयु में पूरा हुआ। इस समय उसने एक छोटा सा प्रशासनिक पद प्राप्त करके अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। तत्पचात् अपनी राजनीतिक सूझ-बूझ के बल पर उसने 'चान्सरी' में सचिव पद प्राप्त हुआ। इस पद की बदौलत उसे राजनयिक कार्यों से सम्बन्धित मामलों में फलारेन्स का प्रतिनिधित्व करने के लिए यूरोप के कई देशों में जाने का अवसर प्राप्त हुआ जहाँ बड़े राजनेताओं के सम्पर्क में आने पर उसने व्यावहारिक राजनीति का ज्ञान प्राप्त किया । लुई बारहवें, विशप सोडेशी, सीजर बोर्गिया के साथ सम्बन्धों नेउसे महत्त्वाकांक्षी बना दिया और वह अवसरवादी राजनीति का प्रणेता बन गया। 1498 से 1512 ई. तक 14 वर्षों तक उसने 'Council of Ten for War' का सदस्य बनकर फलारेन्स के सुरक्षा विभाग की सेवा की लेकिन 1512 ई. में स्पेन समर्थकों द्वारा फलोरेन्स पर अधिकरार कर लेने के बाद उसका पद छिन गया और उसे जेल भेद दिया गया। अब उसको सक्रिय राजनीतिक जीवन से छुटकारा मिल गया अर्थात् उसके राजनीतिक जीवन का अन्त हो गया। अब फलोरेन्स पर मेडिसी परिवार का आधिपत्य हो गया। जीवन के शेष 15 वर्ष उसने 'सैन कैशिसनो' नामक गाँव में समाज सेवा और लेखन कार्य करते हुए व्यतीत किए। उसने

मेडिसी परिवार के तत्कालीन प्रशासक लोरेंजो अर्थात् 'ड्यूक ऑफ बोर्जिया' के कहने पर ही अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'The Prince' लिखकर भेंट की लेकिन उसे षड्यन्त्रकारी मानकर निर्वासित कर दिया गया और उसने इस दौरान 'इटली का इतिहास' लिखा। 1527 ई. में 58 वर्ष की अल्पायु में ही उसकी मत्यु हो गई।

महत्त्वपूर्ण रचनाएँ (Important Works)

मैकियावली ने अपने जीवनकाल में दो महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की रचना की जिससे उसका नाम राजनीतिक दर्शन के इतिहास में अमर हो गया :-

 1. दॉ प्रिन्स (The Prince) : यह पुस्तक 1513 में लिखी गई। यह मैकियावली की प्रमुख रचना है। यह रचना राजतांत्रिक व्यवस्था पर प्रकाश डालती है। इसमें राज्य का निर्माण व विस्तार के बारे में बताया गया है। इस ग्रन्थ में 26 अध्याय हैं जिन्हें तीन भागों में बाँटा गया है। प्रथम अध्याय राजतन्त्र का दूसरा किराय की सेनाओं व राष्ट्रीय सेनाओं का तथा अन्तिम अध्याय राजदर्शन की व्याख्याएँ प्रस्तुत करता है। इस ग्रन्थ में एक सफल शासक के लिए दिए गए उपदेश विस्तारपूर्वक समझाए गए हैं। इसलिए यह रचना मैकियावली की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है।

2. डिस्कोर्सेज (Discourses): यह रचना 1520 ई. में लिखी गई। इसमें मैकियावली ने गणतन्त्रीय व्यवस्था का वर्णन किया है। यह रोमन राजतन्त्र और तत्कालीन शासकों के लिए कुछ नियमों की आदर्श रूपरेखा प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक में गणराज्य को राजतन्त्र की अपेक्षा अधिक कल्याणकारी सबल और जन आकांक्षाओं के अनुकूल बताया गया है। इनके अतिरिक्त मैकियावली ने 'The Art of War' तथा 'History of Florence' नामक दो अन्य ग्रन्थ भी लिखे। इनके अतिरिक्त उसने अनेक उपन्यास, कहानिपयाँ तथा कविताएँ भी लिखीं।

अध्ययन की पद्धति (Method of Study) 

