आदर्श राज्य की धारणा (Conception of Ideal State)
अपने सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ 'रिपब्लिक' में प्लेटो ने एक आदर्श राज्य का चित्रण किया है जिसका प्रमुख उद्देश्य न्याय की प्राप्ति है। उसके आदर्श राज्य की कल्पना अत्यन्त मौलिक है। इस राज्य के चित्रण के कई कारण हैं। पहला प्लेटो आदर्शवादी होने के नाते पदार्थ की बजाय विचार को ही वास्तविक मानता है। उसके अनुसार वास्तविकता किसी वस्तु में नहीं बल्कि वस्तु के बारे में जो भाव है, उसमें है। इस तर्क के आधार पर प्लेटो मौजूदा राज्यों को परिवर्तनशील, क्षणभंगुर और अवास्तविक मानता था। दूसरा - अपने समय की एथेन्स की राजनीतिक तथा सामाजिक बुराइयों से प्लेटो चिन्तित था, उन्हें सुधारने के लिए उसने आदर्श राज्य की कल्पना की। तीसरा प्लेटो उस समय के यूनानी नगर राज्यों के शासकों के लिए राज्य का एक आदर्श प्रस्तुत करना चाहता था ताकि वे अपने नगर राज्यों में राजनीतिक और सामाजिक सुधार ला सके ।
प्लेटो के आदर्श राज्य को सेबाइन जैसे लेखक कल्पना की उड़ान मानते हैं। उसका आदर्श राज्य अव्यावहारिक है। डनिंग इसे रोमांस कहते हैं। प्लेटो स्वयं स्वीकार करता है कि उसके आदर्श राज्य जो कि दर्शन के शासन और साम्यवाद पर आधारित है, को क्रियान्वित करना बहुत ही कठिन है। प्लेटो ने आदर्श राज्य का चित्रण एक चित्रकार की तरह किया है। जिस प्रकार एक चित्रकार अपने चित्र को सुन्दर बनाने के लिए इस बात पर ध्यान नहीं देता कि उसकी कल्पना प्रकृति में कहीं विद्यमान है या नहीं, उसी प्रकार प्लेटो आदर्श राज्य को आदर्श के अनुरूप बनाने के लिए उसकी व्यावहारिकता के प्रति ज्यादा ध्यान नहीं देता। यह राज्य अव्यावहारिक है जिसका नमूना स्वर्ग में तैयार किया गया है। प्लेटो जिस राज्य को चित्रित करते हैं वह सबसे अच्छे राज्य का नमूना है- "राज्य जो अपने आप में एक किस्म है" (A State which is a class in itself)। प्लेटो का आदर्श राज्य एक अच्छाई का एक विचार है जो सभी कालों और देशों के लिए एक आदर्श हो सकता है। अपने आदर्श राज्य के बारे में प्लेटो स्वयं कहते हैं- "राज्य शब्दों से बनाया गया है क्योंकि मेरा विचार है कि संसार में यह कहीं भी मौजूद नहीं है।" किन्तु प्लेटो के इस आदर्श के विवरण में ऐसे मानवीय मूल्य निहित हैं जो उसके राज्य को सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक बनाते हैं। प्लेटो के आदर्श राज्य की व्याख्या करने से पहले राज्य की उत्पत्ति के दार्शनिक आधारों पर चर्चा करनी आवश्यक है।
प्लेटो के आदर्श राज्य के निम्नलिखित दार्शनिक आधार हैं:
1. व्यक्ति का विस्तत रूप ही राज्य है (The State is the Individual Writ Large ) : प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य का निर्माण व्यक्ति और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों पर आधारित किया है। प्लेटो की मान्यता है कि राज्य व्यक्ति के समान है। व्यक्ति का विस्तत रूप ही राज्य कहलाता है। प्लेटो का कहना है- "राज्य की उत्पत्ति व क्षों या चट्टानों से नहीं व्यक्तियों के चरित्र से होती है।" प्लेटो की मान्यता है कि व्यक्ति की चेतना और राज्य की चेतना एक है। सभी सामाजिक वस्तुएँ आत्मा के तीन गुणों को व्यक्त करती हैं। समाज की समस्त वस्तुएँ व्यक्तियों के विचारों के प्रतिरूप होती हैं। एतएव श्रेष्ठ व्यक्तियों के आधार पर ही श्रेष्ठ राज्य का निर्माण किया जा सकता है। प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य का चित्रण इसलिए किया है ताकि व्यक्ति अपने चरमोत्कर्ष को प्राप्त हो सके।
