थॉमस हॉब्स का प्राकृतिक अधिकार और प्राकृतिक नियम सम्बन्धी राजनीतिक विचार ( Thomas Hobbes : Natural Rights and Natural Laws)

प्राकृतिक अधिकार और प्राकृतिक नियम (Natural Rights and Natural Laws)

प्राकृतिक विधि और प्राकृतिक अधिकारों के बारे में हॉब्स ने अपनी पुस्तक 'लेवियाथन' के 14 वें अध्याय में लिखा है। हॉब्स का विश्वास है कि मनुष्य दुःखदायी प्राकृतिक दशा से मुक्ति पा सकते हैं, क्योंकि मनुष्य में सिर्फ अभिलाषा ही नहीं, बल्कि भावना, कल्पना और विवेक भी होते हैं। यदि इच्छाओं के कारण मनुष्य एक-दूसरे से संघर्ष करते हैं तो भावना और कल्पना उन्हें मत्यु के भय का पाठ पढ़ाती हैं एवं विवेक उन्हें प्राकृतिक विधि का पालन करना सिखाता है। विवेक के द्वारा मनुष्य प्राकृतिक स्थिति से निकलकर सभ्य और सामाजिक स्थिति में प्रवेश करता है। यह परिवर्तन प्राकृतिक विधियों द्वारा होता है। ये प्राकृतिक विधियाँ मानवीय व सामाजिक शांति की शर्तें हैं। ये बताती हैं कि सभ्य समाज का निर्माण कैसे हो सकता है। हॉब्स लिखता है कि- “प्राकृतिक विधियाँ प्राकृतिक नियम थीं।" विवेक पर आधारित नियम प्राकृतिक विधि कहलाती है। हॉब्स इन नियमों को परिभाषित करते हुए लिखता है- “विवेक उद्भूत शान्ति के उपयुक्त नियमों को प्राकृतिक विधि कहा जाता है।" हॉब्स ने अपनी पुस्तकों 'लेवियाथन' तथा 'डी सिवे' में प्राकृतिक विधि को परिभाषित किया है। वह लिखता है- “प्राकृतिक विधि उचित विवेक का आदेश है। उचित विवेक उन चीजों से परिचित होता है जिन्हें जीवन की सतत रक्षा के लिए करना या छोड़ना पड़ता है।” 'लेवियाथन' में हॉब्स लिखता है- “प्राकृतिक विधि एक उपदेश अथवा सामान्य नियम है। विवेक इसे ढूँढ निकालता है। इसके द्वारा मनुष्य वह करना छोड़ देता है जो उसके जीवन के लिए विनाशकारी है या जो उसकी जीवन रक्षा के साधनों का हरण करता है । " इस प्रकार हॉब्स ने प्राकृतिक विधियों को मनुष्य के प्राकृतिक जीवन में शांति स्थापना करने वाले तत्त्व के रूप में लिया है। येविधियाँ प्राकृतिक अवस्था के मनुष्यों ने सुख से रहने के लिए बनाई थीं। ये शान्ति धाराएँ या विवेक के आदेश हैं। ये कानून या विधि नहीं हैं। ये केवल नियम हैं।

हॉब्स लिखता है कि प्राकृतिक नियम वे निष्कर्ष या प्रमाण हैं जो मानव की सुरक्षा के लिए सहायक हैं जबकि कानून उस व्यक्ति के आदेश होते हैं जिसे दूसरों पर आदेश देने की शक्ति प्राप्त होती है। प्राकृतिक नियम में न तो बाध्यकारी शक्ति है, न ही दण्ड देने की शक्ति है, जब कि कानूनों में बाध्यकारी शक्ति होती है। उन्हें न मानने पर दण्ड का प्रावधान है। हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक नियम आचरण के वे नियम हैं जिन्हें मानना या न मानना व्यक्ति की स्वेच्छा पर निर्भर करता है। हॉब्स प्राकृतिक नियम को सामाजिक नियम कहता है। इसका महत्त्व सभी द्वारा इसका पालन करने में है। यदि एक व्यक्ति समझौते या प्रतिज्ञाओं का पालन करता हो और दूसरे न करें तो वे स्वयं को नष्ट कर लेगा। इस प्रकार हॉब्स प्राकृतिक नियम व नागरिक कानून में अन्तर स्पष्ट करता है।

हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक नियम मानव समाज और राजनीतिक समाज की तार्किक शर्तें हैं। अतः वे स्थिर और सतत हैं। उनकी स्थिरता और सततता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि वे नैतिक नियम हैं बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि वह समाज की शान्ति और व्यवस्था के लिए आवश्यक हैं। इसलिए इन नियमों में अनुरूपता, अच्छाई या सद्गुण हैं। हॉन्स लिखता है- "इन नियमों में अनुरूपता जितनी अधिक होगी उतना अधिक संतोष पैदा होगा।" हॉब्स इन प्राकृतिक नियमों के पालन को उपयोगिता की द ष्टि से देखता है। वह सामान्य हित में सम्प्रभु शक्ति का सुझाव देता है। वह कहता है कि प्राकृतिक नियमों को मनवाने के लिए उपयोगिता पर्याप्त नहीं।