मैकियावली ने अपने पूर्ववर्ती विचारकों से भिन्न पद्धति को अपनाकर पूर्ववर्ती विचारकों की अध्ययन पद्धति की जटिलताओं को दूर करने का प्रयास किया है। उसे पोप और सम्राट से कोई लगाव नहीं था। उसने नीति, न्याय आदि के अमूर्त सिद्धान्तों पर आधारित निगमनात्मक पद्धति को त्यागकर वैज्ञानिक तटस्थता की नीति अपनाई। समकालीन परिस्थितियों का ध्यान रखते हुए अपनी नई अध्ययन पद्धति विकसित की जिसकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :-

1. ऐतिहासिक पद्धति (Historical Method) मैकियावली ने आनुभाविक विधि को अपनाते हुए ऐतिहासिक विधि से उसकी पुष्टि की। उसने समकालीन राजनीति का अध्ययन किया, विश्लेषण किया, अपने निष्कर्ष निकाले और उसके बाद इतिहास की घटनाओं के आधार पर उनकी पुष्टि की। उसने प्राचीन रोम इतिहास से बहुत सी घटनाएँ और सत्यों के उदाहरण प्राप्त किए। वह इतिहास को ही आधार मानता था। उसका विश्वास था कि "जो व्यक्ति पहले से यह जानना चाहता है कि भविष्य में क्या होने वाला है, उसे इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या हो चुका है।" अपनी पुस्तक 'डिसकोर्सज' (Discourses) में उसने प्राचीन इतिहास के अनेक द ष्टान्त दिए हैं। ऐतिहासिक विधि एक व्यावहारिक राजनीतिज्ञ की हमेशा मदद करती है। हमें वर्तमान में समस्याओं का हल किस प्रकार करना चाहिए तथा भविष्य में क्या करना है ? इस तरह के प्रश्नों का उत्तर भूतकाल के अध्ययन द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। इतिहास का अवलोकन करने से ही हमें समस्याओं के कारण तथा उनका समाधान मालूम हो सकता है। मैकियावली के अनुसार हम इतिहास की सफलताओं व असफलताओं के कारणों को जानकर उन्हें वर्तमान में लागू कर सकते हैं। इस प्रकार पूर्वजों के गलत तथा सही कार्यों व उनके परिणामों का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। मैकियावली ने इतिहास का उपयोग पूर्वकल्पित निष्कर्षो की पुष्टि में किया है। इतिहास का अध्ययन वर्तमान राजनीतिक दर्शन की समस्याओं को हल करने में पूर्ण सहायक सिद्ध हुआ है।

प्रो. डनिंग का विचार है कि मैकियावली की पद्धति देखने में जितनी ऐतिहासिक लगती है, यथार्थ में उतनी नहीं है। उसके सिद्धान्त पर्यवेक्षण पर आधारित थे। उनकी पुष्टि करने के लिए उसने ऐतिहासिक विधि अपनाई थी। उसने पूर्व-कल्पित सिद्धान्तों की पुष्टि के लिए ही इतिहास के प्रमाणों की तलाश की थी। इसी प्रकार सेबाइन भी मैकियावली की पद्धति को ऐतिहासिक कहना भ्रमपूर्ण मानता है। उनका कहना है कि उनकी पद्धति पर्यवेक्षणात्मक थी। उसने अपने तर्कों को सत्य सिद्ध करने के लिए ही इतिहास का आश्रय लिया। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजनीतिक समस्याओं के प्रति मैकियावली का द ष्टिकोण अनुभव प्रधान था एवं उसकी भावना ऐतिहासिक थी ।

2. निरीक्षणात्मक पद्धति (Observational Method) : सेबाइन के अनुसार मैकियावली की अध्ययन पद्धति निरीक्षणात्मक अथवा पर्यवेक्षणात्मक थी। उनकी पुस्तक 'दा प्रिंस' (The Prince) इस पद्धति पर ही आधारित है। उसका उद्देश्य अपने समय की समस्याओं का हल करना था जिसके लिए उसने घटनाओं को यथार्थवादी धरातल पर परखकर निष्कर्ष प्रस्तुत किए। इस प्रकार उनकी पद्धति वास्तविक घटनाओं पर आधारित निरीक्षणात्मक पद्धति थी। उसने निष्कर्ष तक पहुँचने के लिए घटनाओं का ऐतिहासिक अवलोकन किया था।

