जॉन स्टुअर्ट मिल का राजनीतिक दर्शन में योगदान | Contribution of John Stuart Mill to Political Philosophy.

जॉन स्टुअर्ट मिल का राजनीतिक दर्शन में योगदान | Contribution of John Stuart Mill to Political Philosophy.

मिल का योगदान (Contribution of Mill)

राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में जॉन स्टुअर्ट मिल को श्रद्धा की द ष्टि से देखा जाता है। उसने आक्सफोर्ड से पढ़कर निकलने वाले प्रत्येक बुद्धिजीवी को कुछ न कुछ अवश्य प्रभावित किया। राजनीतक शास्त्र के जगत् में उसकी प्रशंसा के साथ-साथ कुछ आलोचना भी हुई है। मिल की आलोचना से उसका महत्त्व कम नहीं हुआ। उसकी रचना 'Political Economy' ने प्रो. मार्शल को अत्यधिक प्रभावित किया। उसकी रचना 'On Liberty' को राजनीतिक दर्शन के इतिहास में स्वतन्त्रता का प्रथम प्रकाश स्तम्भ माना जाता है। प्रो. बाल ने कहा है कि- "मिल एक न्यायशास्त्री, अर्थशास्त्री तथा राजनीतिक दार्शनिक के रूप में अपने समय का अवतार है । "

मिल के योगदान को निम्न क्षेत्रों में देखा जा सकता है :-

1. उदारवादी विचारक के रूप में मिल अपने राजनीतिक चिन्तन के कारण सबसे श्रेष्ठ और महान् उदारवादियों में गिने जाते हैं। उसके विचार में राज्य का अस्तित्व व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए है। उसकी 'विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता' सम्पूर्ण राजनीतिक चिन्तन में उसे एक श्रेष्ठ उदारवादी विचारक के रूप में प्रतिष्ठित करती है। उसे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का सबसे प्रबल समर्थक माना जाता है। उसने कहा कि हमें मनुष्य के प्रति गौरव का भावन रखना चाहिए। उसके उदाहरण को चार प्रकार से समझा जा सकता है :-

(i) उसने उपयोगितावादी सिद्धान्त में नैतिक भावना का मिश्रण कर उसे काण्ट के समान ही मानव-व्यक्तित्व को मान्यता दी और और नैतिक उत्तरदायित्व से उसका सम्बन्ध स्पष्ट किया है।

(ii) उसने सामाजिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता को स्वयं में अच्छा बताया।

(iii) स्वतन्त्र समाज में उदारवादी राज्य का कार्य नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक है।

(iv) स्वतन्त्रता केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि एक सामाजिक अच्छाई भी है। विचार के दमन से समाज को भी हानि पहुँचती है। मिल ने कहा है कि श्रेष्ठ समाज वह है जो स्वतन्त्रता की अनुमति देता है और विकास के विभिन्न अवसर प्रदान करता है।
इस प्रकार इन चार बातों से मिल का उदारवादी विचारक होने की धारणा को बल मिलता है। मिल ने कहा है कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता का विनाश करने से राज्य अधिक श्रेष्ठ नहीं बन सकता। राज्य का अस्तित्व तो व्यक्ति के विकास पर ही निर्भर करता है। राज्य व्यक्तियों के कल्याण का साधन मात्र है।

2. समाज सुधारक के रूप में समाज सुधारक की दष्टि से मिल का अपूर्व योगदान है। उसने महिला मुक्ति के समर्थन में जोरदार आवाज उठाई। उसने महिला मताधिकार का समर्थन किया। उसने कहा कि यदि महिलाओं पर से पुरुषों का स्वामित्व समाप्त कर दिया जाए तो उन्हें सामाजिक और राजनीतिक द ष्टि से उपयोगी बनाया जा सकता है। इसलिए उसने महिलाओं की समानता, शिक्षा और राजनीतिक अधिकारों का समर्थन किया।

3. लोकतन्त्र के उपचारक के रूप में मिल लोकतन्त्र के अतिक्रमणों व दुरुपयोगों से भली-भाँति परिचित थे। उसने लोकतन्त्र तथा प्रतिनिधि शासन प्रणाली पर विचार करते हुए लोकतन्त्र को एक सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली स्वीकार किया है। उसने लोकतन्त्र के गुणों के साथ-साथ उसके दोषों पर भी विचार करके उनको दूर करने के सुझाव प्रस्तुत किए हैं। उसने अल्पमत की बहुमत की निरंकुशता से रक्षा का उपाय सुझाया जो आज भी उचित है। उसने नागरिकों की अज्ञानता तथा उदासीनता को लोकतन्त्र की सबसे बड़ी कमजोरी बताया। उसने जनता के हित को प्रभावी बनाने के लिए प्रौढ मताधिकार का पक्ष लिया। उसने लोकतन्त्र के दोषों को दूर करने के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व, द्वितीय सदन, शैक्षिक योग्यता जैसे सुझाव दिए । वेपर का कथन उचित है कि- “मिल प्रजातन्त्र की बुराइयों से प्रजातन्त्र की रक्षा चाहता था।"

