थॉमस हॉब्स एक व्यक्तिवादी के रूप में ( Thomas Hobbes as an Individualist)

हॉब्स एक व्यक्तिवादी के रूप में (Hobbes as an Individualist)


हॉब्स ने सर्वोपांग असीमित अधिकारयुक्त निरंकुशता के सिद्धान्त का सर्जन किया है लेकिन इसका तर्क तथा उद्देश्य व्यक्ति की शांति, सुरक्षा तथा उसकी सम्पत्ति की रक्षा है जिसके कारण हॉब्स के सिद्धान्त पर व्यक्तिवाद का प्रभाव दिखाई देता है। हॉब्स के 'लेवियाथन' में अब तक समाज में खोया हुआ व्यक्ति अपने रूप में आता है। 'लेवियाथन' के ग्यारहवें अध्याय में 'मनुष्य पर' वे व्यक्ति के महत्त्व पर बिना वर्ग-भेद के बल देते हैं। उसका उद्देश्य पथक् व्यक्तित्व वाले व्यक्ति का वर्णन करना है। हॉब्स का व्यक्तिवाद अनुभवसिद्ध और धर्मनिरपेक्ष है तथा पूर्व धारणाओं पर आधारित नहीं है। हॉब्स सम्प्रभु द्वारा जीवन रक्षा में असफल रहने पर व्यक्ति को विरोध का अधिकार प्रदान कर देता है। यह अधिकार व्यक्ति को खतरे के समय अपना निर्णायक स्वयं बनने की आज्ञा प्रदान करता है। हॉब्स का व्यक्ति काफी स्वतन्त्र है, क्योंकि जहाँ कानून मौन है वहाँ व्यक्ति स्वतन्त्र है । हॉब्स का व्यक्ति पूर्णरूपेण एकाकी तथा गर्वयुक्त है। हर व्यक्ति की अपनी इच्छाएँ होती हैं और विचार होते हैं। व्यक्ति को किसी विशेष नियम से नहीं बाँधा जा सकता।

हॉब्स के अनुसार- "व्यक्ति बिल्कुल अलग-अलग इकाइयाँ हैं और राज्य बाहर की वस्तु है। यह एक ऐसी शक्ति है जो उन्हें एकता के सूत्र में बाँधती है औरउ नके समान स्वार्थों में सामंजस्य स्थापित करती है।" प्रायः समशक्तिमान स्वार्थी बिखरे हुए मनुष्य हॉब्स के राजदर्शन की प्रारम्भिक इकाई हैं। हॉब्स के अनुसार व्यक्ति के स्वार्थ से अलग किसी संस्था का उद्देश्य न हो सकता है और न होना चाहिए। राज्य का जन्म तो प्रजाजनों की सहमति से ही होता है। राज्य कृत्रिम संस्था है। जब व्यक्ति की स्वतन्त्रता खतरे में पड़ती है तो हॉब्स विशेष परिस्थितियों में व्यक्ति को विद्रोह का अधिकार प्रदान करता है। हॉब्स का कहना है कि- "समाज की रचना सम्प्रभुतामय राजशक्ति का समझौते से उदय और आत्मरक्षा के अभाव में सम्प्रभु की आज्ञा की अवहेलना, इन सभी के पीछे व्यक्तित्वाद ही प्रधान कारण है। हॉब्स ही पहला दार्शनिक था, जिसने व्यक्ति के हित को, उसके जीवित रहने के अधिकार को सर्वोपरि माना ।

हॉब्स का 'लेवियाथन' व्यक्तिवाद का प्रबल समर्थक ग्रन्थ है। मैक्सी के अनुसार- "हॉब्स का 'लेवियाथन' केवल सम्प्रभुता के सिद्धान्त का और राज्य को एक साधन के रूप में मानने वाला ग्रन्थ नहीं है। वह व्यक्तिवाद का प्रबल समर्थक है।" इस कथन के सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि एक ओर हॉव्स के दर्शन में निरंकुशता का प्रतिपादन मिलता है तो दूसरी ओर उसकी विचारधारा में व्यक्तिवाद के प्रबल तथा स्पष्ट दर्शन होते हैं। व्यक्तिवाद की मूल धारणा यह है कि सभी संघ, समुदायों, अन्य संस्थाओं या राज्य आदि व्यक्ति द्वारा निर्मित हैं तथा व्यक्ति उसकी इकाई है जो अपने में शामिल व्यक्तियों से अधिक या भिन्न कुछ भी नहीं है। इस द ष्टिकोण के अनुसार साध्य और राज्य व्यक्ति साध्य और राज्य साधन मात्र है ।