3. तुलनात्मक पद्धति ( Comparative Method): मैकियावली ने अपनी इटली की तत्कालीन दुर्दशा को देखा था। उसने विभिन्न टुकड़ों मे बँटी इटली के राज्यों की समस्याओं का अलग-अलग पता लगाकर उनका तुलनात्मक अध्ययन किया था। उसकी यह पद्धति अरस्तू की तरह व्यापक तुलनात्मक निष्कर्षो पर आधारित थी।

4. विश्लेषणात्मक पद्धति (Analytical Method) : मैकियावली ने निष्कर्षो तक पहुँचने के लिए सबसे पहले किसी घटना के मूल कारणों का पता लगाया था। उसके बाद कारणों को घटना के क्रम के आधार पर विश्लेषण करके अपना मत या निष्कर्ष प्रस्तुत किया था। इसलिए उनकी पद्धति विश्लेषणात्मक थी।

5. वैज्ञानिक पद्धति (Scientific Method) : मैकियावली ने वैज्ञानिक तटस्थता की नीति को अपनाते हुए अपनी समकालीन परिस्थितियों का बड़े ध्यान से अध्ययन किया। उसने सबसे पहले समस्याओं को समझा और फिर परिणाम पर पहुँचा । मैकियावली ने मध्यकाल के विचारकों के विपरीत जिस पद्धति को अपनाया उसमें मध्ययुग की आमक विचारधाराओं जैसे 'दो तलवारों का सिद्धान्त, प्राकृतिक कानून के सिद्धान्त के लिए कोई स्थान नहीं है। फिर भी उसने कहीं-कहीं अपनी कुछ धारणाएँ बना ली थीं जिनको सत्य मानकर वह चलता है। इस प्रकार मैकियावली वैज्ञानिक द ष्टिकोण अपनाकर दार्शनिक तत्त्व भी ग्रहण कर लेता है।

इस प्रकार उसने केवल ऐतिहासिक पद्धति का ही प्रयोग नहीं किया बल्कि तुलनात्मक, निरीक्षणात्मक, वैज्ञानिक दष्टिकोण गुणों आदि पर आधारित पद्धति का प्रयोग किया। परन्तु आलोचकों का कहना है कि यह पद्धति ऐतिहासिक नहीं थी। उसने इतिहास के दष्टांतों का प्रयोग केवल कल्पित निष्कर्षो को सिद्ध करने के लिए ही किया था। प्रो. डनिंग के अनुसार- "मैकियावली की पद्धति ऊपर से जितनी ऐतिहासिक लगती है, यथार्थ में उतनी ऐतिहासिक नहीं है।" सेबाइन ने भी उसकी पद्धति को ऐतिहासिक कहना भ्रमपूर्ण माना है।

इन आलोचनाओं के बावजूद यह कहना पड़ेगा कि उसने धार्मिकता, अन्धविश्वास व गूढ़ताओं से मुक्त अध्ययन पद्धति राजनीतिक दर्शनशास्त्र को प्रदान की। उसने ऐतिहासिक, यथार्थवादी, पर्यवेक्षणात्मक व वैधानिक विशेषताओं से युक्त पद्धति अपनाकर इतिहास की सहायता से उसे वैज्ञानिक और यथार्थवादी बनाने का प्रयास किया। उसने अपने सिद्धान्तों की पुष्टि के लिए धार्मिक दष्टान्तों का सहारा न लेकर, इतिहास, तर्क और पर्यवेक्षण की ऐसी पद्धति ग्रहण की जिसमें चातुर्य और सहज बुद्धि की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। उसने अपनी राजनीतिक पद्धति से इतिहास और अनुभव का समन्वय करके आगमनात्मक पद्धति का प्रारम्भिक रूप पेश किया। अपनी हठवादिता और एकांगी द ष्टिकोण के अवगुण से युक्त यह पद्धति मैकियावली की राजनीति विज्ञान को एक महत्त्वपूर्ण देन है।


मैकियावली अपने युग के शिशु के रूप में (Machiavelli as the Child of His Time)