2. मानव आत्मा के तीन तत्त्व (Three Elements of Human Soul) : प्लेटो ने अपने मानव आत्मा के विश्लेषण के आधार पर ही आदर्श राज्य का निर्माण किया है, इसलिए आत्मा के तीन गुणों विवेक, साहस और क्षुधा के आधार पर आदर्श राज्य में तीन वर्गों दार्शनिक, सैनिक और उत्पादक वर्ग की व्यवस्था की है। विवेक राज्य के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यद्यपि साहस के साथ विवेक पहले से ही उपस्थित रहता है लेकिन इसकी पूरी परिणति दार्शनिक शासकों में होती है। दार्शनिक शासक विवेक द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हैं और प्रेम करना सीखते हैं। अतः ज्ञान से ही प्रेम का जन्म होता है। विवेक सैनिकों में ही होता है लेकिन यह प्रेम में परिणत नहीं हो पाता है। प्लेटो दार्शनिक वर्ग को ही विवेक तत्त्व का निवास-स्थान मानकर उन्हें ही शासन करने का अधिकार प्रदान करता है। दार्शनिक शासक विवेकी ओर ज्ञानी होने के कारण कंचन और कामिनी के जाल में नहीं फँसते। उन्हें शिव के स्वरूप का ज्ञान होता है। इसी प्रकार सैनिक वर्ग उत्साह या साहस तत्त्व द्वारा राज्य को सामरिक द ष्टि से सुरक्षित करते हैं। यह वर्ग बाहरी आक्रमण से राज्य की रक्षा करता है एवं आंतरिक शान्ति सुरक्षा कायम करता है। इस वर्ग का कार्य शासक वर्ग की आज्ञाओं का पालन करना है । आत्मा का तीसरा तत्त्व क्षुधा उत्पादक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। प्लेटो का मानना है कि मानव की आर्थिक आवश्यकताओं से ही प्रारम्भिक रूप में राज्य का उदय होता है। व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए परस्पर निर्भर है। जब सहयोगी और सहायक व्यक्ति आपस में एकत्रित होकर एक स्थान पर रहने लगते हैं तो राज्य का निर्माण होता है। एक आदर्श राज्य कार्य विशिष्टीकरण के सिद्धान्त के आधार पर स्वावलम्बी बन सकता है। इस प्रकार मानव आत्मा व राज्य में सावयवी एकता का निर्माण होता है। अतः राज्य मानव आत्मा का ही व हत् रूप है।
3. राज्य हित में व्यक्ति का हित निहित है (Man's Interest lies in State's Interest) मानव राज्य की चेतना का ही एक अंश है। अतः राज्य के हित में ही व्यक्ति का हित निहित है। व्यक्ति राज्य में रहकर ही अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है। इसलिए प्लेटो राज्य की सावयवी एकता पर बल देता है।
4. सत्य सम्बन्धी सिद्धान्त (Theory Regarding Truth) : प्लेटो के मतानुसार भौतिक पदार्थों (द श्यमान जगत) तथा भलाई (Good) का निवास विचार जगत् में है। उसने इस विचार जगत् के एक अंग के रूप में ही आदर्श राज्य की धारणा को प्रस्तुत किया है।
आदर्श राज्य की विशेषताएँ (Features of Ideal State)
प्लेटो के आदर्श राज्य की सामान्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
1. वर्ग विभाजन (Class Division) :