सेबाइन के अनुसार- "निरंकुशता के आवरण में हॉब्स ने घोर व्यक्तिवादिता का समर्थन किया है। हॉब्स ने निरंकुशता का प्रचार निरंकुशता के लिए नहीं किया बल्कि व्यक्ति के जीवन को सुखी बनाने के लिए किया है।" डनिंग का मत है कि "हॉब्स के सिद्धान्त में राज्य शक्ति का उत्कर्ष होते हुए भी मूल आधार पूर्णतः व्यक्तिवादी है। यह सिद्धान्त मिल्टन या अन्य किसी क्रान्तिकारी की तरह ही प्राकृतिक समानता पर जोर देता है।" हॉब्स ही प्रथम दार्शनिक है जिसने व्यक्ति के जीने के अधिकार को सर्वोपरि माना। हॉब्स के राजनीतिक दर्शन की प्रत्येक घटना, चाहे राजनीतिक समाज की स्थापना से पहले की हो या उसके बाद की, व्यक्ति के लिए है, व्यक्ति की है और व्यक्ति के लिए है। प्रो. वेपर के अनुसार "लेवियाथन केवल प्रभुसत्ता के सिद्धान्त का जोरदार प्रतिपादन ही नहीं है। वह व्यक्तिवाद का भी एक प्रभावशाली विवरण है।" एक व्यक्तिवादी के रूप में हॉब्स का व्यक्तिवाद केवल इस बात पर आधारित है कि हॉब्स इस संसार की रचना व्यक्तियों से मानता है। हॉब्स का व्यक्तिवाद समझौते की स्थिति में भी व्यक्तियों के व्यक्तित्व को नष्ट नहीं होने देना चाहता। व्यक्ति का जीवन का अधिकार हॉब्स के समझौते में व्यक्तिवादी तत्त्व को दर्शाता है। अतः हॉब्स के दर्शन में व्यक्तिगत इच्छाएँ ही प्रमुख हैं। 

अतः हॉब्स को एक व्यक्तिवादी विचारक के रूप में जानने के लिए निम्नलिखित तत्त्वों पर विचार किया जाता है :-

1. राज्य साधन, व्यक्ति साध्य है (State is a Means and Man is the End) : हॉब्स का दर्शन देखने में तो राज्यवादी प्रतीत होता है लेकिन उसके चिन्तन की अन्तरंग मांग व्यक्तिवादी है। हॉब्स व्यक्तिवादियों की तरह राज्य को साधन तथा व्यक्ति को साध्य मानता है। हॉब्स के अनुसार- "राज्य व्यक्ति की स्वार्थ सिद्धि का साधन मात्र है साध्य तो व्यक्ति ही अपने आप में है। " हॉब्स का सम्प्रभु स्वयं साध्य न होकर लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक साधन मात्र है। हॉब्स के अनुसार- " निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तियों ने राज्य का निर्माण किया है और यदि राज्य उन उद्देश्यों की पूर्ति करने में असमर्थ है तो उस राज्य की न कोई उपयोगिता है और न ही कोई महत्त्व। इसलिए हॉब्स एक व्यक्तिवादी के रूप में राज्य को साधन तथा व्यक्ति को साध्य मानता है।