प्रो. डनिंग का कथन है कि प्रतिभासम्पन्न फलोरेन्स निवासी मैकियावली सही अर्थ में अपने युग का शिशु था। इसी तरह डब्ल्यू. दी. जोंस ने मैकियावली को पुनर्जागरण काल का शिशु कहा है। इसी तरह सेबाइन का भी मानना है कि मैकियावली का सम्पूर्ण दर्शन समकालीन परिस्थितियों पर आधारित है और मैकियावली यदि किसी दूसरे देश या युग का होता तो राजनीति के बारे में उसके विचार कुछ और होते। इस प्रकार का मन्तव्य मैकियावली के बारे में इसलिए दिया गया है क्योंकि मैकियावली एक
यथार्थवादी राजनीतिज्ञ तथा दार्शनिक थे और स्वभाव से बहुत ही संवेदनशील तथा देशभक्त थे। उन्होंने अपने सम्पूर्ण लेखन कार्य को उस समय के इटली तथा यूरोप की परिस्थितियों पर आधारित किया है। ऐसे तो प्रत्येक विचारक अपनी समकालीन परिस्थितियों से प्रभावित होता है, अपने युग को सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं के सन्दर्भ में विचार व्यक्त करता है, लेकिन ऐसा लगता है कि मैकियावली पर अपने युग का कुछ ज्यादा ही प्रभाव पड़ा था। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:-

1. मैकियावली स्वभाव से बहुत ही संवेदनशल (Sensitive) था।

2. मैकियावली एक राजनीतिज्ञ और यथाथवादी था जिसका प्रमुख उद्देश्य इटली का एकीकरण एवं इटली को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में विकसित करना था।

मैकियावली पर पड़ने वाले प्रभाव को हम निम्न शीर्षकों में बाँट सकते हैं :-

1. पुनर्जागरण (Renaissance) : मैकियावली का युग पुनर्जागरण का युग था । 15 वीं शताब्दी के अन्त तक इटली में यह आन्दोलन चरम सीमा पर पहुँच गया था। इस आन्दोलन का उद्देश्य मध्यकालीन यूरोप को आधुनिक यूरोप में परिवर्तित करना था । यह युग इटालियन पुनरुत्थान का युग भी था। इस युग में धर्म का स्थान भौतिकता, ईश्वर का स्थान पुरुषार्थ, आदर्शों का स्थान यथार्थता और मध्यकालीन मूल्यों का स्थान अवसरवादिता और विलासिता ले रही थी। ज्ञान, तर्क, विज्ञान एवं बुद्धिजन्य सिद्धान्तों का स जन इस युग में शुरू हो गया था। मैकियावली के लेखों और विचारों में इसी पुनर्जागरण की विचारधारा का प्रभाव लक्षित होता है। मैकियावली का साहित्य सर्वथा नए युग का अहसास करता है। मैकियावली ने पुनर्जागरण की बढ़ती हुई भावना के अनुरूप ही स्वतन्त्र बौद्धिक चिन्तन को युग की शुरुआत की। प्राचीन ईसाइयत के विचारों का पतन होने लग गया। अब मध्ययुगीन दैवीय विचारधारा का अन्त होने लग गया और व्यक्ति को ज्यादा महत्त्व दिया जाने लगा। अब इस जीवन पर, व्यक्तित्व को समद्ध बनाने और हर रूप में सौन्दर्य का आनन्द प्राप्त करने की प्रवत्ति पैदा हुई। व्यष्टिवाद की भावना का विकास हुआ जिसने प्राकृतिक और मानवीय दोनों द ष्टियों से मनुष्य की गरिमा पर बल दिया गया। पुनर्जागरण ने तर्क-बुद्धि को जन्म दिया। भौगोलिक खोजों के परिणामस्वरूप उत्पन्न अन्तरराष्ट्रीय संघर्ष ने राष्ट्रवाद और राष्ट्र राज्य की भावनाओं को जन्म दिया जो कि चर्च और राज्य के मध्ययुगीन स्वार्थ की विरोधी थी। पुनर्जागरण के फलस्वरूप जीवन के एक नवीन आदर्श की उत्पत्ति हुई जिसका लक्ष्य इस जीवन में व्यक्ति को सफलता दिलाना था। शक्ति की नए देवता के रूप में पूजा की जाने लगी। मैकियावली ने भी इस दौरान 'The Prince' पुस्तक लिख डाली जिसमें तत्कालीन इटली का राजनीतिक वातावरण स्पष्ट झलकता है।

