थॉमस हॉब्स का जीवन परिचय ( Thomas Hobbes Biography In Hindi )
जीवन परिचय (Biography)
थॉमस हॉब्स का जन्म 5 अप्रैल 1588 को विल्टरशायर (इंगलैण्ड) में माम्सबरी (Malmesbury) नामक स्थान पर हुआ। उस समय इंगलैण्ड के तट पर स्पेन के आरमेड़ा के आक्रमण के भय से त्रस्त हॉब्स की माँ ने उसे समय से पूर्व ही जन्म देकर उसमे जन्मजात डर की भावना डाल दी। हॉब्स ने स्वयं कहा है कि- "हॉब्स और भय जुड़वाँ बच्चों की तरह पैदा हुए।" हॉब्स के पिता को उसके जन्म के समय ही आत्म-सुरक्षा हेतु परिवार छोड़कर इंगलैण्ड से भाग जाना पड़ा। इसलिए हॉब्स का पालन-पोषण उसके चाचा ने किया।
हॉब्स एक विलक्षण गुणों वाला बालक था। उसने चार वर्ष की अवस्था में शिक्षा प्रारम्भ की और छः वर्ष की आयु में ही उसने ग्रीक तथा लैटिन भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करके अपनी विलक्षण बुद्धि का परिचय दिया। उसने 14 वर्ष की आयु में ही यूरीपीडीज के 'मीडिया' नाटक का यूनानी भाषा से लैटिन भाषा में अनुवाद किया। 1603 में वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ और 1608 में मात्र 20 वर्ष की आयु में स्नातक परीक्षा पास करके, इंगलैण्ड के एक उच्च परिवार में विलियम कैवेण्डिश को पढ़ाने लगा। हॉब्स ने इस परिवार से अपना आजीवन नाता जोड़े रखा। उसने कैवेण्डिश के बौद्धिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यही विलियम कैवेण्डिश बाद में डिवोनशॉथर का अर्ल बना। 1610 में हॉब्स को अपने इसी शिष्य के साथ यूरोप की पहली यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ। अपने इसी शिष्य के कारण उनकी बेकन तथा बेन जॉनसन जैसे बुद्धिजीवियों से भेंट हुई। 1634 से 1637 तक उसे यूरोप की पुनः यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ। इस बार इटली में गैलिलियो से और पेरिस में फ्रेंच दार्शनिक डेकार्ट से उनका परिचय हुआ। जब 1637 में वह अपनी विदेश यात्रा पूरी करके वापस इंगलैण्ड लौटा तो उस समय इंगलैण्ड पर ग हयुद्ध के बादल मंडरा रहे थे। अपने देश के तत्कालीन राजनीतिक वातावरण से प्रभावित होकर, उसने राजतन्त्र के समर्थन में कुछ पुस्तकों की रचना की जिन्होंने उसके जीवन की सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया और उसे इंगलैण्ड छोड़कर वापिस पेरिस जाना पड़ा।
एक निर्वासित व्यक्ति के रूप में वह फ्रांस में मानसिक रूप से राजनीतिक चिन्तन में व्यस्त रहा और इसी दौरान उसने दो प्रसिद्ध ग्रन्थ 'डीसीवे' (De cive 1642) तथा 'लेवियाथन' (Leviathan 1651 ) की रचना की, जिसमें उसने निरंकुश राजतन्त्र को सही मानते हुए सामाजिक समझौते के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इन पुस्तकों के प्रकाशित होते ही फ्रांसीसी शासक उसके विरोधी बन गए। अपने खिलाफ इसी विरोध के चलते उसे वापिस इंगलैण्ड आना पड़ा। 1652 में इंगलैण्ड में आने के बाद वह पुनः डिवोनशॉपर के अर्ल के परिवार के साथ रहने लगा। यहाँ उसने 'डी कारपोरे' (De Corpore 1655) तथा 1959 में 'डी होमाइन' (De Homine 1658) की रचना की। 