हॉब्स लिखता है कि प्राकृतिक अधिकार वह व्यक्तिगत अधिकार है जिसके द्वारा मनुष्य उन कार्यों को करने के लिए स्वतन्त्र है जो उसके अस्तित्व के लिए आवश्यक है। यहाँ स्वतन्त्रता का अभिप्राय बाह्य रुकावटों की अनुपस्थिति से है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता केवल वे सीमाएँ हैं जो परिस्थितियाँ लगाती हैं जहाँ तक उसकी शक्ति है, वहाँ तक उसका पूर्ण अधिकार है। प्राकृतिक नियमों का अभिप्राय स्वतन्त्रता की अपेक्षा प्रतिरोध, बाध्यता या रुकावट है। यह वह नियम है जो उन कार्यों को करने की अनुमति नहीं देते जो मानव के अस्तित्व को बनाए रखने में प्रतिकूल हैं। इस प्रकार हॉब्स ने प्राकृतिक नियमों व प्राकृतिक अधिकारों में स्पष्ट भेद किया है। हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक नियम सुरक्षा एवं शान्ति के लिए बने थे। हॉब्स ने ऐसे 20 प्राकृतिक नियमों का वर्णन किया है। प्रथम तीन नियमों को हॉब्स ने बहुत महत्त्वपूर्ण बतलाया है। ये बीस नियम निम्नलिखित प्रकार से हैं-

1. प्रत्येक मनुष्य को शान्ति स्थापना के प्रयास करना चाहिए।

2. प्रत्येक व्यक्ति को शान्ति स्थापित करने के लिए तथा व्यक्तिगत सुरक्षा की द ष्टि से अपने समस्त अधिकारों का परित्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए बशर्ते अन्य व्यक्ति भी ऐसा करने के लिए सहमत हों।

3. व्यक्तियों को अपने समझौतों का पालन करना चाहिए। उपर्युक्त तीनों को स्पष्ट करने के लिए हॉब्स का यह एक वाक्य पर्याप्त है- "दूसरों के साथ मुम वैसा ही करो जैसा अपने लिए उनसे चाहते हो। "

4. भविष्य का ध्यान रखते हुए प्रत्येक मनुष्य को उन दूसरे मनुष्यों की पिछली त्रुटियों को क्षमा कर देना चाहिए जो पश्चाताप करके क्षमा चाहते हैं।

5. प्राकृतिक रूप से प्रत्येक व्यक्ति को दूसरों को अपने समान समझना चाहिए।

6. मनुष्य को कृतघ्न नहीं होना चाहिए।

7. हर एक मनुष्य को दूसरों के साथ तालमेल स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। 8. प्रतिशोध लेने में मनुष्य को पिछली बुराई की महत्ता को नहीं बल्कि भविष्य में उससे होने वाली अच्छाई की महत्ता देखनी चाहिए।

9. किसी भी व्यक्ति को शान्ति की शर्तों को मनवाते समय स्वयं के लिए ऐसे अधिकार सुरक्षित नहीं रखने देना चाहिए जिन्हें वह दूसरों के लिए सुरक्षित नहीं रहने देना चाहता। 10. कोई व्यक्ति अपने कार्यों, शब्दों या भावों द्वारा दूसरे के प्रति प्रतिशोध, घणा या ईर्ष्या अभिव्यक्त न करे।

11. प्रत्येक व्यक्ति को शिष्टाचार का व्यवहार करना चाहिए।

12. गवाही को उचित महत्त्व दिया जाना चाहिए।

13. जब विवाद हो जाये तो उसे निर्णय के लिए छोड़ दिया जाये।

14. मनुष्य व मनुष्य के बीच न्याय करने के लिए यदि किसी मनुष्य का विश्वास किया जाये तो उसे दोनों को समान समझना चाहिए।

15. दूसरों के लिए वह मत करो जिसे तुम अपने लिए करना पसन्द नहीं करते।

16. कोई भी व्यक्ति स्वयं अपना निर्णायक नहीं हो सकता। उसे अपना निर्णय दूसरों पर छोड़ देना चाहिए। 17. प्राकृतिक नियम के अनुसार किसी ऐसे व्यक्ति को निर्णायक नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए जिसके निर्णय से उसे कोई लाभ पहुँचता हो

18. जिन वस्तुओं का बँटवारा नहीं किया जा सकता, उनका सम्भव हो खुले हाथों उपयोग किया जाना चाहिए। परन्तु यह उपभोग उपभोग्य वस्तुओं की मात्रा पर आधारित है। अन्यथा जिन का अधिकार उन वस्तुओं पर है, संख्या के अनुपात में उनके बीच बँटवारा कर दिया जाये।

19. शान्ति की मध्यस्थता वाले लोगों के लिए सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए।