मैकियावली का फलोरेन्स नगर उस समय पुनर्जागरण का प्रधान नगर था तथा इटली की संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। यह पुनर्जागरण केवल ज्ञान से सम्बन्धित ही नहीं था बल्कि यह साहित्य, कला, संस्कृति, व्यापार एवं वाणिज्य आदि क्षेत्रों में भी पुनरुद्धार का युग था। फोस्टर के अनुसार “गैर ईसाई प्राचीनता में दिलचस्पी का यह पुनरुत्थान एक पांडित्यपूर्ण अथवा शैक्षिक आन्दोलन से बढ़कर था। वह यूरोपीय जनता में गैर-ईसाई भावनाओं के भी पुनरुत्थान का संकेत करता था जिन्हें मध्यकालीन ईसाई संस्कृति ने कुचल तो डाला था परन्तु बिलकुल समाप्त नहीं किया था। लोगों ने प्राचीनकाल के लेखकों की कृतियों में एक नई दिलचस्पी खोजी थी क्योंकि ये कृतियाँ ऐसे कुछ तत्त्वों के अनुकूल थीं जिनका उन्हें अपने अन्दर ही विद्यमान होने का बोध था।" 15 वीं सदी के अन्त तक लोगों को ईसाई धर्म के निकम्मेपन का पूरा अहसास हो गया था। धर्म का यह सिद्धान्त था कि पारलौकिक सुख के लिए लौकिक सुख का त्याग कर देना चाहिए। मैकियावली के विचारों ने इस विचारधारा को पूरी तरह पलट दिया। पुनर्जागरण के विचारकों के लिए व्यक्ति ही अध्ययन का प्रमुख मुद्दा बन गया। इसके परिणामस्वरूप लोगों के जीवन में एक नई चेतना का सूत्रपात हुआ। लोगों में स्वतन्त्रता और अपने जीवन के प्रति लगाव की भावना बढ़ी आत्मा और परमात्मा के तथा पाखण्डतापूर्ण विचारों और अन्धविश्वासों के स्थान पर ज्ञान की नवीन ज्योति का संचार हुआ। यह आन्दोलन शारीरिक सुख, आनन्दमय जीवन और बौद्धिक विकास से सम्बन्धित था। यह धर्मनिरपेक्षता का युग था । 'मानव सभी वस्तुओं का मापदण्ड है' का उद्देश्य चारों ओर परिलक्षित होने लग गया। पुनर्जागरण ने मध्ययुगीन व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया। इसने बाईबलवाद, देववाद, चर्चवाद, सामन्तवाद आदि को पूरी तरह दफन कर दिया। मेयर लिखता है- "पुनर्जागरण नई चेतना की गति था, जिसने अन्ततः मध्ययुगीन व्यवस्था को उखाड़ फेंका: 17 वीं शताब्दी के नए संसार की नींव रखी; एक ऐसा संसार जिसने सदैव के लिए मध्ययुग का अन्त कर दिया। "

जॉस का कथन है कि- "मैकियावली फलोरेंस और पुनर्जागरण का शिशु है।" यह उक्ति पूरी तरह चरितार्थ होती है, क्योंकि मैकियावली पर पुनर्जागरण आन्दोलन का जितना प्रभाव पड़ा उतना अन्य किसी पर नहीं। उसकी रचनाएँ 'दा प्रिन्स' और 'डिसकोर्सज' समकालीन परिस्थितियों के विश्लेषण पर ही आधारित हैं। इस बारे में सेबाइन लिखता है- "इटली को जितना अधिक मैकियावली जानता था उतना अधिक कोई नहीं जानता था।" जोन्स का कथन है कि "उसकी कृतियों में उसके युग की वास्तविक स्थिति के दर्शन होते हैं। व्यक्ति का महत्त्व और उसका सौन्दर्य, बौद्धिक तर्कवाद और सांसारिक मर्यादा का निरूपण, उद्गमनात्मक पद्धति का अनुसरण, राष्ट्रीयता की भावना का नेत त्व तथा पारलौकिक के स्थान पर लौकिक उद्देश्यों की उपलब्धि का औचित्य आदि इतने सारे तथ्य हैं जिनका समर्थन मैकियावली ने अपने विचारों और कृतियों में किया है।" अतः मैकियावली अपने युग की इन सारी घटनाओं के गवाह थे जिनकी उनके राजनीतिक चिन्तन में अमिट छाप देखी जा सकती है। इसलिए वह पुनर्जागरण का प्रतिनिधि था।