4. स्वतन्त्रता का प्रबल समर्थक मिल ने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का समर्थन करके स्वयं को राजनीतिक दार्शनिकों व चिन्तकों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा कर लिया। उसके 'विचार एवं अभिव्यक्ति' की स्वतन्त्रता के बारे में विचारों ने उसको राजनीतिक दर्शन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित कर दिया है। उसकी रचना 'On Liberty' विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के समर्थन में सम्पूर्ण राजनीतिक दर्शन के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। उसे इस द ष्टि से रूसो, पेन, जैफर्सन आदि की श्रेणी में रखा जाता है।

5. पद्धतिशास्त्र की दष्टि से पद्धतिशास्त्र के क्षेत्र में मिल ने गहरा चिन्तन एवं अध्ययन किया। उसने बेन्थम के अनुभववाद और अपने पिता जेम्स मिल के बुद्धिवाद के विपरीत ऐतिहासिक या प्रतिलोम निगमनात्मक पद्धति को प्रश्रय देकर पद्धतिशास्त्र के क्षेत्र में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उसने आगमनात्मक तथा निगमनात्मक दोनों पद्धतियों के समन्वय रूप को सामाजिक विज्ञानों के लिए आवश्यक माना है।

6. उपयोगितावादी के रूप में मिल ने बेन्थम तथा अपने पिता जेम्स मिल के उपयोगितावादी दर्शन को नया रूप प्रदान : किया है। उसने बेन्थम के उपयोगितावाद को 'सूअर दर्शन' (Pig Philosophy) की संज्ञा से मुक्त किया है। उसने इसे मानवीय रूप प्रदान किया है। उसने समाज-सुधार को वैधानिक प्रक्रिया माना है। मिल ही पहला उपयोगितावादी था जिसने यह स्पष्ट अनुभव किया कि समाज के बिना न तो कोई सभ्यता हो सकती है और न ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सम्भव है। उसका उपयोगितावाद नैतिकता और आध्यात्मिकता पर आधारित है। उसका उपयोगितावादी दर्शन पूर्ववर्ती सभी उपयोगितावादियों के दर्शन से महान् है। उसने बेन्थम के उपयोगितावाद को बुद्धिवादी दर्शन के आधार पर परिमार्जित किया है।

7. राज्य का उद्देश्य व कार्य मिल ने राज्य का उद्देश्य जन-कल्याण बताकर सर्वसत्ताधिकारवादी राज्य के युग में हलचल पैदा कर दी है। मिल का जन-कल्याण का सिद्धान्त व्यक्तिवाद के लिए एक रक्षा कवच से कम नहीं आंका जा सकता। उसने लोक-कल्याण पर जोर देकर समाजवाद का मार्ग प्रशस्त किया है। उसने राज्य के सकारात्मक कार्यों पर जोर दिया है। उसने कहा है कि सुअवसर उत्पन्न करने में तथा मानव को मानवोचित जीवन व्यतीत करने के लिए उपर्युक्त परिस्थितियाँ पैदा करने में राज्य को बहुत बड़ी सकारात्मक भूमिका निभानी पड़ती है।

इस प्रकार कहा जा सकता है कि मिल ने निर्जीव व निष्प्रभ उपयोगितावादियों के विचारों को मानवीय पुट प्रदान किया। उसने उपयोगितावादी सिद्धान्तों को नई दिशा प्रदान की। उसने उपयोगितावादको आधुनिक रूप प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने लोकतन्त्र को सुद ढ़ आधार प्रदान करने के लिए उपर्युक्त सुझाव भी प्रस्तुत किए। उसके द्वारा स्त्री जाति की मुक्ति व मताधिकार, आनुपातिक प्रतिनिधित्व, उदारवाद, व्यक्तिवाद, स्वतन्त्रता का प्रबल समर्थन किया जाना उसको राजनीतिक चिन्तन के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाता है। उसका सम्पूर्ण विचार-दर्शन जन-कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है। इसलिए उसका महत्त्व शाश्वत व अमूल्य है। सम्पूर्ण राजनीतिक चिन्तन का इतिहास उसका ऋणी है।

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