प्लेटो के आदर्श राज्य में कार्य विशिष्टीकरण के आधार पर तीन वर्गों का वर्णन किया है। प्लेटो के अपने न्याय सिद्धान्त में भी कार्य विशिष्टीकरण को आवश्यक माना है। प्लेटो का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को वही कार्य करना चाहिए जिसमें उसे दक्षता प्राप्त है। यदि कोई व्यक्ति अपने कार्य की उपेक्षा करके, दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप करता है, तो उससे समाज में अकुशलता, दूसरों के कार्यों में हस्तक्षेप तथा अज्ञान जैसे दोषों का जन्म होता है। प्लेटो का मानना है कि प्रकृति ने मनुष्य को कुछ नैसर्गिक योग्यता प्रदान की है और व्यक्ति को उसका लाभ उठाना चाहिए। इस आधार पर समाज में तीन वर्ग दार्शनिक वर्ग, सैनिक वर्ग तथा उत्पादक वर्ग हैं। दार्शनिक वर्ग विवेक प्रधान होता है। यह समाज का सामान्य कल्याण और वर्ग-सन्तुलन बनाए रखता है। यदि इस वर्ग के सभी लोग दार्शनिक होंगे तो यह कार्य पूरा होगा अन्यथा नहीं। सैनिक वर्ग उत्साह तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। यह देश की शान्ति व सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होता है। उत्पादक वर्ग त ष्णा तत्त्व की पूर्ति करने वाला है। यह वर्ग राज्य की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इस प्रकार तीनों वर्ग अलग-अलग कार्य करते हुए भी एक-दूसरे के अनुपूरक हैं। तीनों वर्गों के उचित सामंजस्य व सहयोग के आधार पर ही राज्य को आत्मनिर्भरता, एकता एवं स्थायित्व प्राप्त होता है। प्लेटो के अनुसार समाज की रचना इसी कार्य विभाजन के आधार पर हुई है और श्रम विभाजन का सिद्धान्त भी इससे जुड़ा हुआ है।
2. न्याय की प्राप्ति ( Realization of Justice) :
प्लेटो के आदर्श राज्य की आधारशिला न्याय है। न्याय से प्लेटो का तात्पर्य केवल इतना है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक वर्ग अपने नैसर्गिक गुण धर्म द्वारा निश्चित कार्य को कुशलतापूर्वक करे। प्लेटो राज्य को मानवीय आत्मा का विशाल रूप मानता है। वह आत्मा के तीन तत्त्वों विवेक, उत्साह और त ष्णा के आधार पर समाज में दार्शनिक, सैनिक व उत्पादक तीन वर्ग मानता है। समाज के ये तीनों वर्ग जब अपने-अपने कार्य करते हैं तो समाज में न्याय की स्थापना व प्राप्ति अवश्य होती है। प्लेटो ने न्याय को एक नैतिक भावना एवं सद्गुण के रूप में स्वीकार किया है। इसमें नागरिक कर्त्तव्यपालन पर ज्यादा ध्यान रखते हैं। प्लेटो लिखता है- "नागरिकों में कर्तव्य भावना ही राज्य का न्याय सिद्धान्त है।" आदर्श राज्य में न्याय व्यवस्था व्यक्ति व राज्य के हितों में एकता स्थापित करती है। यदि प्रत्येक व्यक्ति न्याय सिद्धान्त के अनुसार कार्य करेगा तो उसे पूर्ण सन्तुष्टि, सुख एवं प्रसन्नता प्राप्त होगी। समाज के तीनों वर्गों को अपने-अपने कर्त्तव्यों को पूरा करने के लिए शिक्षा की उचित व्यवस्था की गई है। इससे कार्यकुशलता में वद्धि होगी तथा समाज में उचित सामाजिक सामंजस्य स्थापित होगा। अतः न्याय ही आदर्श राज्य की आधारशिला व प्राण है।
3.राज्य द्वारा नियन्त्रित शिक्षा (State Controlled Education) :
प्लेटो आदर्श राज्य में सामाजिक न्याय की प्राप्ति के लिए समाज के तीनों वर्गों के लिए एक अनूठी शिक्षा योजना पेश करता है। इसमें उत्पादक वर्ग के लिए कोई पाठ्यक्रम नहीं है। प्लेटो की शिक्षा योजना एक ऐसा रचनात्मक साधन है जो व्यक्ति की समाज के आदर्शों एवं कार्यों के अनुकूल ढाल सकती है। इस शिक्षा का दार्शनिक वर्ग के लिए सर्वाधिक महत्त्व है। दार्शनिक राजा का शासन ही प्लेटो का अन्तिम लक्ष्य है। उसकी दार्शनिक राजा की धारणा 'सद्गुण ही ज्ञान है' की धारणा का तार्किक परिणाम है। उसने सद्गुण को ज्ञान मानकर उसे सिखाने की व्यवस्था अपनी शिक्षा प्रणाली के माध्यम से की है। प्लेटो शिक्षा को एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया मानता है जिसके द्वारा समाज के घटक सामाजिक चेतना से परिपूर्ण होकर समाज के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन करना सीखते हैं। प्लेटो ने आदर्श राज्य के संचालन के लिए शिक्षा को एक सकारात्मक साधन माना है। उसके अनुसार- "सामाजिक शिक्षा ही सामाजिक न्याय का साधन है।" यह शिक्षा प्रणाली व्यक्तियों में सामाजिकता के भाव पैदा करती है। प्लेटो ने शिक्षा को राज्य के हाथों में केन्द्रित किया है। प्लेटो यूनानी परम्परा के अनुसार शिक्षा को नागरिक चरित्र निर्माण का प्रबल साधन मानता है। प्रो. सेबाइन ने लिखा है- "प्लेटो का राज्य पहला और सबसे ऊँचा शिक्षण संस्थान है। "
4.सम्पत्ति और पत्नियों का साम्यवाद ( Communism of Property and Wives) :
प्लेटो अपने आदर्श राज्य में न्याय की प्राप्ति के दो तरीके बताता है प्रथम शिक्षा का सकारात्मक तरीका है तथा दूसरा साम्यवादी व्यवस्था है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत शासकों का न तो निजी परिवार होगा और न ही निजी सम्पत्ति । प्लेटो की मान्यता है कि परिवार का मोह शासक को संकीर्णता के जाल में बाँधता है तथा ईमानदारी के मार्ग से पथभ्रष्ट कर देता है जिसके परिणामस्वरूप न्याय का मार्ग अवरुद्ध होता है। सम्पत्ति का मोह भी ऐसा ही करता है। अतः प्लेटो शासक वर्ग को व सैनिक वर्ग को कंचन - कामिनी के मोह से मुक्त रखने के लिए साम्यवादी व्यवस्था का प्रावधान करता है। पारिवारिक साम्यवाद का उद्देश्य यह है कि शासक पारिवारिक चिन्ताओं से मुक्त रहकर अपना सम्पूर्ण समय समाज हित में लगा सकें। प्लेटो अपनी इस व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू करने के लिए शिक्षा योजना का प्रावधान करता है। वह साम्यवाद की तुलना में शिक्षा की प्राथमिकता देता है। इसके द्वारा शासक व सैनिक वर्ग को न्याय के आदर्शों के अनुकूल ढाला जा सकता है। साम्यवादी व्यवस्था शासकों के मार्ग में आने वाले कुटुम्ब तथा सम्पत्ति से उत्पन्न होने वाले सांसारिक प्रलोभनों को दूर रखने का प्रयास है।
5.श्रम का विभाजन (Division of Labour):
कार्यों का विशिष्टीकरण का सिद्धान्त श्रम विभाजन के सिद्धान्त से भी जुड़ा हुआ है। प्लेटो का मानना है कि समाज का कोई भी सदस्य स्वयं अपने जीवन की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज का कोई सदस्य अन्न उत्पन्न करता है और कोई कपड़े का उत्पादन। प्लेटो इसी कार्य विभाजन को समाज की रचना का आधार मानता है। अतः समाज मानवीय पारस्परिक सेवाओं का तथा उत्पादित वस्तुओं के आदान-प्रदान का एक ताना-बाना है समाज की व्यवस्था कार्य विभाजन पर ही टिकी हुई है।
6. स्त्री-पुरुष की समानता (Equality Between Men and Women) : प्लेटो के अनुसार स्त्री-पुरुष समान हैं। उसने शासक-अभिभावक वर्ग बनने का अवसर स्त्रियों को भी प्रदान किया है। इस विचार के पीछे प्लेटो की मान्यता स्त्रियों की दशा सुधारने की है। पुरुषों के समान स्त्रियों को भी राज्य के कार्यों में बराबरी का हाथ बँटाने का अवसर देकर प्लेटो स्त्रियों को घर की रसोई की सन्तानोत्पत्ति की संकीर्ण परिधियों से मुक्त कर उन्हें राज्य के व्यापक दायरे में कार्य करने का अवसर देता है। प्लेटो का मानना है कि स्त्री-पुरुषों में प्राकृतिक प्रक्रियाओं में और क्षमताओं में कोई अन्तर नहीं होता है। उसका विश्वास था कि स्त्री में इतनी योग्यता है कि वह राजनीतिक और सैनिक कार्यों में भाग ले सकती है। प्लेटो को यह सिद्धान्त भावी राज्यों विशेषकर आधुनिक राज्यों के लिए एक मार्गदर्शक है।