2. इटली की राजनीतिक परिस्थिति (Political situation of Italy ): मैकियावली एक संवेदनशील व्यक्ति होने के कारण इटली की राजनीतिक दुर्दशा से काफी चिंतित थे। उस समय इटली पाँच राज्यों में बँटा हुआ था। ये पाँच राज्य थे - नेपल्स, मिलान, रोमन, चर्च, वेनिस और फलोरेन्स इन राज्यों का आपस में सदैव संघर्ष रहता था। इटली के इस राजनीतिक विभाजन और संघर्ष ने इटली को बहुत कमजोर बना दिया था। फ्रांस और स्पेन जैसे राष्ट्रीय राज्यों के उदय से इटली के हितों को नुकसान पहुँचने का खतरा पैदा हो गया था। इन राष्ट्रों की नजरें इटली पर थीं। मैकियावली एक विलक्षण बुद्धि का व्यक्ति था। वह फ्रांस, स्पेन तथा ब्रिटेन की महत्त्वकांक्षाओं से भली-भाँति परिचित था। उसने सोचा था कि यदि इटली को संगठित व एकीकृत नहीं किया गया तो पड़ोसी राष्ट्र उसे अवश्य ही हड़प लेंगे। मैकियावली एक यथार्थवादी व्यक्ति थे। उनका इटली की राजनीति का व्यावहारिक अनुभव उनकी सहायता कर सकता था। अतः मैकियावली चाहता था कि राष्ट्रीय राज्यों की तरह इटली का भी राष्ट्रीय आधार पर एकीकरण हो तथा इटली भी किसी शक्तिशाली शासक के अधीन अपने को स्वतन्त्र करने में सफल हो सके। मैकियावली ने इसे इटली की प्रथम आवश्यकता मानकर एक ऐसा शक्तिशाली इटली राष्ट्र का स्वप्न संजोया जो इटली को वर्तमान दुर्दशा से निकाल सके। इसलिए व्याकुल होकर मैकियावली ने 'दा प्रिंस' तथा 'डिसकोर्सज' जैसे ग्रन्थों की रचना की ताकि विभाजित इटली को फिर से एकीकृत व संगठित राष्ट्र के रूप में खड़ा किया जा सके। इसलिए उसे इटली के राष्ट्रवाद का अग्रदूत कहा गया है। सेबाइन का मानना है- "मैकियावली के अतिरिक्त और कोई व्यक्ति इटली को नहीं पहचान सका। उसके अतिरिक्त अन्य किसी को भी सम्पूर्ण यूरोप में चलने वाले इस विकास क्रम का स्पष्ट ज्ञान नहीं हो पाया।"

इस प्रकार मैकियावली ने अपनी समस्त रचनाएँ अपने व्यावहारिक राजनीतिक अनुभव का प्रयोग करते हुए लिखीं। उसने अपनी रचनाओं में इटली की फूट, ग हयुद्ध, विदेशी शासकों के हस्तक्षेप की परिस्थितियों तथा इटली के एकीकरण के उपायों का वर्णन किया। उसने अपनी रचनाओं का स जन इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया कि इटली में एक ऐसा राजनीतिक वातावरण तैयार हो सके जिससे इटली का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में पुनर्जन्म हो और जो विदेशी व अपने देश के विघटनकारी तत्त्वों से निपटने में सक्षम हो। अतः डनिंग द्वारा उसे दी गई 'युग शिशु' की संज्ञा सर्वथा उचित है ।