2. चिन्तन का केन्द्र व्यक्ति है (Man is the centre of Thoughts): हॉब्स व्यक्ति को मूल इकाई मानता है। व्यक्ति ही उसके सम्पूर्ण राजनीतिक चिन्तन का केन्द्र बिन्दु है। समाज एक प्राकृतिक या स्वाभाविक संस्था नहीं है अपितु व्यक्तियों का समूहमात्र है। यद्यपि हॉब्स ने मानव प्रकृति का एक पक्षीय चित्रण किया है तथा व्यक्ति के दुर्गुणों पर प्रकाश डाला है, परन्तु उसने व्यक्तिवाद की परम्परा के अनुसार ही राज्य की स्थापना का आधार व्यक्तियों की सहमति को माना है। हॉब्स का व्यक्ति पूर्णरूपेण एकाकी है। हॉब्स व्यक्ति को अपने चिन्तन का आधार बनाकर लिखता है। व्यक्ति ने राज्य की स्थापना अपने हित के लिए की है। समझौते का विरोध भी व्यक्ति अपने आत्मरक्षा के अधिकार के लिए कर सकता है। अतः हॉब्स का चिन्तन व्यक्ति पर ही आधारित है।

3. समानता का समर्थन (Supporter of Equality) : हॉब्स सभी व्यक्तियों को अन्य व्यक्तिवादियों की तरह समान मानता है। हॉब्स के अनुसार व्यक्तियों की मानसिक और शारीरिक शक्तियाँ तो भिन्न हो सकती हैं लेकिन इस स्थिति में व्यक्ति की शारीरिक शक्ति की कमी मानसिक शक्ति से तथा मानसिक शक्ति की कमी शारीरिक शक्ति से पूरी हो जाती है। परन्तु हॉब्स लोकतन्त्रीय शासन की समानता को नहीं मानता, वह केवल व्यक्तियों की समानता को ही महत्त्व देता है।

4. राज्य एक कृत्रिम संस्था है (State is an Artificial Institution) : हॉब्स राज्य को दैवीय संस्थान मानकर, समझौते द्वारा निर्मित संस्था मानता है। हॉब्स का विचार है कि व्यक्तियों ने प्राकृतिक अवस्था से निकलने के लिए अपने ऊपर शासन करने का अधिकार सम्प्रभु को दे दिया। हॉब्स ने एक ऐसे सम्प्रभु की कल्पना की है जो व्यक्तियों के आधारभूत हित अर्थात् आत्मरक्षा के हित की रक्षा कर सके। राज्य में शांति व्यवस्था कायम कर सके। इसलिए व्यक्तियों ने अपनी सारी स्वतन्त्रताएँ समाप्त करके स्वयं उन पर प्रतिबन्ध लगा लिया और निरंकुश राज्य की स्थापना की। अतः हॉब्स अन्य व्यक्तिवादियों की तरह राज्य को दैवी य प्राकृतिक संस्था नहीं मानकर उसको व्यक्तियों द्वारा निर्मित संस्था मानता है।

5. व्यक्तिवादी कार्य-सिद्धान्त का प्रतिपादन (Approval of Individualistic Principle of Working) : हॉब्स द्वारा प्रतिपादित राज्य के निषेधात्मक कार्य व्यक्तिवादियों के अनुरूप हैं। राज्य का उद्देश्य यथार्थवादी तथा भौतिक है। व्यक्ति की रक्षा के लिए, आंतरिक शान्ति व व्यवस्था, बाह्य आक्रमण से रक्षा और चाय सम्बन्धी कार्य करना राज्य का उद्देश्य है। साथ ही हॉब्स व्यक्ति के जीवन व कार्यों में राज्य के अनावश्यक हस्तक्षेप का विरोधी है। हॉब्स के अनुसार कानून का उद्देश्य व्यक्ति के मात्र उन कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाना है जो सार्वजनिक शान्ति व व्यवस्था को भंग करने वाले हों नकि व्यक्ति के समस्त कार्यों में हस्तक्षेप करना। हॉब्स के अनुसार व्यक्ति को आत्मरक्षा के सिद्धान्त के तहत विरोध करने का अधिकार इसलिए प्राप्त है कि सम्प्रभु आत्मरक्षा के अधिकार की सुरक्षा करने में असफल रहता है। इस प्रकार हॉब्स ने व्यक्ति के अन्तःकरण तथा विश्वास सम्बन्धी स्वतन्त्रता को स्वीकारा है। यह बात हॉब्स के व्यक्तिवादी होने की ओर संकेत करती है। यदि राज्य अपने कर्त्तव्यों के प्रति उदासीन हो जाए तो व्यक्ति को अपनी आत्मरक्षा हेतु कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस सिद्धान्त में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता की पूरी तरह छूट है। इसलिए हॉब्स के चिन्तन में व्यक्तिवाद है।