7.सावयवी एकता (Organic Unity) : प्लेटो के अनुसार राज्य आत्मा का ही विराट रूप है। अतः मानव शरीर की तरह राज्य का भी अपना शरीर है। प्लेटो के अनुसार आदर्श राज्य में राज्य (शरीर) को अपने अंगों (व्यक्तियों) पर प्रधानता प्राप्त होती है और राज्य (शरीर) अपने अंगों (व्यक्तियों) पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है। प्लेटो ने आदर्श राज्य में लिए सावयवी एकता पर बल दिया है, उसका उद्देश्य राज्य द्वारा व्यक्ति का दमन नहीं है अपितु वह इस सिद्धान्त द्वारा निम्नलिखित लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है।
(क) वह वैयक्तिक नैतिकता तथा सार्वजनिक नैतिकता में किसी प्रकार का अन्तर एवं विरोध स्वीकार नहीं करता है। आदर्श राज्य में व्यक्ति एक साथ ही सद् व्यक्ति एवं सद् नागरिक दोनों होता है। (ख) प्लेटो इस सिद्धान्त द्वारा राज्य को सुद ढ़ एवं तर्कपूर्ण एकता प्रदान करना चाहता है। क्योंकि उसका मत है कि सर्वोत्तम अच्छाई पूर्ण की एकता है।
(ग) वह सिद्ध करना चाहता है कि आदर्श राज्य में व्यक्ति व राज्य के हितों में परस्पर कोई विरोध नहीं पाया जाता है।
8. विधि की उपेक्षा (Omission of Law) : प्लेटो की मान्यता है कि दार्शनिक शासक को शासन चलाने के लिए लिखित विधि की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि दार्शनिक शासक स्वयं ज्ञान की प्रतिमूर्ति है और उसे सद् का ज्ञान है। प्लेटो का दार्शनिक शासक कानून के शासन के अंकुश से मुक्त होते हुए भी अत्याचारी शासक नहीं है।
9 कला और साहित्य पर कठोर नियन्त्रण (Strict Censorship on Art and Literature) : प्लेटो का विचार है कि तत्कालीन यूनान में कला व साहित्य की स्वतन्त्रता के नाम पर जो वातावरण नागरिकों को दिया जाता है, अनैतिकता का पोषण करने वाला होता है। प्लेटो ने तत्कालीन एथेन्स में कला और साहित्य के विकृत रूप को अच्छी तरह से पहचान लिया था। तत्कालीन कला और साहित्य ही समाज का विघटन करने वाला तत्त्व था। अतः प्लेटो अपने आदर्श राज्य में नागरिकों के नैतिक उत्थान की द ष्टि से संगीत, कला, साहित्य आदि के ऐसे अंशों को प्रतिबन्धित एवं नियन्त्रित करता है जो नैतिकता व सदाचार के प्रतिकूल हों। इस प्रकार प्लेटो विकृत कला व साहित्य पर प्रतिबन्ध लगाकर नैतिक व्यवस्था स्थापित करके जनता में सद्गुणों का विकास करना चाहता है।
10. राज्य का कोई ऐतिहासिक विकास नहीं (State is not a Historical Growth) : प्लेटो राज्य के किसी ऐतिहासिक विकास का परिणाम नहीं है। प्लेटो राज्य के आध्यात्मिक आचार को स्वीकार करता है। राज्य के तीन वर्ग आत्मा के तीन भागों के समान है और राज्य आत्मा के विवेक, शौर्य और त ष्णा का प्रतीक है। राज्य मानव व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। प्रत्येक का विकास पूरे समाज के विकास पर निर्भर करता है।
उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि प्लेटो का आदर्श राज्य है, सबसे अच्छे राज्य का एक आभास स्वर्ग के नगर का चित्र जिसका कभी साक्षात्कार नहीं किया गया। स्वयं प्लेटो भी स्वीकार करता है कि यह आदर्श कभी प्राप्त नहीं हो सकता। यह आदर्श स्वर्ग का है, धरती का नहीं ।
आलोचनाएँ
(Criticism)
प्लेटो के आदर्श राज्य के चित्रण की निम्न आधारों पर आलोचना हुई है :