3. इटली का सामाजिक वातावरण (Social Situation of Italy ) : उस समय इटली के समाज में नीतिपरायणता, ईमानदारी और देशभक्ति का सर्वथा अभाव थां समाज में भ्रष्टाचार, दलबन्दी और स्वार्थप्रियता का सर्वत्र बालबाला था। यद्यपि लोगों में इन समस्याओं को दूर करने के लिए प्रतिभा की कमी नहीं थी लेकिन उनकी नैतिकता मर चुकी थी। पोप का जीवन भी पापमय था । सर्वत्र भ्रष्टाचार रूपी दानव पैर पसार चुका था। पैसे लेकर माफीनामें बेचे जाते थे। बेकसूर को सजा दी जाती थी और अपराधी रिश्वत देकर बच निकलते थे। इस सामाजिक दुर्दशा ने मैकियावली के संवेदनशील मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ी। उसने इटली को एक शक्तिशाली व मजबूत राष्ट्र के रूप में खड़ा करने के लिए शक्ति का प्रयोग का सुझाव दिया। उसका ग्रन्थ "The Prince' शासक को सभी कूटनीतिक व दण्डात्मक उपायों का सुझाव देता है। उसने इटली के लिए एक शक्तिशाली राष्ट्रीय सेवा की आवश्यकता पर जोर दिया। उसने इटली को इस अराजकता की स्थिति से निकालने के लिए निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन किया जो देश में ग हयुद्ध की स्थिति पैदा करने वाले व राष्ट्रीयता की भावना में बाधक तत्त्वों से लोहा ले सके और एक एकीकृत व संगठित इटली राष्ट्र राज्य का निर्माण कर सके। उसने एक ऐसे सार्वभौम का सुझाव दिया जो इटली को संगठित कर सके व देश में शान्ति कायम कर सके। उसने अपनी रचनाओं में शक्ति एवं छलकपट दोनों साधनों द्वारा जनता को इस दुर्दशा से मुक्ति दिलाने वाले शासन को कायम करने की बात कही। उसने अपने इस स्वप्न को पूरा करने के लिए बुद्धि व बल के समुचित समन्वय पर बल दिया। उसके इटली के एकीकरण के स्वप्न को उसकी म त्यु के बाद कॉवूर तथा गेरिवाल्डी आदि ने पूरा किया। अतः कहा जा सकता है कि प्रतिभावान मैकियावली 'अपने युग का शिशु था।'

4. इटली के एकीकरण में बाधक होना (Pope as an Obstacle to the Unity of Italy ) उस समय इटली की एकता में सबसे बाधा पोप था। पोप सारे इटली में अपना धर्मतन्त्र स्थापित करना चाहता था, परन्तु उसके पास सैनिक शक्ति का अभाव होने के कारण उसका स्वप्न पूरा नहीं हो सकता था। उसे स्पेन और फ्रांस से पूरी सहायता मिलती थी, इसलिए वेनिस जैसे राज्य उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके। पोप के कुकमों तथा जीवन के कारण लोगों के हृदय से श्रद्धा और विश्वास कम हो गया था। पोप का विश्व साम्राज्य का स्वप्न नष्ट हो चुका था। कुछ सन्तों व समाज-सुधारकों ने चर्च व पोप की बुराइयों से जनता को अवगत कराया। इससे जनता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। लोगों की धर्म में आस्थाकम हुई किन्तु जब फ्रांस ने फलारेन्स पर अधिकार करके पोप को खुश करने के लिए सेवानोशला को बन्दी बनाकर जला दिया तो लोगों ने सारे नैतिक आदर्शों को त्याग दिया और अनैतिकता की राह पर चल पड़े।

इससे मैकियावली बहुत प्रभावित हुआ और उसने अपने ग्रन्थ The Prince में राजा को कठोर उपायों द्वारा शासन चलाने की सलाह दी। उसने कहा कि राज्य का अस्तित्व बनाए रखने के लिए धर्म व नैतिकता का भी त्याग कर देना चाहिए। लोक कल्याण के लिए ऐसा करना राजा का सबसे बड़ा धर्म होता है। उसकी यह विचारधारा उसके युग के अनुरूप थी क्योंकि यूरोप के राष्ट्रीय राज्य राजधर्म तथा नैतिकता को छोड़कर केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति में लीन थे। इसलिए मैकियावली परइन परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ा और उन सभी परिस्थितियों का जिक्र उनके साहित्य में परिलक्षित होता है। अतः वह अपने 'युग का शिशु' था ।