6. व्यक्ति को शासन के विरोध का अधिकार है (Individual has the Right to Oppose the Ruler) : व्यक्ति की आत्मरक्षा का अधिकार सम्प्रभु को सौंपा गया है। प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य ने इसी अधिकार की सुरक्षा के लिए समझौता किया और सारी शक्तियाँ सम्प्रभु को सौंप दीं। यदि सम्प्रभु आत्मरक्षण के अधिकार का उल्लंघन करता है या वह इस अधिकार की रक्षा करने में असमर्थ होता है तो ऐसी दशा में सम्प्रभु के आधारभूत दायित्व का पालन नहीं किया जा सकता तथा व्यक्तियों को सम्प्रभु का विरोध करने का अधिकार प्राप्त है। हॉब्स के अनुसार "अपनी आत्मसुरक्षा के लिए व्यक्ति अपने सारे अधिकारों का परित्याग कर सम्प्रभु को असीम सत्ता प्रदान करते हैं। यदि सम्प्रभु व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने में असमर्थ होता है तो व्यक्तियों को उस सम्प्रभु के विरुद्ध क्रान्ति का अधिकार प्राप्त है।" इस प्रकार सम्प्रभु के विरुद्ध विद्रोह का अधिकार व्यक्ति को शक्तिशाली बनाता है। हॉब्स लिखता है कि “प्रजा सम्प्रभु की आज्ञा उसी समय तक मानने के लिए बाध्य है जब तक उसमें प्रजा को संरक्षण प्रदान करने की शक्ति है। इसलिए हॉब्स ने व्यक्ति के आत्मरक्षा के अधिकार को सर्वोच्च माना है। इसलिए यह अधिकार उसे व्यक्तिवादी सिद्ध करता है।

उपर्युक्त विवरण के आधार पर स्पष्ट है कि हॉब्स एक व्यक्तिवादी है। सेबाइन के अनुसार- "हॉब्स के दर्शन को क्रान्तिकारी बनाने वाला उसका तत्त्व उसका व्यक्तित्वाद है।" हॉब्स व्यक्ति के हित का प्रबल समर्थक है। हॉब्स व्यक्ति को ही अपने सम्पूर्ण चिन्तन का केन्द्र मानते हैं। हाब्स का निरंकुशवाद उसके व्यक्तिवाद का पूरक है। हॉब्स का सारा दर्शन व्यक्ति की भय तथा आत्मरक्षा की भावना पर आधारित होने के कारण व्यक्तिवादी है। हॉब्स का व्यक्तिवाद बिल्कुल अप्रतिबन्धित और पक्का है। हॉन्स का सुस्पष्ट व्यक्तिवाद ही उसके दर्शन को क्रान्तिकारी बना देता है। उसके व्यक्तिवाद ने अहस्तक्षेप के सिद्धान्त को जन्म दिया और उसके चिन्तन का 19 वीं शताब्दी के व्यक्तिवादी सिद्धान्तों पर अधिक प्रभाव पड़ा। उसका सिद्धान्त बेन्थम जैसे उपयोगितावादियों के लिए एक शक्तिशाली उपकरण बन गया। हॉब्स का दर्शन व्यक्तिवाद का दर्शन है। वह व्यक्ति को ही अपने चिन्तन का आधार बनाता है। वह निरंकुश सम्प्रभु के रूप में वस्तुतः एक व्यक्तिवादी ही है। वह राज्य को साधन तथा व्यक्ति को साध्य मानता है। आधुनिक व्यक्तिवादियों के अनुसार व्यक्ति के गुण उनके चिन्तन का आधार हैं, लेकिन हॉब्स अवगुणों को प्रमुखता देता है। यही कारण है हॉब्स व्यक्ति को माध्यम मानते हुए भी उसे एक निरंकुश व सर्वोच्च सम्प्रभु के अधीन रखता है। स्थिति चाहे कुछ भी हो हॉब्स के व्यक्तिवादी होने में कोई सन्देह नहीं है।