1. न्याय सिद्धान्त दोषपूर्ण है (Idea of Justice is Defective) :
प्लेटो का न्याय सिद्धान्त दोषपूर्ण और संकीर्ण है। उसमें कर्त्तव्यों की प्रधानता है और अधिकारों की उपेक्षा की है। इस सिद्धान्त में अन्तर्विरोध है। व्यक्ति की आत्मा के तीन तत्त्वों के आधार पर समाज को तीन वर्गों में बाँटकर उन्हें अपने-अपने कार्यों को करने की बात कही है। इसमें कोई वर्ग दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करेगा। दूसरी तरफ प्लेटो शासक वर्ग को शान्ति और व्यवस्था के लिए उत्पादक वर्ग के कार्यों में हस्तक्षेप कर सकता है। उसका यह सिद्धान्त नैतिक सिद्धान्त मात्र है जिसे प्लेटो ने राजनीति में लागू करके राजनीति का प्रत्ययीकरण (दर्शनीकरण) किया है। प्लेटो के न्याय सिद्धान्त से अपराधियों को दण्ड देने वाली विधियों और न्यायालयों की स्थापना का भी पता नहीं चलता है। उसका न्याय का सिद्धान्त प्रचलित सभी न्याय की धारणाओं के प्रतिकूल है।
2. दोषपूर्ण साम्वादी व्यवस्था (Idea of Communism is Defective) :
प्लेटो द्वारा वर्णित साम्यवादी व्यवस्था मानव स्वभाव व आवश्यकताओं के सर्वथा विपरीत है। व्यक्ति परिवार व सम्पत्ति के कारण ही अपने क्रिया-कलापों में व्यस्त रहते हैं। यदि परिवार तथा सम्पत्ति का आकर्षण व्यक्ति के जीवन में न हो तो समाज का विकास अवरुद्ध हो जाएगा। व्यक्ति को सम्पत्ति व परिवार विहीन करना मानवीय भावनाओं व परिवार के पवित्र सम्बन्धों का अपमान करना है। प्लेटो नारी मनोविज्ञान की गलत व्याख्या की है। आधुनिक युग में जो साम्यवादी व्यवस्थाएँ है, प्लेटो की धारणा उनसे बिल्कुल अलग है।
3. आदर्श राज्य अव्यावहारिक है (Ideal State is Impractical)
प्लेटो का आदर्श राज्य एक काल्पनिक राज्य है। यह कल्पना स्वर्ग की है, धरती की नहीं। प्लेटो स्वयं स्वीकार करता है कि- "यह राज्य केवल शब्दों में स्थापित किया गया है। क्योंकि मैं जानता हूँ कि इसका अस्तित्व कहीं भी नहीं है। रिपब्लिक में वर्णित यह धारणा मूलतः अव्यावहारिक और काल्पनिक है। इनिंग ने इस कल्पना को रोमांस कहा है तथा मैक्सी ने प्लेटो को प्रथम कल्पनावादी कहा है। अतः प्लेटो का आदर्श राज्य निरी कल्पना तथा म गत ष्णा है।
4. अत्यधिक पथक्कता एवं अत्यधिक एकता पर बल (Stress on Exessive Separation and Excessive Unity) : प्लेटो ने एक साथ दो विपरीत संगठनात्मक सिद्धान्तों को बाँधने का गलत प्रयास किया है। वह समाज को तीन वर्गों में बाँटकर उन वर्गों को एक-दूसरे के कार्यों में अहस्तक्षेप की बात करता है। दूसरी तरफ शासक वर्ग को उत्पादन व सैनिक वर्ग को नियन्त्रित करने का अधिकार प्रदान करता है। वह एक तरफ तो अत्यधिक अनेकता और दूसरी तरफ पूर्ण एकता पैदा करता है। अतः इन दोनों सिद्धान्तों को मिलाना अव्यावहारिक व असंगत है।
5. आधुनिक राज्यों में लागू नहीं हो सकता (Cannot be Realized in Modern States):
आधुनिक राज्यों की जनसंख्या अधिक होने के कारण समस्त जनसंख्या को तीन वर्गों में बाँटना मुश्किल व असम्भव काम है। लोगों को बुद्धि, साहस तथा क्षुधा तत्त्वों के आधार पर बाँटना असम्भव व कल्पना की उड़ान मात्र है। अतः इसे आधुनिक विशाल जनसंख्या वाले राज्यों में लागू नहीं किया जा सकता।
6. कानून की उपेक्षा (Ommission of Law) :