1660 में कामनवेल की समाप्ति पर जब पुनः राजतन्त्र की स्थापना हुई तो हॉब्स का शिष्य चार्ल्स द्वितीय गद्दी पर बैठा। चार्ल्स द्वितीय के सत्तारूढ़ होते ही हॉब्स के जीवन के संकट का भय तो कम हो गया लेकिन उसके अधार्मिक विचारों से मठाधीश अब भी नाराज थे। इस कारण उसकी राजनीतिक गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया और चार्ल्स द्वितीय की कृपा से उसे सजा नहीं दी गई। उसने राजा की सलाह पर अपना जीवन शांति से व्यतीत करने का संकल्प किया और वह लन्दन छोड़कर कैटसवर्थ में रहने लगा। इस दौरान वह अध्ययनरत रहा और 84 वर्ष की आयु में उसने लैटिन भाषा में अपनी आत्मकथा लिखी और 87 वर्ष की आयु में यूनान के प्राचीन कवि होमर की प्रसिद्ध पुस्तकों 'इलियड' और 'ओडिसी' का अंग्रेजी में अनुवाद करके अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया। 1679 में 91 वर्ष 10 महीने की दीर्घायु में इस महान दार्शनिक की इस संसार में जीवन यात्रा समाप्त हो गई।
समकालीन परिस्थितियाँ (Contemporary Situations)
एक प्रबुद्ध राजनीतिक विचारक के रूप में हॉब्स ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति के साथ-साथ हॉब्स ने निरंकुशतावाद तथा धर्मनिरपेक्षवाद के लिए वैज्ञानिक भूमिका तैयार की थी। भौतिक विज्ञानों के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली वैज्ञानिक पद्धति को दर्शन तथा राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में प्रयुक्त कर उन्हें वैज्ञानिक रूप प्रदान करके, हॉब्स ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। हॉब्स ने राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में सामाजिक संविदा (समझौते ) के सिद्धान्त की नवीन परम्परा को जन्म देकर व उसे विकसित करके महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। हॉब्स ने वैज्ञानिक पद्धति की स्थापना करके राजनीतिशास्त्र को एक नया आधार प्रस्तुत किया।
हॉब्स के चिन्तन पर जिन परिस्थितियों का प्रभाव पड़ा वे निम्नलिखित हैं :-
1. इंगलैण्ड में ग ह-युद्ध (Civil War in England) : हॉब्स के युग में इंगलैण्ड में ग हयुद्ध के कारण अराजकता का माहौल था। सर्वोच्चता को लेकर राजा और संसद में संघर्ष छिड़ा हुआ था। इस अशांत वातावरण ने हॉब्स के चिन्तन पर गहरा प्रभाव डाला। वह स्थायी शांति की स्थापना का मार्ग तलाश करना चाहता था। इस अशांत वातावरण और अराजकता की स्थिति से निपटने के लिए हॉब्स ने मानव स्वभाव का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला कि शांति की स्थापना शक्तिशाली राजतन्त्र की स्थापना द्वारा ही संभव है। उसने निष्कर्ष निकाला कि प्रभुसत्ता को राजा और संसद में बाँटने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता। इसका समाधान तो पूर्ण प्रभुसत्ता सम्पन्न राजतन्त्र में ही सम्भव है।
ग्रहयुद्ध के कारणों पर विचार करते हुए हॉब्स ने प्यूरिटन मत (ईसाई धर्म की एक शाखा) की धार्मिक मान्यताओं एवं मांगों को ग हयुद्ध का प्रमुख कारण बताया है। उन्होंने सुझाव दिया कि धर्मनिरपेक्ष राजनीति की अवधारणा ही ग हयुद्ध का सच्चा और स्थायी समाधान है। इसलिए उन्होंने धर्म को राजनीति से जोड़ते हुए, धर्म को राजनीति के अधीन रखने का सुझाव दिया है।
2. विज्ञान का विकास (Development of Science) : हॉब्स का युग विज्ञान का युग था। इस युग में वैज्ञानिक क्रांति का सूत्रपात व विकास हो रहा था। हॉब्स विज्ञान की अनदेखी नहीं कर सकता था। वह वही युग था, जब कैप्लर, गैलिलियो, पूक्लिड तथा डेका की खोजों ने यन्त्र विज्ञान की स्थापना करके मानव विकास को प्रभावित किया था। हार्वे तथा गिलबर्ट ने शरीर विज्ञान तथा चुम्बकत्व के बारे में खोजें प्रस्तुत कीं। हॉब्स ने इस वैज्ञानिक विचारधारा से प्रभावित होकर