हाब्स के चिन्तन का महत्त्व और देन (Importance and Contribution of Hobbe's Thoughts)

यह सत्य है कि हॉब्स आधुनिक सम्प्रभु राज्य का जनक है। हॉब्स से पहले भी रोमन विचारकों ने सम्प्रभुता को परिभाषित करने का प्रयास किया, लेकिन वे प्रभुसत्ता का स्वरूप निश्चित नहीं कर सके। बोदाँ द्वारा भी इस दिशा में प्रयास किये गए लेकिन उन्होंने सम्प्रभुता पर कुछ पाबन्दियाँ लगा दीं। हॉब्स ही सम्प्रभुता को परिभाषित करने वाला प्रथम अंग्रेज विचारक है। हॉब्स का सम्प्रभुता का सिद्धान्त उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण देन है। हॉब्स ने सम्प्रभुता को सब प्रकार की पाबन्धियों से मुक्त कर दिया। कुछ आलोचक हॉब्स के चिन्तन का महत्त्व नकारते हैं। सेबाइन, वेपर, जोन्स, मैक्सी जैसे विचारक हॉब्स को सबसे महान विचारकों में से एक मानते हैं। सेबाइन के अनुसार- "हॉब्स ही शायद राजनीतिक दशन का सबसे श्रेष्ठ लेखक है जिन्हें आंग्ल राष्ट्रों ने जन्म दिया है।" ओकशाट का कथन है कि “लेवियाथन अंग्रेजी भाषा में राजनीतिक दर्शन का सबसे श्रेष्ठ शायद एकमात्र श्रेष्ठ कृति है।" प्रो. मैक्सी का कहना है- "हॉब्स अंग्रेज जाति का सबसे महान विचारक है जिसका नाम तब तक अमर रहेगा जब तक लोग राजनीतिक मामलों में चिन्तन करते रहेंगे। उपर्युक्त तर्कों के आधार परयह कहा जा सकता है कि हॉब्स अन्य राजनीतिक चिन्तकों से किसी भी प्रकार से कम नहीं है। अन्य सभी महान् चिन्तकों की तरह ही हॉब्स भी राजनीतिक चिन्तन के इतिहास के एक महान् प्रणाली या दर्शन के निर्माता हैं। हॉब्स द्वारा लिखित ग्रन्थ 'लेवियाथन' उसकी सर्वश्रेष्ठ कृति है। यह अंग्रेजी भाषा में राजनीति विज्ञान पर अत्यधिक मौलिक तथा महत्त्वपूर्ण रचना है। हॉब्स ने इस ग्रन्थ में प्रभुसत्ता के सिद्धान्त को प्रतिपादन करने का तर्कपूर्ण प्रयास किया है। हॉब्स ने इस ग्रन्थ में हमें ऐसा सिद्धान्त दिया है जो मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान तीनों बड़े सामंजस्य के साथ एक स्थान पर रखता है। जोन्स तथा अनय भाष्यकारों ने दावा किया है कि 'लेवियाथन' किसी अंग्रेज द्वारा लिखा गया श्रेष्ठतम ग्रन्थ है। राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में हॉब्स का महत्त्वपूर्ण योगदान है। उपर्युक्त कारणों से हॉब्स का राजनीति दर्शन अंग्रेजी ग हयुद्ध के समय का महत्त्वपूर्ण चिन्तन है। 