प्लेटो ने आदर्श राज्य में कानून को कोई स्थान न देकर बड़ी भूल की है। उसने स्वयं लॉज में इस गलती को स्वीकार किया है। कानून के शासन के अभाव में राज्य में अशान्ति व अराजकता का माहौल पैदा हो सकता है। आधुनिक प्रजातन्त्रीय युगीन राज्यों में तो कानून की उपेक्षा कोई शासक नहीं कर सकता। अरस्तू ने कहा है- “कानून इच्छाओं से अप्रभावित विवेक है।" प्लेटो का दार्शनिक शासक विवेकी होने के कारण यदि कानून की उपेक्षा करता है तो वह राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।
7. सर्वाधिकारी राज्य (Totalitarian State) :
प्लेटो द्वारा वर्णित आदर्श राज्य मानव स्वभाव के विपरीत अधिनायकवादी राज्य का ही प्रतिबिम्ब है। यह व्यवस्था राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साध्य मानकर चलती है जबकि आधुनिक युग में राज्य को जनकल्याण का उपकरण मात्र माना जाता है। प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में कर्त्तव्यों की तो व्यवस्था की है लेकिन अधिकारों व स्वतन्त्रताओं को छीन लिया है। प्लेटो का राज्य लोगों के पारिवारिक एवं सांस्कृतिक जीवन पर इतने प्रतिबन्ध लगा देता है, जिससे इसे अधिनायकवादी कहना सर्वथा ठीक है। प्लेटो ने शासक वर्ग को असीमित शक्तियाँ देकर उसे निरंकुश बना दिया है। शासक पर विधि, परम्परा तथा जनमत का कोई नियन्त्रण नहीं है। आधुनिक युग की विचारधाराएँ फासीवाद, नाजीवाद, उग्र प्रत्यवाद आदि प्लेटो के चिन्तन से ही प्रभावित हैं।
8. व्यक्ति व राज्य में पूर्ण समानता अनुचित (Complete Analogy Between Man and State is not Justified) :
प्लेटो राज्य को व्यक्ति का वहत् रूप माना है। उसने व्यक्ति की आत्मा के तीन तत्त्वों बुद्धि, उत्साह व क्षुधा की समानता राज्य के तीन वर्गों उत्पादक, सैनिक तथा शासक वर्ग से की है। वास्तव में राज्य एक मानसिक संरचना है जबकि व्यक्ति का शरीर एक जैविक व भौतिक संरचना है। उसने राज्य को एक व हत् व्यक्ति (सावयवी ) बताकर एक ऐसे राज्य की स्थापना की है जो स्वयं में एक साध्य है और व्यक्ति की स्वतन्त्रता का शत्रु है। व्यक्ति तथा राज्य की समानता सामान्य व्यक्ति की समझ से परे की बात है।
9. उत्पादक वर्ग की उपेक्षा (Producer Class is Ignored):
प्लेटो ने उत्पादक वर्ग के लिए कोई शिक्षा का पाठ्यक्रम तय नहीं किया है। यद्यपि यह वर्ग राज्य की आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करता है लेकिन उनके कार्यों में विशिष्टता व दक्षता लाने हेतु उन्हें किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण या औपचारिक शिक्षा से वंचित रखकर भारी भूल की है। उत्पादक-वर्ग भी राजनीतिक जीवन में भाग ले सकता है। उसकी यह व्यवस्था अलोकतान्त्रिक है और अभिजात वर्ग की ही पोषक है। प्लेटो की यह व्यवस्था राज्य के अस्तित्व को नष्ट करने वाली है।
10. दास प्रथा पर मौन (Silent on Slavery)
उस समय यूनान में दास प्रथा थी। स्वयं प्लेटो को भी दास बनाकर बेचा गया था। दासों की स्थिति दयनीय थी। परन्तु प्लेटो ने अपने आदर्श राज्य में दासों की स्थिति सुधारने बारे कोई उपाय नहीं सुझाया है। उसका दास प्रथ पर यह मौन समर्थन समाज के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
11. विशिष्टीकरण के सिद्धान्त की आलोचना (Criticism of the Principles of Specialisation) :