राजनीतिशास्त्र में इनके प्रयोग की स्वीकृति प्रदान कर दी। उसे ऑक्सफोर्ड के मध्ययुगीन दर्शन से घणा हो गई और स्वाभाविक रूप से उसका चिन्तन विज्ञान की ओर मुड़ा। हॉब्स ने वैज्ञानिक विचारधारा से प्रभावित होकर अपने चिन्तन का आधार गैलिलियो के गति के नियमों को बनाया। उसने महसूस किया कि विज्ञान व गणित के नियमों को अन्य शास्त्रों के अध्ययन के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। इसलिए वैज्ञानिक क्रान्ति ने हॉब्स का चिन्तन ही बदल डाला और हॉब्स के चिन्तन को नई दिशा प्रदान की।
3.सामन्तवाद का पतन (Decline of Feudalism) : विज्ञान के आविष्कारों के कारण समाज के परम्परागत ढाँचे का पतन होने लग गया और एक शक्तिशाली नए सामाजिक वर्ग (व्यापारी वर्ग) का उदय हुआ। इस नए सामाजिक वर्ग ने सामंतवादी व्यवस्था को चुनौती दी। हॉब्स ने इस वर्ग के प्रति अपनी सहानुभूति प्रकट की। हॉब्स ने अपने चिन्तन के अन्तर्गत राज्य को एक कृत्रिम संस्था और मात्र एक साधन का रूप माना। उसने व्यक्तियों की पूर्ण समानता के अधिकार को स्वीकारा। उसने एक ऐसे निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन किया जिसमें नवीन बुर्जुआ वर्ग के विकास की पूर्ण सम्भावनाएँ हों ।
महत्त्वपूर्ण रचनाएँ (Important Works)
वास्तव में हॉब्स ही पहला अंग्रेज विचारक है जिसने राजनीतिक दर्शन पर विस्तार से लिखा और अपना अमूल्य एवं महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उसने राजनीतिशास्त्र के अतिरिक्त साहित्य तथा अन्य क्षेत्रों में भी लेखन कार्य किया है। बचपन से ही वह विलक्षण प्रतिभाओं का स्वामी था। वह जीवनपर्यन्त कुछ न कुछ लिखता ही रहा। उसकी प्रमुख रचनायें निम्नलिखित हैं :-
1. दॉ ऐलिमेंटस ऑफ लॉ (The Elements of Law 1640) हॉब्स ने इस ग्रंथ की रचना 1640 में की यह हॉब्स की प्रथम दार्शनिक कृति है इस समय इंगलैण्ड में ग हयुद्ध चल रहा था, इसलिए 1650 तक यह पुस्तक प्रकाशित नहीं हो सकी। हॉब्स ने इस कृति में विधि तथा उसके प्रकार की विस्तारपूर्वक विवेचना की है।
2. डीसिवे (De Cive 1642) : हॉब्स ने इस ग्रन्थ में सम्प्रभुता के सिद्धान्त का वर्णन किया है। इस पुस्तक ने हॉब्स ने सार्वभौमिक शासक की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने इस पुस्तक में सम्प्रभुता को परिभाषित कर उसकी सम्पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत की है।
3. लेवियाथन (Leviathan 1651 ) : यह हॉब्स की सबसे महत्त्वपूर्ण रचना है। यह ग्रन्थ चार भागों में विभाजित है। इस ग्रन्थ में निरंकुशतावादी राजतन्त्र का समर्थन किया गया है। प्रथम भाग में प्राकृतिक अवस्था का दूसरे भाग में राज्य की उत्पत्ति तथा सम्प्रभुता सम्बन्धी विचारों का त तीय व चतुर्थ भाग में राज्य एवं धर्म के बीच सम्बन्ध का उल्लेख किया गया है। इस पुस्तक में हॉब्स की वैचारिक प्रौढ़ता एवं परिपक्वता का निर्वाह अन्य ग्रन्थों की तुलना में अधिक हुआ है।
4. डी कारपोरे (De Carpore 1655) : इस ग्रन्थ में हॉब्स ने प्रकृति की विवेचना करते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि जनता को सम्प्रभु शासक का विरोध क्यों नहीं करना चाहिए। हॉब्स ने इस ग्रन्थ में सार्वभौम धार्मिक सहिष्णुता का वर्णन करते हुए यह स्पष्ट किया है कि प्रजा का अधिकार है कि वह अपनी इच्छानुसार अपने धर्म के मार्ग पर चलती रहे और अपने सम्प्रभु का सम्मान करती रहे।
5. डी होमाइन (De Homine 1658)