हॉब्स की राजनीतिशास्त्र को महत्त्वपूर्ण देन निम्नलिखित हैं :-

1. प्रभुसत्ता के सिद्धान्त का स्पष्ट प्रतिपादन (Clear Statement fo Principle of Sovereignty) : हॉब्स की राजनीतिशास्त्र को सबसे महत्त्वपूर्ण देन उसका प्रभुसत्ता का सिद्धान्त है। हॉब्स से पूर्व मैकियावली, ग्रोशियस तथा बोदाँ द्वारा इस सिद्धान्त के विकास के प्रयास किये गए लेकिन उन्होंने प्रभुसत्ता पर कुछ न कुछ प्रतिबन्ध लगा दिये। हॉब्स ही ऐसा प्रथम विचारक है जिसने आधुनिक अर्थ में प्रभुसत्ता को परिभाषित किया। सेबाइन ने कहा है- "हॉब्स ने प्रभुसत्ता को उन समस्त अयोग्यताओं से पूर्णतया मुक्त कर दिया जिन्हें बोदाँ ने असंगतिपूर्ण ढंग से बनाए रखा था।" वाहन ने लिखा है- "हॉब्स ही वह प्रथम विचारक है जिसने सम्प्रभुता के विचार के पूर्ण महत्त्व को समझा और उसके स्वरूप, मर्यादाओं, कार्यों आदि की सूक्ष्म विवेचना कर उसकी विशद व्याख्या की। आधुनिक काल में सम्प्रभुता का वही स्वरूप है जो हॉब्स ने दिया था।

2. सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का अभिनवीकरण (New Orientation to Principle of Social Contract) : हॉब्स राज्य की उत्पत्ति के प्रतिपादकों में से एक है। हॉब्स ने राज्य की उत्पत्ति का आधार सामाजिक समझौते को माना और उसका वैज्ञानिक ढंग से प्रतिपादन किया। उसने कहा कि राज्य मानवीय इच्छा का परिणाम है न कि दैवी इच्छा का अतः राज्य ईश्वरीय कृत नहीं मानवकृत है। जैगोरिन के अनुसार- "हॉब्स ने स्पष्ट घोषित किया है कि राज्य मनुष्य की सष्टि है और उसका एकमात्र औचित्य उसकी उपयोगिता है। जब मानव की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि में राज्य विफल रहता है तो वह अपने औचित्य को गंवा देता है अर्थात् राज्य का महत्त्व नष्ट हो जाता है।" हॉब्स ने स्पष्ट किया है कि राज्य को किसी ईश्वर ने नहीं बनाया है। राज्य वास्तव में मनुष्य द्वारा बनाया हुआ एक यन्त्र, एक शिल्प तथ्य तथा आविष्कार है। हॉब्स ने लोगों के मन से दैवी संस्था का डर निकाल दिया तथा निरंकुश सम्प्रभुता को मानवीय विवेक से उत्पन्न सामाजिक समझौते का परिणाम बताया। हॉब्स राज्य की उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त की म त्यु का संकेत देने वाल प्रथम विचारक है।

3. व्यक्तिवाद की अवधारणा (Concept of Individualism) : हॉब्स ने राज्य और समाज को व्यक्ति की सुरक्षा का साधन बताया है। हॉब्स व्यक्ति को साध्य तथा राज्य को साधन मानता है। व्यक्ति के जीवन तथा सम्पत्ति की रक्षा के लिए ही राज्य को निरंकुश अधिकार दिये गए हैं। राज्य का हित व्यक्तिगत हितों का योग मात्र है। हॉब्स का व्यक्तिवाद राजतन्त्र की दष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। हॉब्स के व्यक्तिवाद की प्रशंसा करते हुए कहा गया है- “आत्मरक्षा तथा आत्माभिव्यक्ति के जिस आधार पर हॉब्स ने अपने राजनीतिक चिन्तन का विकास किया है, उसे देखते हुए यह अनिवार्य था कि वह व्यक्तिवाद का समर्थन करता।" हॉब्स का निरंकुश सम्प्रभुता का सिद्धान्त ही उसके व्यक्तिवाद का पूरक है। सेबाइन ने ठीक ही लिखा है- "हॉब्स के व्यक्तिवाद का तत्त्व पूर्ण रूप से आधुनिक है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हॉब्स पूर्णतया व्यक्तिवादी है। 