प्लेटो के कार्य विशिष्टीकरण के आधार पर समाज को तीन वर्गों में बाँटा है। प्रत्येक वर्ग को अपने निर्दिष्ट कर्त्तव्य ही पूरे करने हैं। ऐसी अवस्था में- (i) व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास नहीं हो सकता। (ii) इससे हित की पुष्टि में तीन राज्य स्थापित होते हैं जो राज्य की एकता के लिए खतरनाक है। (iii) व्यक्ति अपने सारे जीवन में एक ही गुण में अधीन रहता है। सत्य तो यह है कि व्यक्ति एक नहीं, तीनों गुणों का भी स्वामी हो सकता है। यह शासक व सैनिक की भूमिका एक साथ भी निभा सकता है। उत्पादक वर्ग भी सैनिक के कर्त्तव्यों को विशेष प्रशिक्षण द्वारा पूरा कर सकता है। अतः प्लेटो का विशिष्टीकरण का सिद्धान्त अमनोवैज्ञानिक एवं अस्वाभाविक सिद्धान्त है।
12. कला व साहित्य पर नियन्त्रण गलत है (Censorship of Art and Literature is Wrong) :
प्लेटो कला व साहित्य पर नियन्त्रण का पक्षधर है। आधुनिक युग में अनेक मनोवैज्ञानिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि कला और साहित्य पर नियन्त्रण उनके विकास में बाधक होता है। कला और साहित्य तो स्वतन्त्र वातावरण में ही फलते-फूलते हैं। यह नियन्त्रण अमनोवैज्ञानिक व अव्यावहारिक है।
13. दार्शनिक शासक सम्बन्धी आलोचना (Criticism Related to Philosopher King) :
प्लेटो का दार्शनिक शासक को विवेक का मूर्त व साकार रूप मानता है, किन्तु व्यवहार में ये दोनों भिन्न तथ्य हैं। एक व्यक्ति को सारे अधिकार व शक्तियाँ प्रदान करना उसे निरंकुश बनाना है। यदि एक व्यक्ति या समूह को इतने सारे अधिकार एक साथ मिल जाएँ तो वह सत्ता के नशे में जनता पर अत्याचार करने लगता है। लार्ड एक्टन कहता है- “शक्ति भ्रष्ट करती है और सम्पूर्ण शक्ति सम्पूर्ण रूप से भ्रष्ट करती है।" सेबाइन ने इसे 'प्रबुद्ध निरंकुशतन्त्र' (Enlightened Tyranny) कहा है। राजा सांसारिक जीव होता है, अतः वह गलती भी कर सकता है। प्लेटो का दार्शनिक शासक व्यवहार में अच्छा शासक नहीं हो सकता।
14. शासन के संगठनात्मक पक्ष की उपेक्षा (Ignore the Organisational Aspect of Government) :
प्लेटो के आदर्श राज्य में शासन के आवश्यक संगठनात्मक तत्त्वों का अभाव है। इसमें कानून, दण्डात्मक शासन-व्यवस्था, न्याय का प्रबन्धक, अधिकारियों की नियुक्ति प्रणाली आदि का कोई उल्लेख नहीं है। अतः इस स्थिति में शासन का संचालन कठिन कार्य है।
15. पलायनवादी द ष्टिकोण (Escapist Approach) :
प्लेटो की आदर्श राज्य की कल्पना अव्यावहारिक है। प्लेटो ने अपने युग की समस्याओं का सामना करने की बजाय पलायनवादी द ष्टिकोण ही अपनाया है। उसके ये विचार कल्पना की दुनिया के हैं। उसने केवल अपनी सौन्दर्य भावना की त प्ति के लिए ही इसकी रचना की है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्लेटो का आदर्श राज्य अनेक आलोचनाओं का शिकार हुआ है। उसे कल्पनालोक की वस्तु मानकर प्लेटो को पलायनवादी भी कहा गया है। परन्तु इन आलोचनाओं के बावजूद भी प्लेटो के आदर्श राज्य का इतिहास पर उतना ही प्रभाव पड़ा है जितना स्पार्टा के वास्तविक राज्य का मध्ययुग के पादरियों ने प्लेटो द्वारा बताए गए मार्ग पर चलते हुए स्वयं को आदर्श के ढाँचे में ढालने का प्रयास किया। प्लेटो का आदर्श राज्य का सिद्धान्त आदर्शवादियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत रहा है। प्लेटो का आदर्श राज्य वह मंजिल है जिस तक पहुँचना प्रत्येक राज्य के लिए वांछनीय है। यह वह आदर्श है जो मौजूदा राज्यों को अपना व्यक्तित्व ऊँचा उठाने की प्रेरणा देता है। अतः प्लेटो का आदर्श राज्य राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में एक अमूल्य देन है।