6. बिहेमोथ (Behemoth 1668 ) : इस पुस्तक में हॉब्स ने ग हयुद्ध के कारण और प्रसरण की आलोचनात्मक समीक्षा की है।
अध्ययन की पद्धति : वैज्ञानिक भौतिकवाद (Method of Study : Scientific Materialism)
हॉब्स के युग में राजनीतिक विचार विवाद का प्रमुख विषय बने हुए थे। हॉब्स ने अपने विचारों को सुनिश्चित कर ऐसा निर्विवादित रूप प्रदान किया जो सर्वमान्य हो। हॉब्स प्रथम आधुनिक दार्शनिक है जिसने राजनीतिक सिद्धान्त को वैज्ञानिक आधार पर प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है। उसने अपने समय में प्रचलित ऐतिहासिक तथा धर्मवादी पद्धतियों से हटकर वैज्ञानिक भौतिकवाद तथा सहायता के रूप में भौतिक मनोविज्ञान पद्धति को स्वीकार किया। हॉब्स का राजनीतिक दर्शन वैज्ञानिक भौतिकवाद पर आधारित उसके सामान्य दर्शन का ही एक अंग है। हॉब्स ने सम्पूर्ण स ष्टि की भौतिकवादी प्रकृति को स्पष्ट रूप में प्रकट करते हुए मानव प्रकृति की भी व्याख्या की। उसने अपने राजनीतिक दर्शन का निर्माण करते समय प्रकृति के समस्त तथ्यों सहित मानव आचरण के व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों पक्षों पर विचार किया है। हॉब्स ने विशुद्ध प्राकृतिक विज्ञानों के धरातल पर मनोविज्ञान तथा राजनीति को प्रतिष्ठित करने पर बल दिया। यही पद्धति हॉब्स के राजनीतिक दर्शन की आधारशिला है।
हॉब्स का वैज्ञानिक भौतिकवाद वस्तुतः दो पद्धतियों का सम्मिश्रण है। वैज्ञानिक शब्द का अर्थ कार्य-कारण सम्बन्ध (Cause- effect Relationship) तथा व्यवस्था एवं निष्कर्ष निकालने की प्रव त्ति है। हॉब्स ने अपने दर्शन का निर्माण इन्हीं आधारों पर किया है। वह मानव स्वभाव तथा उसके चरित्र का पूर्ण अध्ययन करके इस परिणाम पर पहुँचता है कि मानव व्यवहार तथा कार्यों को नियन्त्रित करने में राज्य को कैसा होना चाहिए। हॉब्स ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य का स्वभाव एक मूल नियम से अनुशासित होता है और राजनीति में भी यही नियम कार्य करता है। हॉब्स का मानना है कि सामाजिक समझौते द्वारा राज्य की उत्पत्ति हुई परन्तु इसके पूर्व वह एक प्राकृतिक अवस्था का चित्रण भी करता है जिसके पश्चात् नागरिक समाज का निर्माण आवश्यक हुआ। इस प्रकार हॉब्स ने व्यवस्थित आधार पर सर्वप्रथम मानव स्वभाव का विश्लेषण कर प्राकृतिक कानून, उसके बाद प्राकृतिक अवस्था तथा अन्त में समझौते द्वारा राज्य निर्माण की बात कही है।
भौतिकवाद का अर्थ वास्तविकता वस्तु जगत् है। वह वातावरण में विश्वास करने के साथ व्यक्ति को वातावरण पर महत्त्व देता है। उसके इसी मनोविज्ञान पर आधारित विचारधारा के कारण सामाजिक समझौते एवं निरंकुश सम्प्रभुता की स्थापना होती है। हॉब्स प्रकृति अथवा पदार्थ को ही संसार मानता है। ऐसा कोई पदार्थ या प्रकृति जो अपना सार खो देता है, संसार का अंग नहीं बन सकता। इसलिए सभी भौतिकवादियों ने हॉब्स को पूर्णतः भौतिकवादी माना है। हॉब्स सम्पूर्ण संसार को एक यांत्रिक व्यवस्था कहता है। हॉब्स का मानना है कि इसमें घटित समस्त क्रियाएँ एक-दूसरे से सम्बन्ध रखने वाले पदार्थों की गतिशीलता के कारण घटित होती हैं। हॉब्स का विश्वास है कि मनुष्य विशाल विश्व का एक सूक्ष्म प्रतिबिम्ब है। इसलिए भौतिक जगत् की तरह मनुष्य भी एक यन्त्र है। हॉब्स के अनुसार सामाजिक जीवन का स्वरूप भी गतिशीलता के सिद्धान्त के आधार पर ही समझा जा सकता है। इसी आधार पर उसने सम्पूर्ण संसार को गतिशील पदार्थ या प्रकृति का परिणाम माना है। इसलिए वह पूर्ण रूप से भी भौतिकवादी है। सेबाइन के अनुसार "हाब्स पूर्णतः भौतिकवादी था और उसके लिए आध्यात्मिक सत्ता केवल काल्पनिक वस्तुमात्र है।"