4. राज्य व्यक्ति के हितों का मध्यस्थ है (State is mediator of Individual Interests) : हॉव्स ही ऐसा विचारक है जिसने राज्य को व्यक्ति के विभिन्न हितों के समन्वयकर्ता के रूप में देखा। हॉब्स ने उपयोगितावादियों के लिए भी मार्गदर्शन किया। हॉब्स ने निरंकुशता तथा धर्मनिरपेक्षता को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। हॉब्स का समझौता सिद्धान्त राज्य के मध्यस्थ की भूमिका का स्पष्ट पक्षधर है। बैन्थम हॉब्स का बड़ा ऋणी है।

5. कानून की सत्ता की स्थापना (Establishment of existence of Law) : निरंकुश राजतन्त्र का समर्थक होते हुए भी हॉन्स कानून की सत्ता को स्थापित करना चाहता था। हॉब्स अत्यधिक कानून बनाने के खिलाफ है। अधिक कानून लागू होने की स्थिति में कानून का उल्लंघन होगा और उसका महत्त्व कम होगा। हॉब्स ने कानून को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए दण्ड का प्रावधान आवश्यक बताया है। रचनात्मक और निरपेक्ष कानून की अवधारणा हॉन्स के दिमाग की ही उपज है।

6. धर्मनिरपेक्षता की आधुनिक पद्धति (Modern tendency of Secularism ) : हॉब्स का चिन्तन चर्च के लिए अरुचिकर सिद्ध हुआ। राजतन्त्र के दैवी अधिकारों के समर्थकों में उसके सामाजिक समझौते के सिद्धान्त पर आधारित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त को नापसन्द किया। चर्च के प्रति निष्ठावान लोगों ने उसके सम्प्रभुता सिद्धान्त का खण्डन किया। इस सिद्धान्त ने राजा के दैवीय अधिकारों का विरोध किया। 'लेवियाथन' में हॉब्स ने धर्म को राजनीति के अधीन करने का प्रयास किया। इससे उनके विरोध में लोग खड़े हो गए। इस दिशा में बोदाँ तथा मैकियावली ने भी कुछ चिन्तन किया है। लेकिन धर्मनिरपेक्षता का पूर्ण समर्थन करने वाला विचारक हॉब्स ही था। हॉब्स ने सम्प्रभु को चर्च से श्रेष्ठ घोषित करके धर्म का सार्वजनिक महत्त्व कम कर दिया। राजनीति को धर्म से अलग करने वाला प्रथम विचारक हॉब्स था मध्ययुग के विरुद्ध उसने राज्य को दैवी संस्था न मानकर मानवीय संस्था माना और राज्य को चर्च से ऊँचा स्थान दिया तथा धार्मिक सत्ता को राजनीतिक सत्ता के अधीन कर उसने धर्मनिरपेक्षता की आधुनिक प्रवत्ति का भी श्रीगणेश किया।

7. वैज्ञानिक अध्ययन पद्धति (Scientific Study Method) : हॉब्स का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान उनका वैज्ञानिक तरीका है। उस समय वैज्ञानिक क्रान्ति से प्रभावित होकर हॉब्स ने वैज्ञानिक तरीके को सामाजिक विज्ञानों के क्षेत्र में भी प्रयोग किया। उसने गैलिलियों के गति के सिद्धान्तों को सामाजिक विज्ञानों में प्रयोग किया। उसका वैज्ञानिक तरीका युक्तियुक्त, निगमनात्मक तथा ज्यामितिक है।

8. दैवी सिद्धान्त का विरोध (Rejection of Divine Origin of State) : हॉब्स ने अपनी पुस्तक 'लेवियाथन' में चर्च को राज्य के अधीन करते हुए धर्मनिरपेक्षता का परिचय दिया। उसकी विचारधारा से अनेक धर्माधिकारी उसके खिलाफ हो गए। उसने स्पष्ट कहा कि राज्य की उत्पत्ति दैवी इच्छा का परिणाम नहीं है। यह मानवीय विवेक पर आधारित समझौते का परिणाम है।

9. मिश्रित संविधान का समर्थन (Support to Mixed Constitution) : हॉब्स ने निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन करते हुए मिश्रित संविधान की अवधारणा को स्वीकार किया है।