5. राजतन्त्र की पुनर्स्थापना (Restoration of Monarchy) : पुनर्जागरण काल में यूरोप में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। यूरोप में परिषदीय आन्दोलन समाप्त हो चुका था और शक्तिशाली शासकों ने अपने निरंकुश राजतन्त्र स्थापित कर लिए थे। आर्थिक परिवर्तनों ने भी निरंकुशवाद का मार्ग प्रशस्त किया। पश्चिमी यूरोप के लगभग सभी राज्यों में सामन्तों के हाथ से शक्तियाँ छीनकर राजाओं ने अपने हाथों में ले ली थीं। पुरानी व्यावसायिक श्रेणियाँ निरन्तर बढ़ते व्यापार का संचालन कर पाने में असमर्थ थीं, इसलिए नए व्यापारी वर्ग के उदय ने अपने व्यापार से स्थायित्व और सुरक्षा के लिए शक्तिशाली राजतन्त्रों की स्थापना में सहायता दी। इससे सामन्तवाद तथा कुलीनतन्त्र का पतन होने लगा और उसकी जगह नए व्यापारी वर्ग का प्रभुत्व बढ़ा राजा लोगों को व्यापारियों की सहातया तथा संरक्षण में ही देश की समद्धि व वद्धि नजर आने लगी और शक्तियाँ शक्तिशाली राजतन्त्रों के हाथों में केन्द्रित हो गईं।

यूरोप की इन प्रचलित राजनीतिक प्रव त्तियों से मैकियावली की विलक्षण प्रतिभा अछूती न रह सकी। उसने अपने ग्रन्थ 'The Prince' में एक ऐसे शक्तिशाली निरंकुश राजतन्त्र की कल्पना की है जो इटली को एक संगठित व शक्तिशाली राष्ट्र राज्य के रूप में उभार सके। उसने आशा प्रकट की है कि इटली विदेशी दासता से मुक्त हो, पोप की तानाशाही समाप्त हो और इटली में शान्ति का युग प्रारम्भ हो ताकि इटली भी अन्य राष्ट्र राज्यों की तरह समद्धि, सुख व विकास के रास्ते पर चल सके। इसलिए उसने एक ऐसे राष्ट्र की आकांक्षा व्यक्त की जो सम्पूर्ण जनता को एकता के सूत्र में बाँध सके। उसने अपने ग्रन्थ 'The Prince में धर्म, नैतिकता और राजनीति सभी को राज्य का गौरव व शक्ति बढ़ाने के साधन मात्र माना है। उसने राज्य के विस्तार व सुरक्षा के उपाय अपने ग्रन्थों में सुझाए हैं। चर्च इस युग में वीर पुरुषों के हाथों में था और पोप की सत्ता का पतन हो चुका था। सेबाइन लिखता है- "शक्ति के रूप में पोप का लोप हो गया था और चर्च या तो ऐच्छिक समुदाय बन गया था या राष्ट्रीय साधन का सांझेदार।" फिगिस ने भी लिखा है- "चर्च भक्ति का स्थान नागरिक सत्ता की भक्ति ने ले लिया।" इस प्रकार शक्तिशाली निरंकुश राजतन्त्रों की पुनर्स्थापना की घटनाओं का भी मैकियावली पर व्यापक प्रभाव पड़ा और उसने अपनी रचनाओं में तत्कालीन परिस्थितियों को पूरा स्थान दिया।

इस प्रकार मैकियावली ने अपने युग में विद्यमान प्रव त्तियों को अपनी रचनाओं में पूरा स्थान दिया। उसने अपने युग की घटनाओं से प्राप्त निष्कर्षो का ऐतिहासिक पद्धति के आधार पर पुष्टिकरण किया। उसने अपने ग्रन्थों में तत्कालीन टनाओं को स्थान देकर अपने ऊपर पड़े प्रभाव से अपने आप को 'युग शिशु' की उपाधि से विभूषित कराया। अतः निस्संकोच कहा जा सकता है कि वह अपने युग का शिशु था |



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