अतः हाब्स की सम्पूर्ण प्रणाली संसार के तीनों भाग प्रकृति, पदार्थ और मनुष्य एवं राज्य की व्याख्या भौतिक सिद्धान्तों के आधार पर करता है। भौतिक वातावरण उसके मानव विज्ञान का आधार और आरम्भ बिन्दु है।
हॉब्स के इस वैज्ञानिक भौतिकवाद की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :-
1. हाव्स ने भौतिक मनोविज्ञान की सहायता से वैज्ञानिक भौतिकवाद के अन्तर्गत मानव स्वभाव का व्यापक विश्लेषण किया है। हॉब्स का मानना है कि मनुष्य आत्मरक्षा को सर्वाधिक महत्त्व देता है। हॉब्स के विचार में मस्तिष्क निरंतर परिष्कृत होने वाला पदार्थ है। यह कारण और परिणाम के नियमों में अनुशासित होता है। मनुष्य आत्मरक्षा का विचार सदैव अपने साथ रखता है। इसलिए वह आत्मरक्षा हेतु कुछ भी करने को तैयार रहता है हाब्स ने मानव स्वभाव का विस्तारपूर्वक विश्लेषण करके निष्कर्ष निकाला कि मनुष्य मूलतः स्वार्थी एवं अहंकारी है तथा उसमें भय, साहस, संघर्ष, शक्ति अर्जन की इच्छा सदैव बलवती रहती हैं। मनुष्य की मूल प्रकृति वैज्ञानिक सत्य तथा मानवीय नैतिकता का एकमात्र आधार है जिस पर सभी एकमत हो सकते हैं। इसी के अन्तर्गत व्यक्ति, सामाजिक, राजनीतिक मूल्यों, साध्यों एवं साधनों का निश्चय किया जाना चाहिए तथा इसी के संदर्भ में समस्त राजनीतिक संगठनों एवं उनकी कार्यप्रणालियों व सीमाओं का निर्धारण किया जाना चाहिए। भौतिकवादी फ्रांसिस बेकन के अनुसर यांत्रिकी के नियम ही जगत् के नियम हैं। यही नियम सामाजिक परिवेश में भी लागू होते हैं। हॉब्स ने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि भौतिक जगत् के यान्त्रिकी के नियम किस प्रकार सामाजिक जीवन में प्रकट होते हैं। यही हॉब्स की सबसे महत्त्वपूर्ण देन है।
2. हॉब्स ने वैज्ञानिक गैलिलियो के सिद्धान्तों को आधार बनाकर स्पष्ट किया है कि इस संसार में हर एक पदार्थ एक-दूसरे से सम्बन्धित है। किसी भी पदार्थ का संसार में स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। प्रत्येक पदार्थ की पहचान पारस्परिक सम्बन्धों के आधार पर ही होती है। इस स ष्टि का मूल तत्त्व का है जो स्वयं में गतिशील होता है। कणों की गति में अन्तर के अनुसार ही पदार्थों में भी अन्तर होता है। एक पदार्थ की गति दूसरे पदार्थों की गति से भी प्रभावित होती है। पदार्थों की सरल गति जटिल गति का रूप ले लेती है और पदार्थों के रूप परिवर्तित होते रहते हैं। सम्पूर्ण स ष्टि एक पिण्ड है। हॉब्स ने गैलिलियो के इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हुए, इस संसार को एक भौतिक यन्त्र जैसा माना है जो यान्त्रिक नियमों के अनुसार कार्य करता है। इस सष्टि में सारी घटनाएँ भौतिक जगत् में निहित पारस्परिक गतियों की क्रिया-प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होती रहती हैं।
3. हॉब्स के अनुसार व्यक्ति एक भौतिकयन्त्र है जो स्वयं पदार्थ का एक पिण्ड है। उसका संचालन भी यान्त्रिक नियमों के अनुसार ही होता है। व्यक्ति का शरीर एक संवेदनशील भौतिक मशीन है। हॉब्स व्यक्ति के शरीर की कार्यप्रणाली समझाने के लिए जीव विज्ञानी विलियम हार्वे के रक्त संचार के नियम और गैलिलियो के गति के नियमों का मिश्रण करता है। वह हृदय की विशिष्ट गति को व्यक्ति की तीव्र अभिलाषा मानता है। हॉब्स के शब्दों में- "मनुष्य अथवा हृदय सदैव अपनी विशिष्ट गति बनाये रखना चाहता है। वह सदैव जीवित रहना चाहता है।