20. जहाँ स्थिति ऐसी हो कि वस्तु का न तो सामूहिक उपभोग समभव है और न ही समान बँटवारा हो सकता है तो प्राकृतिक नियम यह व्यवस्था करता है कि प्रथम प्रयोग हेतु अधिकार देने के लिए लाटरी निकाली जानी चाहिए। 

उपर्युक्त बीस प्राकृतिक नियमों को हॉब्स के एक वाक्य में समेटा जा सकता है। “दूसरों से वैसा व्यवहार न करो जो आप स्वयं अपने आप से नहीं करेंगे।" अर्थात् जो कार्य हम अपने लिए अनुचित मानते हैं, दूसरो से भी ऐसी अपेक्षा रखनी चाहिए। जिस व्यवहार से हम क्षुब्ध होते हैं और हमारे आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचती हो, वैसा हम दूसरों के साथ न करें। यही हॉब्स के प्राकृतिक नियमों का सार है। प्रो. सेबाइन ने कहा है- "वे एक साथ ही दूरदर्शिता के सिद्धान्त और सामाजिक आधार के नियम हैं जो व्यक्तिगत कार्य के मनोवैज्ञानिक उद्देश्यों से आगे बढ़कर सभ्य कानून तथा नैतिकता के मूल्य तक पहुँचना सम्भव बनाते हैं। " हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक नियमों को आधार बनाकर सभ्य समाज का निर्माण किया जा सकता है। प्राकृतिक नियमों की व्याख्या से उसका उद्देश्य समाज का निर्माण करना है। हॉब्स के अनुसार अपने विवेक शक्ति के आधार पर व्यक्ति यह अनुभव करते हैं कि प्राकृतिक नियमों का पालन किया जाना चाहिए। हॉब्स लिखता है कि मानव में आदिम व्यवस्था से ऊपर उठने की प्रवत्ति है और प्राकृतिक नियमों में वे सब तत्त्व विद्यमान हैं जो उसे युद्ध की स्थिति समाप्त करने और शासन को स्थापित करने को प्रेरित करते हैं। जैसे शान्ति स्थापित करना, सामान्य सत्ता समझौते को लागू करना, मानव समानता को स्वीकार करना आदि। हॉब्स लिखता है कि यद्यपि प्राकृतिक नियम प्राकृतिक दशा में लागू नहीं होते फिर भी वे शासन से पूर्व हैं। यह नहीं कहा जा सकता कि प्राकृतिक नियमों का जन्म शासन के साथ होता है। प्राकृतिक नियम ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं जो उन्हें सार्थक बनाती हैं। जब तक मानव इस प थ्वी पर निवास करता है तब तक मानव प्रशासन के अधीन रहना पसन्द करेगा क्योंकि हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक नियम स्थिर और सतत हैं और वे मानव की अन्तरात्मा में निवास करते हैं। हॉब्स पहला दार्शनिक है जो प्राकृतिक अधिकारों और प्राकृतिक नियमों में स्पष्ट अन्तर करता है।  

प्राकृतिक नियमों तथा प्राकृतिक अधिकारों में मुख्य भेद निम्नलिखित हैं :-

1 प्राकृतिक अधिकार प्रत्येक कार्य को करने की स्वतन्त्रता देते हैं अर्थात् प्रत्येक वस्तु को प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करते हैं, जबकि प्राकृतिक नियम केवल उन कार्यों को करने की आज्ञा देते हैं जो जीवन सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। ये व्यक्ति को कुछ अधिकार त्यागने के लिए कहते हैं।

2. प्राकृतिक अधिकार पशु शक्ति पर आधारित हैं विवेक पर नहीं। इन्हें शेर के अधिकार कहा जाता है, जबकि प्राकृतिक नियम विवेक पर आधारित हैं जो मानव को दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करने की सलाह देते हैं जो वह स्वयं के साथ करवाना चाहता है।
3. प्राकृतिक अधिकारों का नागरिक समाज में कोई महत्त्व नहीं है, जबकि प्राकृतिक नियमों का नागरिक समाज में महत्त्व है। प्राकृतिक देशों में ही इनका महत्त्व नहीं है।

4. प्राकृतिक अधिकारों में नैतिकता का अभाव है, जबकि प्राकृतिक नियम नैतिकता पर आधारित हैं।

5. प्राकृतिक अधिकारों का उपयोग प्राकृतिक दशा को युद्ध की दशा बना देता है। इनका प्रयोग अराजकता की स्थिति पैदा करता है, जबकि प्राकृतिक नियमों के पालन करने से शान्ति और सुरक्षा की गारण्टी मिलती है।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राकृतिक अधिकार असीमित स्वतन्त्रता के तथा प्राकृतिक नियम प्रतिबन्धों की व्याख्या करते हैं। प्राकृतिक अधिकार शक्ति पर जबकि प्राकृतिक नियम विवेक पर आधारित हैं। नागरिक समाज की स्थापना के लिए हॉब्स बीस प्राकृतिक नियमों के पालन पर जोर देता है।

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