10. उपयोगितावादियों पर प्रभाव ( Influence on Utilitarians) : हॉब्स पहला आधुनिक विचारक है जिसने परस्पर विरोधी हितों का सामंजस्य करके उपयोगितावाद का मार्ग खोल दिया। वेपर के अनुसार- "यह कोई आकस्मिक घटना नहीं है कि बैंथम भी यहाँ उसका उतना ही ऋणी है जितना सुख विषयक हॉब्स के विचारों का।" वैथम जैसे उपयोगितावादी हॉब्स के ऋणी हैं। बैंथम ने कच्चा माल हॉब्स से ही प्राप्त किया है।

11. काल्पनिक निगम (Fictitious Corporation) : हॉब्स ही ऐसे प्रथम विचारक हैं जिन्होंने कल्पित निगम की कल्पना की थी। निरंकुश सम्प्रभु की कल्पना करना संगठन के आवश्यक संघटकों को उपलब्ध करा देता है। यदि हॉब्स की मूल धारणाएँ स्वीकार कर ली जाएँ तो निगम का निर्माण सहमति से नहीं प्रत्युत संघ के द्वारा होता है। संघ का अभिप्राय सारे व्यक्तियों द्वारा अपनी इच्छाएँ एक व्यक्ति के हवाले कर देना है। निगम का यह सिद्धान्त जायण्ट स्टाक कम्पनियों का निर्णायक रूप में जन्मदाता है, जिनका जन्म सबसे पहले इंगलैण्ड में हुआ था, आज वे सारे संसार में फैल गई है।

12. मैक्सी के अनुसार हॉब्स आधुनिक व्यवहारवाद का जनक है।

13. हॉब्स ने राजनीति को नीतिशास्त्र से अलग किया।

14. हॉब्स के भौतिकवाद ने 19 वीं सदी में कार्लमार्क्स को परोक्ष रूप से प्रभावित किया

15. हॉव्स ने न्याय व कानून में सम्बन्ध स्थापित किया ।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि हॉब्स का राजनीतिक चिन्तन राजनीतिशास्त्र में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है । वेपर के अनुसार- "हाब्स असाधारण रूप से एक सुसंगत विचारक है । " हॉब्स प्रखर तर्कशास्त्री तथा सामाजिक प्रक्रियाओं के प्रबुद्ध - विश्लेषक विचारक थे। उनकी पुस्तक 'लेवियाथन' उस समय लिखी गयी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। हॉब्स के रूप में भावी पीढ़ी को एक ऐसी खान मिली है जिसका खोदना उनके लिए श्रेयस्कर है, क्योंकि उससे बहुमूल्य धातु निकलती है। अंग्रेजी भाषा-भाषी जातियों में जन्में सभी राजनीतिक दार्शनिकों में हॉब्स का चिन्तन सबसे महान् है। इंगलैण्ड में आज भी संवैधानिक राजतन्त्र का सम्मान किया जाता है। हॉब्स का सम्प्रभुता का सिद्धान्त आज भी महत्त्वपूर्ण है। आस्टिन ने आधुनिक काल में अपने विधि सिद्धान्त को हॉब्स के सम्प्रभुता सिद्धान्त पर आधारित किया है। हॉब्स के विचारों ने अनेक देशों में क्रान्तियों तथा फ्रेंच क्रान्तिको प्रभावित किया है। हॉब्स के योगदान का मूल्यांकन मैक्सी के इन शब्दों द्वारा किया जा सकता है- “हॉब्स अंग्रेज जाति के महान् विचारकों में से एक था। उसका प्रभाव राजदर्शन पर तब तक रहेगा जब तक कि लोग राजनीतिक विषयों पर चर्चा करेंगे।" उसके चिन्तन का मार्क्स तथा बैन्थम जैसे विचारकों पर भी प्रभाव पड़ा। उसने धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा की शुरुआत की। उसकी पुस्तक 'लेवियाथन' तत्कालीन परिस्थितियों पर आधारित होने के बावजूद भी आज के युग में राजनीतिक चिन्तन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। हॉब्स के राजनीतिक चिन्तन के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उस महान राजनीतिक दार्शनिक की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। अतः हॉब्स आधुनिक सम्प्रभु राज्य का जनक है।

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