4. प्रत्येक व्यक्ति में निरन्तर शक्तिशाली बनने की इच्छा होती है। क्योंकि व्यक्ति सदैव आत्मरक्षा के ऊपर आए संकटों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भयभीत रहता है। आत्मरक्षा की भावना उसके स्वभाव का मूल रूप बन जाती है। जब उसके अस्तित्व का संकट पैदा होता है तो व्यक्तियों के बीच संघर्ष की भावना पैदा होती है। इस संकट से बचने के लिए व्यक्ति एकाकी जीवन व्यतीत करना उचित समझता है। आत्मरक्षा या अपने अस्तित्व को बनाये रखने की मूल प्रवत्ति से व्यक्तियों में सर्वसम्मति से अपने सभी प्राकृतिक अधिकार किसी एक व्यक्ति को देने की भावना जाग त होती है जिससे यह व्यक्ति समस्त व्यक्तियों के बाह्य या भौतिक सम्बन्धों का इस प्रकार नियम व नियन्त्रण करे कि प्रत्येक व्यक्ति की आत्मरक्षा पूर्णतः सुनिश्चित हो जाए अर्थात् मनुष्य को आत्मरक्षा के अधिकार की गारण्टी मिल जाए।
हॉब्स मूल प्रकृति को ही मानवीय भौतिकता का आधार मानता है। वह वैज्ञानिक भौतिकवाद को आधार बनाकर मानव की मूल प्रकृति या स्वभाव की व्यापक व्याख्या प्रस्तुत करता है। हॉब्स राज्य को एक कृत्रिम संस्था मानता है। वह सभी मनुष्यों में समानता के तथ्य को स्वीकार करता है। हॉब्स के राजदर्शन में वैज्ञानिक भौतिकवाद का केन्द्रीय स्थान है। यह वैज्ञानिक भौतिकवाद ही उसकी विचारधारा को तर्कपूर्ण एवं व्यवस्थित बनाता है। हॉब्स ने वैज्ञानिक भौतिकवाद के आधार पर ही मानव स्वभाव की व्याख्या की और प्राकृतिक अवस्था का अनुमान लगाकर राज्य की स्थापना हेतु सामाजिक समझौते का सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
वैज्ञानिक भौतिकवाद की दष्टि से हॉब्स का राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण एवं विवादास्पद स्थान है। हॉब्स की पुस्तक 'लेवियाथन' नास्तिकवाद एवं वैज्ञानिक भौतिकवाद के कारण घोर निन्दा का निशाना बनी। हेनरी, मोर तथा कडवर्थ जैसे दार्शनिकों, कम्बरलैण्ड जैसे धर्मशास्त्रियों तथा फिल्मर जैसे राजनीतिक विचारकों ने इन सिद्धान्तों की घोर आलोचना की है
हॉब्स से पहले राजनीतिक पद्धति की आवश्यकता के प्रति कोई चेतना नहीं थी। हॉब्स ने महसूस किया कि एक विकसित पद्धति के अभाव में राजनीति विज्ञान विज्ञान नहीं बन सकता। इसलिए उसने राजनीति शास्त्र को अन्य विज्ञनों की तरह ही विशुद्ध वैज्ञानिक आधार पर परखने का बेड़ा उठाया। उसने आधार रूप में यह स्वीकार किया कि राजनीति पद्धति भी भौतिक विज्ञान की पद्धतियों से कुछ ग्रहण कर सकती है। इसलिए हॉब्स ने वैज्ञानिक भौतिकवाद का सिद्धान्त पेश किया जो आगे चलकर राजनीतिशास्त्र के अध्ययन व पद्धति विकास में मील का पत्थर साबित हुआ आलोचनाओं के बावजूद यह कहा जा सकता है कि हॉब्स ने सामाजिक विज्ञानों में वैज्ञानिक पद्धति का विकास करने में अपना अमूल्य समय व श्रम लगा दिया जिसके आज हम ऋणी हैं। हॉब्स के इस सिद्धान्त से अनेक राजनीतिक विचारक व चिन्तक प्रभावित हुए। माण्टेस्क्यू और कार्ल मार्क्स की विचारधारा पर हॉब्स के विचारों की अमिट छाप देखी जा सकती है। उपयोगितावाद का आरम्भ यहीं से होता है। हॉब्स ने अपने वैज्ञानिक भौतिकवाद के दर्शन से राजनीतिक इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।